Tuesday, October 27, 2015

देश के तीनो राजनितिक खेमों के राजनितिक अस्तित्व का वैचारिक गणित निर्धारित करने वाला तत्व सामाजिक न्याय , धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद अब पुरे तौर पर एक्सपोज़ हो चुका है और अब यह साबित हो गया है की ये तीनो मृग मरीचकाएं जनता को गुमराह करने ले लिए है जिसका फलसफा जनता, समाज और देश को किसी भी तरह से वास्तविक फायदा देना वाला नहीं। इन तीनो का असल मिला जुला रूप केवल और केवल गुड गवर्नेंस के मुद्दे से जुड़ा है। और बिहार की बात करें तो इस मुद्दे पर असली आज़माईश गुड गवर्नेंस के दो स्थापितराजनितिक पहरुए नितीश और नरेंद्र के बीच होनी थी।
पहले नितीश की निराधार महत्वकांछा और उससे उपजी राजनितिक साझीदार को मिले धोखे के कृत्य पर नरेंद्र मोदी नीत राजनितिक धड़े को मोरल हाई ग्राउंड प्राप्त था। परन्तु पिछले एक महीने के चुनाव प्रचार के दौरान नितीश ने अपना संयम जिस तरह से बनाये रखा है ,वह वेहद काबिलेतारीफ है। उन्होंने इस प्रचार में ना तो हिन्दू मुस्लमान और ना ही अगड़ा पिछड़ा का कार्ड खेला और चर्चा केवल गवर्नेंस पर की और बिहार के अजेंडे पर की । पर इसके विपरीत बीजेपी और मोदी अपने विरोधियों पर अनर्गल आक्रमण में मशरूफ रहे। तंत्र मंत्र की चर्चा करना मोदी और बीजेपी की हताशा का प्रतीक है। नीतीश का नरेंद्र मोदी पर पिछले 17 महीने में काम नहीं करने का आरोप हालांकि तथ्य से परे है। पर इस आरोप पर मोदी का मज़बूती से प्रतिकार नहीं करना और इसके बजाये उन दोनों नेताओ पर पर्सनल अटैक करना बेमानी है।
मोदी का दाल और प्याज की महंगाई पर सही स्पस्टीकरण नहीं देना तथा केवल यह कहना आरक्षण को जारी रखा जायेगा,कोई ज्यादा जमने वाली बात नहीं लगी। अगर मोदी यह कहेंगे की वह पिछड़े के सशक्तिकरण के अजेंडे को एक नयी ऊंचाई देंगे तो बात जमती। वैसे नितीश अभी केवल बिहार का चुनाव नहीं लड़ रहे बल्कि वह भविष्य में मोदी के राष्ट्रीय नेतृत्व को चुनौती देने की तैयारियों में भी लगे है। 

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