Monday, October 5, 2015




आज़म खान ने बिलकुल दुरुस्त फ़रमाया है। जिस साफगोई से उन्होंने गोमांस पर अपनायी जाने वाली नीतियों पर अपना तर्जुमा पेश किया है वह तमाम हिंदुवादीओ और सरकारों की इस पहलू पर उनकी हिंपाक्रिसी को उजागर करता है। हालाँकि गोमांस पर प्रतिबन्ध लगाने का एजेंडा कोई अकेले बीजेपी का नहीं है यह तबका एजेंडा है जब ब्रिटिश भारत में पहली बार प्रांतीय अस्सेम्ब्लियों का चुनाव हुआ तो तब 1937 में यूपी में कांग्रेस द्वारा गठित की गयी सरकार का यह एक मुख्य एजेंडा था जिसे फॉलो करने वाले असंख्य मुस्लिम भी हुआ करते थे. बहरहाल आज़म साहेब की सब बात अच्छी थी मसलन देश के सबसे बड़े गोमांस एक्सपोर्टर अलकबीर पर बैन लगने और पांच सितारा होटलों में गोमांस परोसने पर प्रतिबन्ध लगाने वगैरह वगैरह।
पर उनका यह कहना की UNO में जाकर वह बीजेपी के हिन्दू राष्ट्र बनाने की पहल के खिलाफ दरख़्वास्त करेंगे।
आज़म साहेब को अच्छी तरह पता है की भारत इस्लामिक देशो की तरह कभी धर्मप्रधान राष्ट्र बन ही नहीं सकता। उन्हें मालूम होना चाहिए की उनकी पार्टी सहित सारी पार्टिया देश में पहचान की राजनीती और वोटबैंकवाद में सेकुलरिज्म का मखौल उड़ा रही है। इसके बजाये वह यह कहते भारत एक ऐसा देश है जिसका धार्मिक विभाजन होने के बावजूद मुस्लिमो को वे सारे अधिकार क़ानूनी और संवैधानिक रूप से प्राप्त है जो और सबको प्राप्त है।आज की रिपोर्ट देखिये पाकिस्तान में अल्पसंखयकों की कैसी दुर्दशा है जिनके पास मामूली किस्म के नागरिक अधिकार नहीं है। दादरी की बीभत्स घटना का सभी राजनितिक दलों ने जिस तरह से मज़म्मत की और उसके प्रति संवेदना प्रकट की, उसके उन्हें प्रति आभार प्रकट करनी चाहिए थी। आज़म साहेब बड़े कहलाते जब वह कहते की यूएनओ में भारत के बटवारे के खिलाफ दरख़्वास्त करेंगे और पुरे देश में IS जैसे क्रूरतम संगठन के खिलाफ माहौल बनाने की बात करेंगे ।
बाकी बातें तो सबको मालूम है की पहचान, भावुकता और लोकलुभावन राजनीती करने में देश के सभी दलों में रेस लगी है और अपनी अपनी वोट CONSTITUENCY को एड्रेस करने में लोग लगे है। अगर वह इसके लिए आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं तो मैं खुद इस अजेंडे पर उनके पीछे पीछे चलने को तैयार हूँ

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