Tuesday, July 24, 2018

Regarding Social Media
fortunately, this social media has provided everybody a platform to express anything, which they think and perceive which earlier was not available under the conventional media domain. But unfortunately, this social media has completely factionalized our public opinion on the basis of their respective political ideology. Facebook, the most popular social site has opinion in favour of either FOR or AGAINST. There are very minuscule likers for the independent ideas and 'between the line ' ideas or for reasonable and impartial ideas.
Twitter is nothing, it is an ornamental chirping of big celebrities and social VIPs. If you join twitter, you have to survive only by becoming followers of big fame celebrities. You do not have space and opportunities for you own expressed ideas. Twitter is actually has become benchmark for the high society people and here mostly one way communication goes around
What saps has also become a very popular social media for common public, which is useful to them for many social communication purposes, but off and on we see many wrong information is being circulated through this, which create illusion and delusion for many people

Sunday, July 22, 2018

PM Modi's reply on Rahul's childish speech and gesture was over aggressive and reactive. It does not suit the status of PM, who make his reply in such a manner. Fact is that Rahul's approach was to make the Indian politics a two man centric, it is Modi Vs. Rahul. Rahul does not have capability to present the things in Parliament in effective manner. Starting his issue on topic like demonetization and GST, he immediately switch over to issue like women and Docklam. He could have grilled this NDA govt. on demonetization and GST, which have been proved to be the basic cause of economic derailment of Indian economy.
Fact is that, on the issue of Docklam, this govt. got patting from everywhere. Women is not a political issue on which you can grill ruling govt.
Modi very cleverly sidelined the concern of TDP, which has had very genuine demand and in lieu of this he as usual attack the dynastic clan of Congress under the leadership of Rahul. Anyway, Modi's clarification on NPAs issue of the bank was quite conceivable
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव चर्चा में शुरू तीन भाषणों के उपरांत कुछ बातें पोस्ट करने के लिए विवश हुआ। टीडीपी के सांसद ने अपने शुरुआती भाषण में जिस तरह से बातें रखी , उससे यह अहसास ही नहीं हुआ की ऐसा भाषण भी लोकसभा में दिया जा सकता है। पूरी तरह से एक शानदार ऐकडेमिक तरीके से दिया गया भाषण जिसमे आंध्र के बटवारे और फिर शेष राज्य के रूप में इस के साथ हुई उपेक्षा का इतने अचूक तथ्य , आंकड़े और दृष्टांतो के साथ प्रस्तुतीकरण इस टीडीपी के नए सांसद ने रखी इससे इस आशा को बल मिलता है की आने वाले दिनों में संसद में इसी तरह की प्रस्तुति की संस्कृति स्थापित हो। इस भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे का रंग बिलकुल उड़ा हुआ था। उन्हें इस बात का अहसास हुआ होगा की राजनीती केवल टैक्टिस से नहीं , उसके न्यायोचित समाधान से ही रास्ता निकलता है।
बीजेपी के राकेश सिंह जो मध्य प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष बने है , उनका उद्बोधन तो एक नेता का भाषण नहीं, बल्कि एक फिल्म कलाकार की एक शानदार संवाद अदायगी लगती है। उनका एक कथन की यह सरकार स्कैम की नहीं स्कीम्स की है , अर्थपूर्ण थी। परन्तु बाद में उन्होंने इस अवसर का दुरूपयोग आने वाले महीनो में राजस्थान , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावो को देखते हुए इन राज्यों में बीजेपी सरकार के काम के सरकारी आंकड़े गिनवाने में किया।
राहुल गाँधी ने शुरू में मोदी सरकार की तीन बड़ी विफलताओं बेरोजगारी , नोटबंदी और जीएसटी पर बेहद अचूक और सही हमला किया। फिर उन्होंने राफेल सौदे पर भी इस मोदी सरकार को बड़ी बढ़िया तरीके से घेरा। परन्तु बाद में राहुल की अपरिपक्वता साफ साफ दिखी। उन्होंने जिस तरीके से कहा मोदी मेरे से आंख में आंख नहीं मिला रहे है। यह एक बेहद बचकाना लगा। ऐसा ही राहुल ने सुषमा स्वराज को ललितगेट स्कैंडल के दौरान कहा था। इसके बाद राहुल ने जिस तरह से किसानो के लोन माफ़ी का सवाल उठाया वह कांग्रेस की उस पॉपुलिस्म राजनीती का हिस्सा था जिससे देश का आर्थिक कबाड़ा निकला और इस पार्टी की 2014 में इस वजह से हार हुई। किसान के लोन माफ़ी की बड़े कॉपोरेट के ढाई लाख करोड़ की किस क़र्ज़ माफ़ी से तुलना कर राहुल ने कही। मुझे देश की अर्थवयस्था की जो जानकारी है , उसमे मुझे ऐसा कोई तथ्य नहीं दिखा जहा ढाई लाख करोड़ की कोई क़र्ज़ माफ़ी कॉर्पोरेट के लिए की गई है। सबसे पहले कांग्रेस पार्टी और राहुल को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए की किसान के लिए सबसे बड़ी भलाई उनके सभी उत्पादों की एमएसपी बढाने में ही छिपी है। क़र्ज़ माफ़ी एक आपराधिक कदम है। हाँ राहुल कॉपोरेट पर इसके लिए हमला बोल सकते थे की इस देश के बैंको के 9 लाख करोड़ के फंसे क़र्ज़ का दो तिहाई क़र्ज़ कॉर्पोरेट ने लिया हुआ है , उन सभी को सरकार फांसी पर क्यों नहीं लटकाती जिसके लिए मै अपना समर्थन देने को तैयार हूँ। सेकुलरिज्म को लेकर राहुल को कहना चाहिए था की बीजेपी और आरएसएस हिंदुत्व की राजनीती बंद करे और हमारी पार्टी मुस्लिम की राजनीती बंद करे तो फिर देश में सेकुलरिज्म अपने आप आ जायेगा। 

Wednesday, July 18, 2018

We know Bengal has been ill famous for the violent political rivalism and present Mamta Banerji, who faced lots of violent action from her predecessor left regime, has herself proved as more ultra leftist one. But, what Narendra Modi told about her in Midnapur rally, that had a communal angle, that worshipping Goddess Druga has become difficult in Bengal. Fact is that.Durga Puja can not be obstructed in Bengal, even it was not done during left regime also. But Modiji , same like Bengal what happened in your party ruled state Jharkhand ?, There your party men assaulted a noble social activist Swami Agnivesh, what is this. Fact is that the social dynamics of every political party is same, whose cadre do not think in a broad way, they just take small idiom of their party ideology and display their reaction in a volatile manner, whether they are from left parties or from rightist parties. But Irony is that, all top leaders of our political parties need such kind of party workers only

Tuesday, July 17, 2018

It is great irony of our system, in which we find the section, who is comparatively better, go more for the exhibition and agitations for their plight in comparison to those, who are more vulnerable and deprived. For example we all know, eighty percent of farmers, who are marginal, small and landless, who do cultivation more of the cereals and food grains, they are less involved in commercial crops, they never display their agony, so as of now, we have been avoided the proper remunerative prices for them. But mostly the producers of sugar cane, milk and cotton, the items, where producers get more remunerative prices they go for agitations and their demands become more pronounced. We all know prices of milk are not less in the market. This is the item, where 70 percent of the retail prices goes into the hands of farmers and producers. But, despite this farmers in Maharashtra are demanding higher prices of milk,
It is true, when Modi says that files related to hiking of MSP was kept unmoved for last 70 years. But, In Modi' s ruling term, why this file was kept unmoved for last 4 years and it is moved when election is round the corner. For the Sugar cane, its price is not the problem, its payment is the main problem.But in case of mIlk it is quite right. we can not plea for making subsidy over this.
संजू फिल्म में अंतिम निष्कर्ष यही निकाला गया की संजय भले आशिक, ड्रगिस्ट और परिस्थितिजनक तरीके से टेररिस्ट और बाद में कोर्ट द्वारा आर्म्स- एम्म्युनिस्ट करार दिए गए हों, परन्तु उनकी इस बेहाली में सबसे बड़ा खलनायक मीडिया ही रहा है। पर फ़िल्मकार यह भूल गए की यही मीडिया किसी भी फील्ड के सेलेब्रिटीज़ को आसमान पर ले जाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है तो फिर आप सेलेब्रिटीज़ उसी मीडिया द्वारा आसमान से जमीं पर फेंके जाने के लिए तैयार क्यों नहीं होते। मीडिया से आप पट पाने को तैयार है तो फिर उससे चित्त भी पाने को तैयार रहें ना। मीडिया ,चाहे आप राजनीती के सेलिब्रिटीज हों , फिल्म सेलिब्रिटीज हों या स्पोर्ट्स के, एक लव अफेयर और उसकी स्टोरी सरीखी ही होती है । ऐसा कभी नहीं होता की एक लव स्टोरी में केवल और केवल कॉमेडी ही आये, इसके साथ उसकी ट्रेजेडी भी आना अवश्यम्भावी है. जो आनंद की अनुभूति भी देता है तो फिर गमो के पहाड़ का भी सामना करना पड़ता है।
मीडिया में हैडलाइन के साथ दिल्लगी करना उसका एक ऐसा शगल है एक ऐसा ट्रेंड है जिससे मीडिया कोई बड़ी सौदेबाजी कर करोडो का सौदा करता है, ऐसी बात नहीं। पर एक ऐसी परंपरा बनी हुई है जो हमारे समक्ष फिल्मो में अश्लीलता के रूप में मजूद है , राजनीती में भड़काऊ और ललचाऊ बयानों के रूप में पाया जाता है वगैरह वगैरह। हम चाहते है की मीडिया का देश में वही संवैधानिक स्वरुप बने जो न्यायपलिका का है। यानि केवल और केवल निष्पक्षता। परन्तु मीडिया के लोग जब इस मामले पर या तो अपरिपक्व है या कन्फ्यूज्ड तो क्या कहा जाये । बहरहाल ऐसा नहीं हो सकता की आप सेलब्रिटीज़ मीडिया की मलाई खाना हो तो मीडिया वाह वाह और मीडिया से दुत्कारे गए तो तेरी ऐसी की तैसी। आखिर संजू को आशिक और ड्रगिस्ट बनाने में मीडिया ने तो कोई भूमिका नहीं निभाई थी ना। बहरहाल संजू की एक्टिंग पर्सनालिटी का मै फैन रहा हूँ। मुझे याद आती ही उनकी फिल्म साजन।
किसी भी तरह की सामाजिक हिंसा, चाहे कथित गौरक्षकों द्वारा किया जाता हो, बच्चा चोर के खिलाफ किया जाता हो , किसी महिला को डायन बता कर किया जाता हो या समाज के वंचित और दलित जाती के मुख्यधारा में आने पर किया जाता हो या धार्मिक दंगाइयों द्वारा किया जाता हो , उसका प्रतिकार करने के लिए किसी कोर्ट के निर्देश का इंतजार करना पड़े तो यह बात किसी सामाजिक और सार्वजनिक व्यस्था के लिए बेहद शर्मनाक है। कड़ा कानून अपने जद में आने वाले कुछ चंद मामलों और उसके अपराधियों को महज दण्डित कर सकता है , वह भी कई सालों के बाद। इसका रेमेडियल यानि समाधान और प्रिवेंटिव यानि रोकथाम तो हमारे सामाजिक और सार्वजनिक तंत्र के चाक चौबंद और ईमानदार सक्रियता के बदौलत ही संभव है। वह तंत्र जो बिलकुल राग द्वेष और भय प्रीत से मुक्त हो । जिसकी नज़र में केवल और केवल इंसाफ और इंसानियत है।
पर सावधान ! इंसानियत का किसी भी राजनीतिक दल सरीखे कार्यरत संगठित और चमत्कारिक धर्म से कोई लेना देना नहीं होता। एक नास्तिक व्यक्ति भी आला दर्ज़े का इन्सनियतपरस्त और मानवीय हो सकता है।
यह कैसा हिंदुत्व, जहां अपने अपने समाज के एक नौजवान व्यक्ति को अपनी शादी में घोड़ी में बैठने के लिए छह महीने जद्दोजहद करना पड़ा। कोर्ट से परमिशन लेना पड़ा। करीब 150 पुलिस जवानो के साये में अपनी शादी में घोड़ी पर बैठकर अपने दिल की मन्नत पूरी करनी। यह क्या हो रहा है।
मैं एक बार यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का हिंदुत्व पर एक उद्बोधन सुन रहा था की मुसलमानो के पवित्र स्थल मक्का में किसी गैर मुस्लिम के प्रवेश पर निषेध है। ईसाईयों के पवित्र स्थल वैटिकन सिटी में गैर ईसाई के प्रवेश पर निषेध है। पर हमारी सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी में तो हर धर्म के लोग न केवल प्रवेश करते है , बल्कि हमारे पवित्र स्थल से सटकर अपनी मीनारे खड़ी कर वहां से तीव्र धवनि में अपनी अजाने पढ़ते है। बात ठीक है।
पर ये बताईये हिंदुत्व के खतिरदारो और पहरेदारो , पर अपने समाज के एक बड़े तबके को समाज की मुख्यधारा से क्यों काटा गया जिसे अछूत बनाकर, मैला धुलाकर, मंदिर में प्रवेश रोककर और उसके साथ क्या क्या जलालते नहीं की गयी। और ये सब घटनायें आज के इस दौर में भी घटित हो रही है। दलित दूल्हे को घोड़ी में नहीं बैठने देने की यह घटनायें तो यही दर्शा रही है की समाज में सामंती और नस्ली सोच का डीएनए अभी भी ब दस्तूर बना हुआ है। हमारे पहरेदारो यह जान लो , अतीत की गुलामी इन्हीं सब कारणों का नतीजा रही है।
भाजपा के शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी ने एक बार कहा था की कांग्रेस जब जैसा जरूरी हुआ, तब तैसी हर तरह की साम्प्रदायिकता करती रही है। कभी मुस्लिम साम्प्रदायिकता तो कभी हिन्दू साम्प्रदायिकता, यहाँ तक की कभी ईसाई साम्प्रदायिकता। नरसिम्हा राव पर जब बाबरी मस्जिद की रक्षा में विफल होने का टैग लगा तो फिर सोनिआ नियंत्रित कांग्रेस ने मुस्लिम समाज का वापस वोटबैंक पाने के लिए मुस्लिम समाज के दुर्दांत दुर्दांत साम्प्रदयिक नेताओ को राज्यसभा की सीटों से नवाजा। अभी हाल हाल में गुजरात चुनावो के मद्देनजर कांग्रेस को लगा की 2014 लोकसभा चुनाव की हार के बाद अब कांग्रेस को मुस्लिम मुस्लिम के बजाये मंदिर मस्जिद दोनों के कार्ड खेलने चाहिए। सो राहुल द्वारा गुजरात में मंदिर और मस्जिद दोनों में प्रवेश करने की झड़ी लग गयी। कर्नाटक में भी राहुल द्वारा यही तरीका अपनाया गया। अब फिर राहुल ने अपनी लाइन बदल दी। पहले तो यह लगा की राहुल मुस्लिम बुद्धिजीवियों की बैठक में राहुल मुस्लिम समाज में धरम सुधार के मुद्दे पर कोई बोल्ड स्टेटमेंट देंगे और अपनी पहचान कांग्रेस में एक गैर पहचानवादी नेता का बनाएंगे। पर इसके उलट उन्होंने कांग्रेस को मुस्लिमो की पार्टी करार दिया। काश भारत पाक विभाजन के दौरान कांग्रेस यही बात कही हुई होती फिर जिन्ना का द्विराष्ट्रवाद का मंसूबा फ्लॉप हो गया रहता।
दिग्विजय ने ट्वीट पर कहा की राहुल गाँधी ने ऐसा बयां नहीं दिया। पर आखिर राहुल ने इसका खंडन भी तो नहीं किया। साम्प्रदायिकता से उलट कांग्रेस ने देश की राजनीती में जातिवाद को पोषित करने में कोई गुरेज नहीं की। जनगणना को जाती गणना बनायीं गयी। कांग्रेस के लिए पहली और अंतिम कसौटी अपने खानदान की रक्षा ही सर्वोपरि रही है। समुदाय को बढ़ावा देने वाली भाजपा भी जातिवाद पनपाने में तनिक पीछे नहीं रही। ये पार्टी भी टिकट उन्हें देती है जो जाती उनकी वोटबैंक है। कुल मिलकर पहचान की राजनीती का वर्चस्व ही भारतीय राजनीती की रीती निति का दूसरा नाम है।

Wednesday, July 11, 2018

Hello friends, there is an information for you from my side
My' Mission of writing a book is accomplished now. It is a mammoth book on Corruption, having 800 pages, split into two volumes. Today my publisher finally cleared it for the printing. Writing of book was started from year 2001, which got halted due to many reasons. For last 5 years, i was hugely involved with the book project. Meanwhile it was updated, adjusted, treated, corrected, edited, proof read in frequent manner.Even, after i make agreement with the publisher, it took more than a year to make it ready for its printing. Because this book is so vast, hugely researched and having a comprehensive ethos. so it is unarguably the largest book written ever on corruption.
You all may be interested to know the title and cover of the book. Very soon, I will also tell about it with the cover of the book.