Sunday, October 25, 2015

हमें लगता है की धोनी का बतौर कप्तान अवसान काल आ चूका है। पहले उनकी बांग्लादेश में एक दिवसीय शृंखला में हार हुई। दक्षिण अफ्रीका ने टी २० में बुरी तरह पराजित करने के बाद अब एक दिवसीय शृंखला में बुरी तरह धो दिया। लगता है  धोनी एकदिवसीय मैचों में अभी और खेलना चाहते है। लेकिन कप्तानी के मोहपाश से अपने को दूर नहीं कर पाये है। धोनी के कप्तानी करियर का सबसे मजबूत पक्ष रहा है उनका खुद का और खासकर विपरीत परिस्थितियों में कमाल का प्रदर्शन। इस मामले में वह भारत के सबसे अव्वल खिलाडी  माने जायेंगे। इस वजह से उन्हें काफी लम्बे समय तक कप्तानी भी मिली। परन्तु धोनी ने कुछ अपने बदौलत और कुछ भाग्य के बदौलत भारत को बड़े टूर्नामेंटों में जरूर विजय दिलवाई परनतु धोनी टीम बनाने वाले कप्तान के रूप में नहीं जाने जायेंगे। धोनी खिलाड़ियों के पिक करने के मामले केवल अपनी निजी पसंद और बेहद जिद्दी प्रवृति के रहे। उन्होंने प्रवीण कुमार , युवराज सिंह , रविन्द्र जडेजा , सुरेश रैना वगैरह को काफी वरीयता दी वही सहवाग जैसे महान खिलाडी का करियर ख़राब करने में उनका अहम योगदान रहा। 
वही सौरभ गांगुली भारत को किसी बड़े टूर्नामेंट में नहीं जितवा पाये , शायद वह उतने भाग्यशाली नहीं थे ,पर किसी खिलाडी के प्रति उनका निजी आसक्ति नहीं थी ,केवल गुणवत्ता और विराट दृष्टि की वजह से वह भारतीय टीम में अनेकानेक खिलाड़ियों को तराशा जो अप्रतिम था। लक्ष्मण को टेस्ट मैच में. राहुल को एकदिवसीय मैच में , सहवाग को टेस्ट ओपनर के रूप में , हरभजन को एक आक्रामक गेंदबाज के रूप में , श्रीनाथ और ज़हीर तथा नेहरा को बेहतर तेज गेंदबाज के रूप में तथा युवराज और कैफ को तराशने का वह काम कर दिखाया जो भारतीय टीम के लिए मील का एक बड़ा पत्थर था। 
कुछ भी हो धोनी का भी भारत के सबसे महान फिनिशर बल्लेबाज तथा एक अलग शैली के कप्तान के रूप में जगह जरूर रहेगी। परन्तु धोनी की इज्जत तभी बढ़ेगी , जब वह कप्तानी छोड़ देंगे। वैसे भारत के खिलाड पद छोड़ने के मामले में मर्दानगी का परिचय कभी नहीं देते। लगता है धोनी भी उसी परंपरा का पालन कर रहे है। 

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