Saturday, January 30, 2021

ठहरिये

 ठहरिये

2021 का यह नया साल पूर्व के नए सालों की भांति बधाई और मुबारकवाद देने की औपचारिकताएं प्रदर्शित करने का साल नहीं है। जिस तरह हमने पिछले साल २०२० को अलविदा नहीं कहा बल्कि उसे शुभ विदा कहा। जो साल हमारे मौजूदा जनजीवन की चारो पीढ़ी यानी वृद्ध, प्रौढ़, युवा और बच्चो को महाप्रलय दिखा गयी। शास्त्रीय कथाओ में उल्लिखित महाप्रलय की कल्पना को समूची दुनिया ने पिछले २०२० में साक्षात् दर्शन किया। जिसने शारीरिक , आर्थिक , सामाजिक , मनोवैज्ञानिक हर तरह से मानव समुदाय को आहत किया , उलट पलट किया , बेबस किया , क्षत विक्षत किया और कुल मिलकर चारो खाने चित किया। सरकार, समाज, समुदाय और परिवारों ने इस संकट काल का कड़ा और लम्बा इम्तिहान दिया।
अभी आया यह नया साल 2021 हममें महफुजियत की आस्था तो नहीं परतु सांख्यिकीगत मायनो में काफी राहत देता है। यानि यदि भारत की बात करें तो रोजाना एक लाख कोविड संक्रमण के आने वाले केस अब बीस हज़ार पर, इससे रोज होने वाली मौते 1000 से घटकर 200 पर और अस्पताल में कोविड के इलाज करा रहे रोगियों की संख्या दस लाख से घटकर २ लाख पर आ गयी है ।
साल 2021 की लीला क्या होगी? यह जड़मूल से समाप्त होगा? या फिर से यह अलग अलग रूपों में विनाशलीला करेगा, नहीं पता। परन्तु इसके निवारण के लिए मानव जाती की सारी मेधा, प्रज्ञा , खोज , अनुसन्धान , प्रयोग, नियोजन और इंतजाम चल रहे है। हम बेहतर की उम्मीद ही कर सकते है।
परन्तु हमारे लिए यह नया साल उन सभी के प्रति नतमस्तक होकर दिल और जज़्बे की गहराइयों से कोरोना से प्रत्यक्ष और परोक्ष दिवंगत आत्माओं के प्रति श्रद्धांजलि देने का है। ठीक है जीवन और मौत हमेशा चलते रहते है। दुर्घटना , बीमारी और आपदा से मौते निरंतर होती रहती है। परन्तु कोरोना ने एक अलग तरह की अनहोनी मचाई और हममें से कई लोगो को छीन लिया। यह ठीक है की हम समूची दुनिया में इस महामारी से मरे करीब १२ लाख लोगो और भारत में मरे करीब डेढ़ लाख लोगो के प्रति व्यक्तिगत संवेदना नहीं जता सकते , परन्तु इस नए साल के पहले दिन हम सभी अपने उन सभी लोगो के प्रति शीश झुकाये जिन्हे हम व्यक्तिगत रूप से जानते हैं।
नये साल में उन सभी दिवंगत आत्माओं के प्रति नमन प्रकट करते हुए हम यही कामना करते है की भारत सहित समूची दुनिया के लिए यह नया साल 2021 हर विभीषका से मुक्त हो और सबके चेहरे पर खुशियाँ झिलमिलायें
जय जगत

एक भारतीय और हिन्दू होने के नाते मुझे सिख समुदाय पर गर्व है।

 एक भारतीय और हिन्दू होने के नाते मुझे सिख समुदाय पर गर्व है।

प्रान्त पंजाब पर गर्व है। देश की सेना को अरसे से नेतृत्व देने वाले इस कौम पर नाज है।
देश के विभाजन के समय इस कौम द्वारा लाखो निर्दोषों की रक्षा किये जाने पर फक्र है।
और सबसे ज्यादा समूची दुनिया का पेट भरने के लिए चिर संकल्पित इस समागम को सलाम है।
और अभी देश के १५ करोड़ किसान परिवार के करीब ७५ करोड़ लोगों के पिछले पचपन साल से सुलग रहे सवाल को एक ज्वाला का रूप देकर दुनिया के इस सबसे बड़े किसान आंदोलन को आयोजित करने और उस की रहनुमाई करने वाले इस कौम का कोटि कोटि वंदन है।
जिन्होंने इस आंदोलन को कुछ चंद सिरफिरे खालिस्तानी झंडे का हवाला देकर अपनी मोदी भक्ति का प्रमाण देने और देश के करोडो किसानों के वेदना की उपेक्षा की है उन्होंने देश के खिलाफ गद्दारी की है बल्कि मैं कहूंगा की उन्होंने हिंदुत्व की अस्मिता के प्रति भी अपनी भारी बेवकूफी प्रदर्शित की है।

किसान आंदोलन को लेकर कुछ कथ्य और तथ्य

 किसान आंदोलन को लेकर कुछ कथ्य और तथ्य

भारत के जनांदोलनों के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा आंदोलन
किसानो के अबतक हुए सभी आंदोलन में न केवल यह सबसे बड़ा आंदोलन है बल्कि खेती के सबसे मौलिक मुद्दे पर आयोजित आंदोलन है।
अभी तक किसान आंदोलन बिजली बिल माफ़ी , कर्ज़ा माफ़ी , शहरी जमीन का बेहतर दाम और पहले से लाभदायी गन्ने के फसल के और ज्यादा दाम पाने को लेकर होता रहा जो मुद्दे न किसानों के स्थायी बेहतरी के हक़ में थे और ना ही अर्थव्यस्था की बेहतरी लाने वाले थे। मौजूदा आंदोलन पचपन साल पहले हुआ रहता तो किसानों की माली हालत ऐसी नहीं होती
एमएसपी का प्रयाप्त निर्धारण करना , इसमें सभी कृषि उत्पादों को शामिल करना और फिर इसका कानूनी अनुपालन इनसे किसान के ९५ फीसदी उत्पाद जो मंडी के बाहर बिकते है , उसका बेहतर दाम मिलना तय होगा। इससे अर्थव्यस्था में व्यापक बेहतरी सुनिश्चित होगी। जीडीपी में खेती का योगदान बढ़ेगा
यह ठीक है की यह आंदोलन जो अभी तक नहीं हो पाया था और इस आंदोलन को उकसावा सरकार के नए कॉर्पोरेट खेती कानून के जरिये मिला, यकीन मानिये किसी भी बड़े आंदोलन का मोमेंटम ऐसे ही तैयार हुआ करता है। अंग्रेजो ने भी जब भारतियों को रियायते देनी शुरू की तभी आज़ादी का राष्ट्रीय आंदोलन गति पकड़ता चला गया।
मोदी सरकार को यह भ्रम दूर कर लेना चाहिए की कुछ सौ या हज़ार कोंट्रेचुअल कॉर्पोरेट फ़ार्मिंग से देश भर के किसानो की आमदनी अगले कुछ साल में दोगुनी हो जाएगी। भारत में १५ करोड़ किसान परिवार रहते है , इनके पेशे में बेहतरी को व्यापक गति केवल खेती को लाभकारी बनाकर , जोखिमों से मुक्त कर , बेहतर और उचित दर पर आधारभूत संरचना उपलब्ध कर बनाया जा सकता है
वैसे तो कृषि के साथ कुल मिलकर दस बड़े मुद्दे है जो भारतीय कृषि को कृशकाय बनाये हुए है पर इसमें सबसे अव्वल मुद्दा एमएसपी को लाभकारी और क़ानूनी बाध्यकारी बनाना है।
मोदी सरकार अगर अपने जनविरोधी और किसान विरोधी नौकरशाहों की राय को अनसुनी कर इस एमएसपी को कानूनी रूप देने का एलान कर लेती है , तो उसे इसका श्रेय भी मिलेगा जो पिछले पचपन साल में नहीं हो पाया
मोदी सरकार मंडियों को जारी रखने और एमएसपी को जारी रखने का बयान देकर इस मुद्दे का महज विषयांतर कर रही है। सरकार को जनवितरण प्रणाली चलने के लिए अनाज तो खरीदना ही पड़ता है तो वह खरीदेगी ही तो इसके जरिये किसानो के ढाढस देने का कोई मतलब नहीं
कई लोग कहते है की यह आंदोलन पंजाब हरियाणा और सिख किसानों का है। भाई आंदोलन हमेशा ही ताकत से आता है। महिला मुक्ति आंदोलन हो , दलित पिछड़ा आंदोलन हो ,देश की आज़ादी का आंदोलन हो सभी में समाज के एलिट लोगों ने ही उसमे अगुआ रोल अदा किया। ऐसे ही किसानो का यह आंदोलन बेहद ताकतवर और अमीर किसान कर रहे है पर इसका मुद्दा देश के सभी किसानो से वास्ता रखने वाला है
किसानो का इस कडकडाती ठण्ड में किया जा रहा करीब एक महीने से किया जा रहा यह त्याग देश की तक़दीर बदलेगा। अगर हुकूमत अपने फॉर्मूले पर कायम रहेगी तो फिर वह किसानों के आह की अग्नि से भस्म हो जाएगी
हम तो यही उम्मीद करेंगे की लोगों को तुरत सद्बुद्धि जगे

जिन्हे कृषि का क नहीं पता वह किसान आंदोलन पर बात कर रहे है।

 जिन्हे कृषि का क नहीं पता वह किसान आंदोलन पर दुनिया भर की बात कर रहे है। चाहे ये किसान आंदोलन के पक्षधर लोग हो या सरकार के पक्षधर लोग।

यहाँ तक की किसान आंदोलन पर अपना पोस्ट लिखने और प्रोग्राम करने वाले जिनके व्यूर्स और लाइकर्स लाखों में है उन्हें भारत की इस कृषि अर्थव्यस्था के समस्त पक्षों की जानकारी नहीं है ना ही इस मुद्दे के असलियत से वाकिफ है।
एक पक्ष आंदोलन को ग्लोरिफ़ाई कर रहा है पर वह यह बताने में तार्कित रूप से असमर्थ है नए कानून हटाया जाना किसानो का भला कैसे करेगा वह तो उसी यथास्थितिवाद में धकेलेगा जिसमे शताब्दियों से किसान पिस रहे थे।
आंदोलन शानदार और अभूतपूर्व है पर इसका पहला मुद्दा एमएसपी को कानूनी दर्ज़ा होना चाहिए जिसे मिलना कृषि कानूनों को सही कर देता है। दूसरी तरफ सरकार के समर्थक भारत के मध्यवर्गिओं को यह पता नहीं की किसान कितने घाटे में अपना यह कारोबार सदियों से करता आ रहा है जिस की वजह से साठ फीसदी लोग जीडीपी में केवल पंद्रह फीसदी का योगदान कर पाते है।
मोदी सरकार कॉर्पोरेट को कृषि कारोबार में प्रवेश के लिए कानून बनाकर लायी पर वह कृषि उत्पादों के दाम सीजन में गिरने से बचने के लिए बिना इंतज़ाम किये आ गयी, यही सबसे खतरनाक पक्ष है जो पिछले पचपन साल से चला रहा था जिस पर नए कानून ने किसानो को एक जुट आंदोलित करने का मौका दे दिया।
जिस तरह से मजदूरों की ओवर सप्लाई में मजदूरी कम न हो उसके लिए हम मिनिमम वेज एक्ट लाते है , उसी तरह सीजन में कृषि उत्पादों को ओवरसुप्पलाई थामने के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस एक्ट की भी जरूरत है। दरअसल बात ये है जिस बात को हर किसान से व्यक्तिगत बात के जरिये भी पुष्टि की जा सकती है की कानून का विरोध पहली प्राथमिकता में इसी लिए आया क्योंकि शुरू की वार्ता के दौरान एमएसपी को कानूनी दर्ज़ा दिए जाने की बात को सरकार लगातार अनसुनी करती गयी और तब फिर किसानो ने सरकार की कमजोर नस यांनी कॉर्पोरेट कानून को रद्द करने की बात कही गयी।
अगर सरकार एमएसपी में सभी उत्पाद को शामिल कर , इनका लागत युक्त मूल्य निर्धारित कर और इन सभी को कानूनी दर्ज़ा प्रदान कर साथ साथ किसान के सभी उत्पाद के मूल्य भुगतान को समयानुसार सुनिश्चित करने की अपनी तरफ से एकतरफा पहल कर दे तो उसके बाद किसान नए कानून को रद्द करने की मांग करेंगे तो ये आंदोलित किसान देश भर के किसानो के नायक नहीं खलनायक कहे जायेंगे.
पर मौजूदा स्थिति के लिए मोदी सरकार का कॉर्पोरेट फर्स्ट , जिद , अहंकार और अपने नौकरशाहों की सलाह पर एमएसपी की वैधानिक मांग नहीं माँगा जाना जिम्मेदार है। यह ऐसी मांग थी जो क़र्ज़ माफ़ी , बिजली माफ़ी और मुनाफादायक फसलों के दाम और बढ़ने की तरह नहीं थी और इससे सरकार के ख़ज़ाने पर बोझ नहीं पड़ना था।
दूसरी ये मांग महानगरीय इलाको में जमीन बेचकर करोडो की अनोपार्जित आय प्राप्त करने वाले , खेती के नाम पर फार्म हाउस के बिना कर चुकाए अय्याशी करने वाले और अमीर किसानो के हितो से नहीं जुडी है। मुझे न ही कोई किसान नेता , ना ही कोई कृषि अर्थशास्त्री , न ही कथित कृषि विशेषज्ञ जिसमे इस समूचे कृषि मुद्दे की कोई संपूर्ण दृष्टि हो।
न्यूज़ २४ के एंकर संदीप चौधरी द्वारा बेशक किये गए सवाल बेहद वाजिब और अंदरूनी समझ से भरपूर रहे है। किसानों के सरोकार सबसे अव्वल है पर अभी तो केवल कृषि कानूनों की राजनीती हो रही है। कई लोग महंगाई , खाद्य सुरक्षा , पर्यावरण, कॉर्पोरेट , बाजार के पक्षों को उठा रहे है , पर ये सभी दिग्भ्रमित करने वाले रहे है। एमएसपी और एमआरपी को कानूनी दर्ज़ा देना किसानो के आलावा हर उपरोक्त समस्या का समाधान अपने में समाहित किये हुए है।