Monday, September 10, 2018

जीएसटी को हम उपभोक्ताओ के लिए  विन विन स्टेप क्यों  माने
विगत में जब अंतराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतो में जब कमी आयी तो मौजूदा मोदी सरकार ने इस कमी को जनता को पास ऑन नहीं कि या और इसकी एवज में इस पर कस्टम और एक्साइज टैक्स बढाकर और राज्यों ने अपने वैट बढाकर अपने ख़ज़ाने को भरा और अपने सरकारी तंत्र की अक्षमताओं से उपजने वाले वित्तीय घाटे में संतुलन स्थापित किया। आज जब कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में बढ़ोत्तरी हो रही है तो सरकार उन करों में कमी करने को तैयार नहीं है। अभी भी कच्चे तेल के जिन मूल्यों पर यूपीए देश में पेट्रोलियम पदार्थ मुहैया करा रही थी , उसकी तुलना में कच्चे तेल की कीमतें कम होने के वावजूद पेट्रोलियम उत्पाद ज्यादा महंगे दाम पर बेचे जा रहे हैं। सबसे बड़ी विडंबना तो ये है की जीएसटी की नयी रेजीम से जिन मदों पर जनता को वास्तव में राहत मिलना था उसे इस सूची से बाहर कर दिया गया। इसके नतीजतन पेट्रोलियम उत्पादों , शराब , रियल एस्टेट जैसे कमाऊ मदों को जीएसटी में नहीं डाला गया । फिर जीएसटी को हम उपभोक्ताओ के लिए विन विन स्टेप क्यों माने। चिंता की बात ये है जिस जीएसटी से हम देश में कर क्रांति के आगमन की कल्पना कर रहे थे वह असल में इस देश में एक तुगलकी फरमान और व्यावसायिक अराजकता का परिदृश्य झलका रही है। देश के करीब 48 फीसद जीएसटी पजीकृत कारोबारी अभी तक रिटर्न नहीं भर पा रहे हैं। यदि वह भरें भी तो उन्हें हज़ारो रुपये फ़िज़ूल की पेनाल्टी देनी होगी। यह काहे की सरल व्यस्था है। चिंता इस बात की ज्यादा है की सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व की चपत इससे ना पड़ जाये। क्योंकि देश में बिक्रीजनित सभी उत्पाद सबसे पहले तो लेबल लगे नहीं होते है, सब पर नए स्टॉक मूल्य प्रिंट नहीं हुए है। सब जगह कंप्यूटर और इंटरनेट नहीं है। हर मास और अब हर तिमाही जीएसटी रिटर्न दाखिल करने का पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध नहीं है।