Tuesday, April 7, 2020

तब्लीगी बनाम आर एस एस का विमर्श

तब्लीगी बनाम आर एस एस का विमर्श
आर एस एस से तब्लीगी की तुलना करना किसी भी दृष्टि से मेल नहीं खाता। यह तुलना जबरदस्ती की वामी बौद्धिकता है जो मुस्लिम जहालत के इतने बड़े साबुत के सामने अपने को शर्मिंदा महसूस कर रही थी और अब उसे कवर अप करने के लिए आर एस एस से जोड़ रही है। आर एस एस थोड़ा नज़दीक है तो जमाते इस्लामी जैसे मुस्लिम संगठन के, परन्तु फिर भी आर एस एस के नाम में हिन्दू शब्द नहीं है और इसके नाम में राष्ट्र शब्द जुड़ा है। यह अलग है की आर एस एस के लिए राष्ट्रवाद का आधार हिन्दू सनातन है पर यह संगठन हिन्दू पोंगापंथी को और इसके प्राचीन कर्मकांडो को प्रचारित नहीं करता और यही वजह है हिन्दुओ में अन्धविश्वास और कई कुरीतयों की तेजी से समाप्ति हो रही है। आर एस एस निसंदेह हज़ारो जातियों और उप जातियों में बंटे हिन्दुओ को संगठित के लिए इसके धार्मिक प्रतिमानों को जीवित करने की रणनीति पर काम करता है जिसके लिए वह राजनीती में भी बेहद सक्रिय रहता है और कही ना कही तमाम पहचानो से भरीभारतीय प्रजातंत्र में अपने वोट बैंक की हिस्सेदारी हासिल करने में भी उसे काफी सहूलियत हुई है। आर एस एस की आप इस बात के लिए आलोचना जरूर कर सकते है की वह हिन्दुओ की जाती व्यवस्था और वार्ना व्यवस्था समाप्त करने में उतनी बड़ी सक्रियता नहीं दिखा पायी जितना वह राजनितिक और सामाजिक रूप से संगठित करने में और मुस्लिम विरोध करने में दिखायी है । परन्तु तब्लीगी जमात के जरिये कट्टर वहाबी मुसलमान की कई सारी फ़ण्डामेंटलिस्म को जगाया जाता है लेकिन इनके साथ अच्छी बात ये है की इस जमात को राजनीती के प्लेटफार्म से तौबा है। इस दृष्टि से यह उन अन्य मुस्लिम समुदाय जो मस्जिदों से राजनीती करने के चैंपियन है और जिनके लिए इस्लाम और राजनीती में कोई फर्क नहीं है उनसे यह अलग है।
आर आर एस को आप मुस्लिमो के गैर तब्लीगी संस्करण के करीब जरूर मान सकते है। पर आपको यह भी जाना चाहिए कई मुस्लिम बुद्धिजीवी अपने शर्म को ढकने के लिए आर एस एस का दुनिया के कुख्यात मुस्लिम आतंकी संगठनों अल कायदा , isis और लश्कर तक से तुलना कर डालते है। यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है। क्योंकि आर एस एस ना तो घोषित रूप से और ना ही अघोषित रूप से कोई आतंकी कैंप चलाती है । हाँ इनके कुछ कार्यकार्ता हताशा में इस्लामिक आतंक के प्रत्युत्तर में प्रति आतंक करने में जरूर सक्रिय रहे , परन्तु इनकी संख्या चंद थी और इसे इस संगठन ने कभी भी अपना नहीं माना। आर आर एस को गलत कह ले पर इस तथ्य को जरूर मानिए की इस देश का साम्प्रदायिक विभाजन नहीं होता तो आर आर एस की हिन्दुओ को संगठित करने की अपील और उनके अन्य कामो का ज्यादा असर नहीं होता। आज़ादी आंदोलन के दौरान देश के किसी भी हिंदूवादी संगठनों की राजनितिक ताकत धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस के सामने नगण्य थी और यह धर्मनिरपेक्षकांग्रेस मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक टू नेशन थ्योरी को रोकने में विफल रही और यही बात आर आर एस की जर्नी को आगे बढ़ाने में सबसे ज्यादा मददगार साबित हुई।

Monday, April 6, 2020

कोरोना पर लॉकडाउन अभूतपूर्व जनविरोधी फैसला है

कोरोना पर लॉकडाउन अभूतपूर्व जनविरोधी फैसला है
 Manohar Manoj
कोरोना पर किये गए लॉकडाउन अभूतपूर्व जनविरोधी फैसला है
लॉकडाउन को लेकर मेरा मत तनिक भी राजनितिक आग्रह और दुराग्रह से प्रभावित नहीं है पर मेरी नज़र में यह सचुमच अभूतपूर्व जनविरोधी फैसला है।
मेरा स्पष्ट मानना है की नोटबंदी , जीएसटी के बाद करोना के नाम पर देशबन्दी देश के रसातल के ताबूत की अंतिम कील ना साबित हो जाये। यह प्रकृति का नियम है की हर व्यक्ति अपनी मौत के प्रति सबसे ज्यादा सजग रहता है। करोना का खौफ सबकी तरह मेरे मन में भी है। भारत में करोना को लेकर सावधानी शुरू से ही अच्छी दिखाई गयी परन्तु एयरपोर्ट पर जहाँ असल सख्ती की जरूरत थी वहाँ लोकतान्त्रिक अभिजात उदार राष्ट्रवाद दिखाया गया और जिनहे नरमी और वक्त दिया जाना चाहिए था वह अधिनायकी निरंकुशतावाद प्रदर्शित किया गया ।
यह ध्यान रहे की दुनिया में अभी जहा इस महामारी की भयानक मार पड़ी है वहां भी लॉकडाउन बेहद सुविचारित व सेलेक्टिव तरीके से लाया गया है जबकि उनकी आबादी संपूर्ण लॉकडाउन को हर स्तर पर झेल सकती है। परन्तु भारत में जहा पूरा लॉकडाउन एक बेहद खतरनाक और परेशानीजनक फैसला है और जिसकी एकमुश्त जरूरत नहीं थी, वहाँ इसे एक अधिनायकी त्वरित फरमान में ला दि या गया। मुझे इस लॉकडाउन से सचमुच विशाल संभावित खतरा दिखाई दे रहा है और आज भी यह देश के करोडो लोगो को हो रही अनेकानेक परेशानियों के जरिये यह मुसीबत साफ साफ नज़र आ रही है। कही लोगो पर कीटनाशक छींटे जा रहे है , कही झुण्ड में खाना लेने के लिए लोग टूट रहे है जिसमे यहाँ तक की सोशल डिस्टन्सिंग का उद्देश्य भी इस फैसले से बुरी तरह फ़ैल हुआ है। आम तौर पर अकड़ दिखने वाले प्रधानमंत्री इस पर माफ़ी मांग चुके है।
मुझे मालूम है की देश का मिडिल क्लास चाहे महानगरों का बाशिंदा हो या गावो का इस फैसले को सर आँखों पर ले रहा है। देश के सोशल मीडिया का 99 फीसदी यूजर इस फैसले पर वाहवाही कर रहा है। इनमे सरकार के हर गलत फैसले पर दूम हिलाने वाले से लेकर सरकार का बेमतलब विरोध करने वाले तथा अपनी धार्मिक जातीय पहचान को सर्वाधिक प्राथमिकता देने वाले विरोधी सहित सभी मध्यवर्गी हैं। अगर इन सभी का मनोवैज्ञानिक परिक्षण किया जाये तो आप यह शर्तिया पाएंगे की यह वह वर्ग है जो बैठे रहकर भी अपनी पगाड़ के लिए आश्वस्त है और अमेरिका यूरोप का पिक्चर देख देखकर इसमें डर इस कदर चस्पा है जो देश के 70 फीसदी लोग जो लॉकडाउन से मर्माहत है उसके दर्द को करोना के अपनी साइकोफैन्सी के सामने सुनने को भी तैयार नहीं है।
यह वर्ग चाहता है की उसके घर पर सिक्योरिटी, सब्जी , राशन और सफाई जरूर मिले और इससे जुड़े आदमी सड़को पर एक्टिव जरूर रहे। परंतु देश के 70 फीसदी लोग जो सोशल मीडिया पर ज्यादा नहीं है, उनकी एक लाइन की यह आवाज़ की पेट में अनाज नहीं और हम करोना से क्यों डरे ? इतनी बड़ी बात मजबूती से अभिव्यक्त भी नहीं हो पायी और इतने बड़े स्टेटमेंट पर यह देश और इसके नियामक जबाब देने की स्थिति में नहीं तो यह फैसला क्यों नहीं महा जनविरोधी कहा जाये। देश के चंद अभिजातों के लिए दो हफ्ते और बहुसंख्यक जनता को दो घंटे का समय इस पर अब दुबारा कहने की जरूरत नहीं। पुलिस अभी इस संकट में जनता की कोई सम्बेदन शील सेवा नहीं कर रही, क्योंकि यह उसका न कभी चरित्र रहा है और न रहेगा। उसे पावरप्ले का मौका मिला है जिसे आज तक जनता को समझाते और मनाते नहीं देखा। अभी देश में कोई युद्ध और आतंरिक अशांति का काल नहीं जो पुलिस लोगो को जीने के सर्वाधिक मौलिक अधिकार पर भी लाठिया बरसाए।
कुल मिलाकर करोना के सबसे कम असर झेलने वाले देश भारत में करोना के नाम पर सबसे ज्यादा तबाही की स्क्रिप्ट जो लॉकडाउन के मार्फ़त लिखी गयी है , उस पर सोशल मीडिया में अब मैंने इस पोस्ट के बाद कोई प्रतिक्रिया नहीं देने का फैसला किया है। .क्योंकि सोशल मीडिया पर अभिजात , कट्टर , असंवेद नशील , मानसिक गुलाम और खेमेबाज लोगी की बहुतायत है और लार्जर पिक्चर पर गौर करने वाले ना के बराबर।। क्योंकि लॉकडाउन के समर्थक लोगो की दो ही बात सामने आयी है की अमेरिका और यूरोप का पिक्चर नहीं दिखाई पड़ रहा है और दूसरा जान बचे तो लाख उपाय। भाई भारत में भी विगत में आयी आपदाओं के अनवरत सिलसिले का पिक्चर जिस तरह से अनावश्यक समझ यूरोप अमेरिका में नहीं दिखाया गया उसी तरह भारत में यूरोप और अमेरिका का पिक्चर दिखाकर खौफ तो पैदा कर दिया गया परन्तु भारत में करोना के बहाने उपजी बेहिसाब और बेमिसाल समस्याओं का पिक्चर दिखाया जाये तो तब पता चलेगा की एक 1000 लोगो तक संक्रमित यह बीमारी कम से कम 1000 मिलियन लोगो को जीने और कमाने के अधिकार से कैसे महरूम कर चुकी है।
यह ठीक है की करोना वायरस पर यह संपूर्ण तत्परता दिखाई गई परन्तु अब यही तत्परता देश में कम से कम व्यवस्थाजनित सभी स्थायी महामारियों यानि दुर्घटनाओं में मरने वाले हर साल डेढ़ लाख लोग , घातक बिमारियों से मरने वाले असमय पच्चीस लाख लोग , भ्रष्टाचार , अत्याचार, अन्याय, अज्ञानता ,शोषण ,गैर बराबरी , जुगाड़ , भाईभतीजावाद, अभिजात्यवाद , पहचानवादी राजनीती और हर तरह की विरूपताओं के खिलाफ भी सुनिश्चित करनी होगी। अगर ऐसा हुआ तो मौजूदा शासक वर्ग का मै भी भक्त बनने को तैयार हूँ, बल्कि भक्त नम्बर वन और करोना पर अपने कमेंट के लिए करोड़ बार माफ़ी । ध्यान रहे मैंने इसमें पहचान और पॉपुलिज्म जैसे फालतू राजनीतिक उद्देश्य चिन्हित नहीं किये हैं।
15 अप्रैल तक चीजें बेहतर हो , मेरी भी यही कामना है। परन्तु यह लॉकडाउन जानकर किया गया महाअपराध था या डिक्टेटोरिअल रिहर्सल इसका जबाब हम एक दूसरे को एक महीने के उपरांत देंगे। जय मानव जय भारत जय विश्व।