Wednesday, July 13, 2022

मंदी और तेजी के बीच झूलती अर्थव्यवस्था का संक्रमण काल

 मंदी और तेजी के बीच झूलती अर्थव्यवस्था का संक्रमण काल  

        मनोहर मनोज
पिछले दो दशक में ऐसा पहली बार देखा जा रहा है जब अर्थव्यवस्था में निजी घरेलू क्षेत्र द्वारा किया जाने वाला निवेश इसके बचत दर की तुलना में कम हो गया है। अभी हाल में भारतीय रिजर्व बैंक की पेश सालाना रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति और भविष्य की संभावनाओं को लेकर जो बातें कही गई हैं वह देश की वृहद अर्थव्यवस्था के विभिन्न कारकों में एक चक्रीय असंतुलन को दर्शा रही है। असंतुलन इस बात को लेकर है कि देश के घरेलू क्षेत्र ने अपने आय अतिरेक को निवेश के बजाए बैंक व वित्तीय सुरक्षित जमाओं में लगाने को जहां तवज्जो दी है वही दूसरी तरफ सरकारी क्षेत्र की तरफ से की जाने वाली बचत में गिरावट दर्ज हुई है। इस परिप्रेक्ष्य में पूंजीगत निवेश में आई कमी से कहीं न कहीं देश में स्फीतिकारी कारकों को बढावा मिल रहा है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में निजी घरेलू क्षेत्र की बचत दर मात्रा सकल राष्ट्रीय कमाई की 11.5 फीसदी है जो पिछले दो दशक में सर्वाधिक है जो साल 2004 के बाद से पहली बार निवेश दर को पीछे छोड़ ती दिख रही है। माना जा रहा है कि देश केे घरेलू क्षेत्र द्वारा गैर वित्तीय निवेश में दिखायी गई अरूचि कोविड की वजह से थी। इस दौरान अर्थव्यवस्था में व्याप्त असुरक्षा की वजह से हमारा घरेलू क्षेत्र पूंजीगत निवेश से कतराता रहा। इस अवधि में वित्तीय जमाओं के महत्वपूर्ण उपकरण म्यूचुअल फंड में अकेले 2.5 लाख करोड़ का रिकार्ड बचत दर्ज हुआ। वही इसके विपरीत कोविड राहत खर्चों की वजह से सरकारी क्षेत्र के वित्तीय बचत में आई क मी से सकल राष्ट्रीय बचत दर वर्ष 2021 में 29.4 फीसदी से घटकर 27.8 फीसदी रह गई है।
कहना होगा कि अब रिजर्व बैंक का ज्यादा ध्यान देश में मौजूदा मुद्रा स्फीति बढोत्तरी की तरफ है जिसकी वजह से देश में मैन्युफैक्चरिंग यानी विनिर्माण उत्पादों की महंगाई तेजी से बढी है जिसका असर कही न कहीं खुदरा मुद्रा स्फीति दरों पर भी तीव्रता से पड़ा है। गौरतलब है कि देश में खुदरा मुद्रा स्फीति दर यानी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पिछले आठ वर्षों में सर्वाधिक 8 फीसदी तथा थोक मुद्रा स्फीति दर करीब 15 फीसदी तक जा चुकी है। आम तौर पर थोक मुद्रा स्फीति दर खुदरा दर से कम ही होती रही हैं लेकिन अभी थोक मूल्य सूचकांक का खुदरा मूल्य सूचकांक से दोगुना होना अर्थव्यवस्था के लिए बेहद हानिकारक है। गौरतलब ये भी है कि मुद्रा स्फीति की इस बढोत्तरी में गैर खाद्य पदार्थों का योगदान ज्यादा है। रिजर्व बैंक की इस रिपोर्ट से तथा रिजर्व बैंक द्वारा अभी मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने को लेकर उठाये जाने वाले कदमों से भी अब यह साफ हो गया है कि बैंक अब अगले दो साल नियंत्रित मुद्रा प्रसार यानी उंची ब्याज दर के दौर को बनाये रखेगा। वजह ये है कि पहले नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था में जो सुस्ती आई तथा फिर कोविड के काल में अर्थव्यवस्था की जो बंदी हुई उसके उपरांत अर्थव्यवस्था को अभी अभी जो नयी उड़ान भरने का अवसर मिला वह तमाम औद्योगिक लागत उत्पादों की बेहद उंची कीमतों के अवरोध से दो चार रहा है। सिमेंट, इ्र्रस्पात, कोयला, बिजली, पेट्रोलियम, रसायन व प्लास्टिक उत्पादों की बढती कीमत से देश में नये  उत्पादन की लगत बढ़ गयी है। रूस-यूक्रेन युद्ध तथा दुनिया के सबसे बड़े मैन्युफैक्चरिंग मुल्क चीन में लगे लाकडाउन की वजह से भी आयातित लागत उत्पादों की महंगाई को और बढावा मिला है। हालांकि इस दौर में भारत सरकार द्वारा पेट्रोल,डीजल व उज्जवला ग्राहकों की एलपीजी की कीमतों में क्रमश:10 व 8 रुपये प्रति लीटर तथा 200 रुपये प्रति सिलेंडर की कटौती एक फौरी राहत लेकर आई है। पर यह कटौती देश में खुदरा मुद्रा स्फीति दर पर मामूली असर ही डाल पा रही है क्योंकि थोक मूल्य सूंचकांक खुदरा दर से करीब दोगुना ज्यादा है। माना जाता है कि थोक दर में आई एक फीसदी की कटौती खुदरा दरों में सिर्फ एक चौथाई की कटौती ला पाती है।
मौजूदा आर्थिक परिदृश्य के मद्देनजर भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर अभी यही माना जा सकता है कि वर्ष 2016 से लेकर 2021 तक अर्थव्यवस्था जहां मांग की कमी झेल रही थी वह अर्थव्यवस्था अब मांग के मुकाबले नये निवेश की कमी झेल रही है। वित्तीय बचत की बढोत्तरी की वजह से जहां  पूंजीगत निवेश प्रभावित हुआ था वह रिजर्व बैंक की नयी मुद्रा नीति की वजह से अभी भी प्रभावित ही रहेगा। घरेलू क्षेत्र जो देश में बचत का सबसे बड़ा श्रोत है जिसे अर्थव्यवस्था की बढोत्तरी का भी एक बड़ा पैमाना माना जाता है उसे अब पूंजीगत निवेश में स्थानांतरित किये जाने के लिए सरकार की तरफ से कई छूटों की दरकार है। इधर वित्त मंत्रालय की तरफ से विभिन्न मंत्रालय और विभागों में बिना व्यय के शिथिल पड़े फंडों को आगामी दिनों में तेजी से खर्च किये जाने का निर्देश दिया गया है। जाहिर है इससे सरकार की बचत और कम होगी।  
 कुल मिलाकर जरूरत इस बात की है कि देश में बचत-निवेश-उत्पादन-रोजगार- आय-मांग-के चक्र के जरिये पुनरनिवेश की प्रक्रिया को निरंतर व त्वरित रूप से चलायमान रखा जाये  जिससे सरकारों के कर राजस्व में यथोचित बढोत्तरी हो तथा संसाधन हस्तानांतरण की प्रक्रिया को बढावा देकर विकास व कल्याण की प्रक्रिया को सुचारू रखा जाए। इसके लिए सरकार तथा इसके सभी नियामकों की तरफ से भी बड़ी ही सूझ बूझ तथा अचूक आर्थिक निर्णयों व नीतियों को रुपायित करने की दरकार है। अभी मुद्रा स्फीति को पांच फीसदी के एक सामान्य दर पर लाना सबसे बड़ी चुनौती है, जिसमे जाहिर है भारतीय वित्त व मौद्रिक व्यवस्था के सबसे बड़े नियामक रिजर्व बैंक की भूमिका  ज्यादा अहम है। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था में पहले लंबे चले मंदी के दौर की समाप्ति के बाद जो अब तेजी का दौर आया है उसमें आई इन नयी अड़चनों के निराकरण का  सबको इंतज़ार है ।

No comments:

Post a Comment