Wednesday, July 13, 2022

भारतीय अर्थव्यवस्था 2022 में अभूतपूर्व उछाल लेगी बशर्ते.

 भारतीय अर्थव्यवस्था 2022 में अभूतपूर्व उछाल लेगी बशर्ते...

                                                            मनोहर मनोज
यदि कोविड महामारी की तीसरी लहर ने दस्तक नहीं दी और इसके साथ ही इसके नये खतरनाक वेरियेंट ओमिक्रेन के दहशत पर काबू पा लिया गया तो यकीन मानिये साल 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व उछाल दर्ज करेगी। अभी मौजूदा स्थिति पर गौर करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था के कु लांचे भरने की जमीन बेहद अनुकूल दिखाई पड़ रही है। कहना होगा 2021 के उत्तरार्ध में कोविड की दूसरी मारक लहर से उबरने के बाद भारत अर्थव्यवस्था के अनेकानेक मानकों पर जो उभार दर्ज हुआ है वह आगामी साल 2022 के लिए आशाओं के नये आयाम बुन रहा है। इस क्रम में कोविद के करीब 150 करोड़ टीके देते हुए वर्ष 2021 की दूसरी छमाही में जहां औद्योगिक उत्पादन में बढोत्तरी, बाजार मांग में अभूतपूर्व बढोत्तरी, बुनियादी उद्योगों की तेज पकड़ती रफतार, विकास जनित आयात में बढोत्तरी से विदेशी मुद्रा कोष का  हो रहा खर्च, नये इपीएफ खातों में बढोत्तरी से रोजगार दर में उपजा आशावाद, शेयर बाजारों में दर्ज हो रहा अभूतपूर्व उछाल, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आई मजबूती, बैंकों के एनपीए में आ रही कमी तथा सरकार के राजस्व में हो रही बढोत्तरी तथा वित्तीय घाटे के लक्ष्य से कम होने के इनकान से वर्ष 2022 क ी अर्थव्यवस्था के लिए एक बेहतर जमीन दिखायी पड़ रही है। पर इन सबसे इतर नये साल 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था का जो सबसे बड़ा सवाल बनेगा वह ये कि सरकार अपने तई लायी गई सार्वजनिक परिसंपत्ति मौद्रिकीकरण योजना के रोडमैप पर किस तरह काम करने जा रही है, इसके निर्धारित लक्ष्य को कितना हासिल करने जा रही है?  कुल मिलाकर मोदी सरकार का यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था की किस तरह की दशा उत्पन्न करने जा रहा है साथ ही किस तरह की दिशा निर्धारित करने जा रहा है, वर्ष 2022 में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा। पर इस पहलू की मीमांसा करने के पहले साल 2021 में घटित उन दो घटनाक्रमों पर नजर दौड़ाना भी बेहद महत्वपूर्ण होगा जिसके मायने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम है। पहला ये कि मोदी सरकार ने कोविड 19 महामारी के उपरांत पेट्रोलियम उत्पादों पर भारी करारोपण कर अपने राजस्व संतुलन को साधने का जो प्रयास किया था वह लंबे अरसे तक देश की आम जनता पर भारी बोझ का बायस बना।  इस बोझ से निजात तब मिली जब कुछ महीने पूर्व हु ए उपचुनावों में हार से घबड़ाकर सत्तारूढ एनडीए ने पेट्रोल व डीजल की क ीमतों में उत्पाद कर की कटौती के जरिये क्रमश: दस व पांच रुपये की कटौती की। इस कदम से ना केवल आम जनता को राहत मिली बल्कि मुद्रा स्फीति की दर को एक सही सीमा तक सीमित करने में मदद मिली जिस कदम की भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने भी सराहना की। दूसरा कदम मोदी सरकार ने जो उठाया वह भी एक राजनीतिक दबाव के तहत यानी यूपी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर लिया गया, वह था किसानों के करीब एक साल से चल रहे महाआंदोलन की प्रमुख मांग तीन कृषि कारपोरेट कानूनों की वापसी का। इससे किसान आंदोलन समाप्त हो गया। परंतु किसान संगठनों की दूसरी मुखय मांग एमएसपी को कानूनी दर्जा को लेकर सरकार द्वारा कोई एकमुश्त घोषणा ना कर एक विशेषज्ञ कमेटी गठित कर उसमे किसानों के प्रतिनिधियों को शामिल करने की बात कही गई है। दरअसल वर्ष 2021 के उत्तरार्ध में मोदी सरकार द्वारा लिये गए ये दोनो पहल वर्ष 2022 की भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़े उत्प्रेरक का काम कर सकती हैं। यदि केन्द्र व राज्य सरकारें अपने राजस्व में हो रही बढोत्तरी को देखते हुए अपने उत्पाद व वैट शुल्कों में कटौती कर पेट्रोलियम कीमतों में और कमी लाती हैं तो वर्ष 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था  के विकास दर पर यह सकारात्मक असर डालेगा। दूसरा यदि एमएसपी को कानूनी दर्जा मिल जाता है तो भारतीय कृषि के लिए अबतक का सबसे क्रांतिकारी परिवर्तन होगा। यह एक ऐसा कदम होगा जो भारतीय कृषि की उत्पादकता में व्यापक बढोत्तरी लाने के साथ साथ सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की भागीदारी बढाने के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नया संबल प्रदान करेगा। दरअसल अंग्रेजी मीडिया में जो कृषि विशेषज्ञ तीन कृषि कारपोरेट कानून को वापिस लिये जाने के कदम को सुधारों से पीछे हटने की कवायद मान रहे हैं दरअसल ये लोग भारतीय कृषि की सामाजिक आर्थिक व पेशेवर परिस्थितियों से बेहद अनजान हैं। एमएसपी प्रणाली में अधिकाधिक कृषि उत्पादों को शामिल करना, एमएसपी की दरों को लागत युक्त वाजिब बनाना, कृषि उत्पादों के मूल्यों को समयानुसार भुगतान सुनिश्चित करना तथा इन सभी को एक व्यापक कानूनी दायरा प्रदान करना ही सबसे बड़ा सुधार है। इसके बाद ही कारपोरेट क्षेत्र के कृषि क्षेत्र में निवेश को आकर्षित किये जाने का प्रश्र उठता है।
इन दोनो कदमों के इतर साल 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था का समूचा मयार मोदी सरकार के सार्वजनिक परिसंपत्ति के मौद्रिकीकरण अभियान पर निर्भर करेगा। बताते चलें वर्ष 2021-22 के बजट क ी घोषणा के मद्देनजर अगले चार साल यानी वर्ष 2025 तक सार्वजनिक परिसंपत्त्यिों सड़क राजमार्ग, रेलवे, पावरग्रिड, बिजली उत्पादन, गैस पाइपलाइन, बंदरगाहों, टेलीकाम टावर, शहरी रियल इस्टेट, हवाई अड्डे, स्टेडियम व खानों को निजी उपयोग की इजाजत देकर करीब कुल छह लाख करोड़ रुपये की उगाही किये जाने का एक रोड मैप प्रस्तुत किया। यह एक ऐसी कदम था जो विगत में नयी आर्थिक नीति के तहत निजी व सार्वजनिक भागीदारी व एक नियमन व किराया प्राधिकरण के तहत निजी सार्वजनिक प्रतियोगिता के माडयूल से बिल्कुल अलग दिखायी पड़ा। इस कदम में सरकार का ना तो कोई नीति वक्तव्य था और ना ही कोई लेवल प्लेयिंग की अवधारणा। कुल मिलाकर इस कदम से मोदी सरकार पर सब कुछ बेचूए का आरोप लगता रहा है वह आरोप और परिपक्व होता दिखायी पड़ा । बताते चलें इस कदम के जरिये मोदी सरकार ने जो अपना रोडमैप बनाया है उसके तहत मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 में 88 हजार करोड़, 2022-23 में 162 हजार करोड़, 2023-24 में 179 हजार करोड़, 2024-25 में 167 हजार करोड़ रुपये की उगाही का लक्ष्य है। अलग अलग सेक्टर की बात करें तो सर्वाधिक राजमार्गो के जरिये 160 हजार करोड़, रेलवे से 152 हजार करोड़, बिजली ट्रांसमिशन से 45 हजार तथा बिजली उत्पादन से 40 हजार करोड़, गैस पाइपलाइन से 24 हजार करोड़, टेलीकाम से 35 हजार करोड़, भंडार गृहों से 29 हजार करोड़, खानों से 29 हजार करोड़, बंदरगाहो ंसे 13 हजार करोड़, स्टेडियमों से 11 हजार करोड़ तथा शहरी रियल इस्टेट से करीब 15 हजार करोड़ की उगाही का लक्ष्य है।
कुल मिलाकर इन सभी सार्वजनिक परिसंपत्त्यिों से उपयोग शुल्क के जरिये आमदनी प्राप्त करने का आइडिया उपरी तौर पर सही लगता है। सरकार के सभी संसाधन चाहे वह भौतिक आधारभूत हों या फिर इसके मानव संसाधन ही क्यों ना हो, उनकी समुचित उत्पादकता व आमदनी निषेचित किया जाए। पर इन सभी कदमों को बिना एक समूचा परिचालन माडयूल व कार्य प्रणाली लाये तथा बिना एक बड़े नीतिगत वक्तव्य जारी किये जो लाया गया है वह कई सारे संदेहों को जन्म देता है तथा मोदी सरकार के बारे में बनी इस धारणा को भी संपुष्ट करता है कि यह सरकार अपना सब कुछ कारपोरेट को बेच देना चाहती है। कुल मिलाकर आगामी 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था का समूचा सूरतेहाल व दारोमदार इन्हीं कदमों से निर्धांरित होने जा रहा है बशर्ते कोविड महामारी की नयी धमक फिर से सबकुछ मटियामेट ना कर दे।

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