Wednesday, July 13, 2022

बैंक डिफाल्टरों पर सख्ती बरतने का वित्त मंत्री का बयान सराहनीय

 बैंक डिफाल्टरों पर सख्ती बरतने का वित्त मंत्री का बयान सराहनीय

मनोहर मनोज
अभी कुछ दिन पूर्व अपने कश्मीर दौरे के दौरान केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बयान दिया जिसमे उन्होंने सरकार द्वारा देश के सभी बैंक डिफाल्टरों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई किये जाने की बात कही। उन्होंने यह कहा कि देश में बैंकों के साथ धोखाधड़ी कर या उनसे लिये गए कर्ज की रकम पचाने वाले देश के अंदर और विदेश भागने वाले डिफाल्टरों की की एक बहुत बड़ी तादात है जिनसे सरकार लगातार 
 सख्ती   बरतने की अपनी नीति पर काम कर रही है।
 कहना होगा पिछले एक दशक के दौरान देश में जिस तरह बैंकों की अनुत्पादक परिसंपत्ति यानी एनपीए की रकम छह लाख करोड़ रुपये से करीब दोगुनी बढकर उनकी कुल परिसंपत्ति की करीब बारह फीसदी हो गई थी, वह देश की अर्थव्यवस्था की एक बेहद चिंतनीय तस्वीर उपस्थित कर रही थी। देश के आर्थिक भ्रष्टाचारियों के लिए तो बैंक ही सबसे बड़े साफ्ट टार्गेट बने हुए थे और कर्ज लेकर लापता होने व इन्हें नहीं चुकाने वालों की एक लंबी सूची और इसका एक विशाल स्वरूप देश में निर्मित हुआ जा रहा था। एक तरह से लाइलाज बन चुकी इस बैंकिंग बीमारी के इलाज को लेकर वित्त मंत्री का यह संकल्प बेहद सराहनीय है। यह बताना जरूरी है कि देश में अभी विभिन्न  बुनियादी समस्याओं और मूलभूत राष्ट्रीय लक्ष्यों के मार्ग में जो कुछ बड़े अवरोध हैं मसलन अनेकानेक स्वरूपों में उत्प्रकटित प प्रसरित हो रहे  भ्रष्टाचारों, बेलगाम बढता कालाधन व बेनामी संपत्ति का आकार, कर चोरी व कर विवादों इत्यादि के साथ साथ बैंकों के एनपीए का बढता दैत्याकार भी इसमे प्रमुख रूप से शामिल रहा  है।
गौरतलब है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार का सर्वप्रमुख स्वरूप यानि मौद्रिक भ्रष्टाचार अलग अलग दौर में अलग अलग रूपों में अवतरित होता रहा है। मसलन 1990 के दशक में देश में कुकरछत्ते की तरह उग आए नान बैंकिग कंपिनयों का दौर आया जिन्होंने लोगों को असामान्य रूप से ज्यादा ब्याज का लालच देकर उनसे अरबों खरबों की जमाएं ली और एक अरसे बाद इनमे अधिकतर कंपनियां भूमिगत हो गईं। इनके करोड़ो जमाधारकों की पेशानी पर बल पड़ गया, किसी के  बेटियों की शादी रुक गई, बच्चों की पढाई बाधित हो गई, किसी का इलाज रुक गया। फिर दो हजार के दशक में रियल इस्टेट कंपनियों ने अपने प्रीलांच हाउसिंग स्कीमों के लुभावने प्रस्ताव दिखाकर निवेशकों से लाखों करोड एैंठकर रफूचक्क र होने का दौर देखा गया।  फिर 2010 के दशक में सस्ती मुद्रा नीति व रियायती कर्ज नीति का फायदा उठाकर देश के तमाम  छोटे बड़े व बड़े कारपोरेट कारोबारियोंंं ने बैंकों से जमकर क र्ज लिये और फिर उसके बाद सभी को मालूम ही हैं कि कहानी क्या घटित हुई?  विदेशों में भागे  कर्जदारों में विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी, मेहूल चौकसे के नाम से अबतो सभी  लोग वाकिफ  हैं। कहना होगा जब पीएनबी बैंक से स्विफट स्कीम का फायदा उठाकर मामा भांजे यानी चौकसे व नीरव मोदी द्वारा करीब 11 हजार करोड़ रुपये की विशाल कर्ज राशि के गबन का मामला आया तब इसके ठीक बाद देश की जांच एजेंसियों ने इसी सरीखी करीब एक दर्जन और बैंकमारी की घटनाओं का पता लगाया जिनकी रकम भी सैकड़ो व हजार करोड़ रुपये में पायी गई थी। कहना होगा  जब इन सभी बैंकों के कर्ज घोटाले उजागर हो रहे थे तब हमारे देश में बैंकों की कर्ज नीति के हैरतनाक रवैये को लेकर भी लोगों का गमोगुस्सा भी  चरम पर पहुंच रहा था । बात ये उभरी कि जो बैंक एक छोटे कर्ज की रकम लेने के लिए कर्जदार को नाकोचने चबवा देते हैं वे  बैंकर हजार करोड़ में कर्ज लेने वालों के प्रति आखिर इतनी ढिलाई व लापरवाही कैसे दर्शाते है? सवाल है कि देश के बैंकों ने अबतक अपनी कर्जनीति को बिल्कुल नीतिसम्मत  व पारदर्र्शी क्यों नहीं बनाया है? जब लोगों  को दिये जाने वाले कर्जे की संस्तुति बैंकरों के विवेक पर छोड़ दी जाएगी तो उसमे भ्रष्टाचार तो होगा ही साथ साथ निवेश व कर्ज की असुरक्षा भी चरम पर होगी। आज तक हमारी बैंकिंग व्यवस्था में यह अवधारणा नहीं  पनप पायी कि कोई भी कर्ज की रकम बिना सममूल्य जमानत राशि लिये  सुरक्षित हो ही नहीं सकती। पर हमारे बैंकरों ने छोटे कर्जदारों को तो कही का ना छोड़ा पर बड़े कर्जदारों के साथ तो उन्होंने एक तरह से कल्युजिव करप्शन यानी साझा भ्रष्टाचार की मिशालें पेश की है। यही वजह है कि अबतो बैंकों के सर्वोच्च पदाधिकारियों के कटघड़े में जाने की खबरें आने लगी हैं।
बहरहाल वित्त मंत्री द्वारा बैंक डिफाल्टरों पर कड़ी कार्रवाई कर उनसे कर्ज वसूली की रफतार को तीव्र बनाने को लेकर अपने समाधान सूत्रों का जो खुलासा किया गया है उसमे उन्होंने बैंक की फंसी पूंजी की वसूली के चार सूत्रों की बात कही  है। उनके ये सूत्र चार आर पर आधारित हैं  जिसमे पहला रिकोगनीशन यानी कर्जदारों की पहचान-दूसरा रिजोल्युशन यानी सुलह-समाधान-तीसरा रिकैपिटलाइजेशन यानी पूनरपूंंजीकरण और चौथा रिफोर्म यानी सुधार इ न चारों का वित्त मंत्री ने उल्लेख किया है।  गौरतलब है कि वित्त मंत्री के इस संकल्प की सच्चाई अभी कुछ दिन पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा देश के बड़े बैंकरों के साथ हुई बैठक में दी गई इस जानकारी से भी साबित होती है जिसमे उन्होंने पिछले सात साल के दौरान देश के बैंकों द्वारा कुल करीब पांच लाख करोड़ रुपये की की फंसी पड़ी परिसंपत्ति की उगाही की बात कही। इसके साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह भी उल्लेख किया कि उनकी सरकार  राष्ट्रीय बैंकिंग परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कोष योजना के जरिये करीब दो लाख करोड़ रुपये की फंसी पड़ी परिसंपत्ति की और रिकवरी करेगी। कही ना कही प्रधानमंत्री का यह बयान मौजूदा बैकिंग परिदृश्य के लिए एक बेहद आशाजनक तस्वीर उपस्थित करता है।
इसके इतर अभी केन्द्रीय प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से एक सूचना जारी की गई है जिसमे यह बताया गया कि निदेशालय द्वारा अभी तक विजय माल्या, मेहूल चौकसे व नीरव मोदी की भारत स्थित करीब 9300 करोड़ सममूल्य की परिसंपत्ति उनके कर्जदाता सार्वजनिक बैकों को स्थानांतरित की जा चुकी है।
कहना होगा कि देश में ऐसे  मानसिकता वाले भ्रष्टाचारियों की एक बहुत बड़ा तबका है जो बैंकों से बड़े बड़े कर्ज लेकर उन्हें डकारने की जुगत में लगा रहता है। इस मानसिकता को तभी बदला जा सकता है जब देश में एक फुलप्रूफ नयी कर्ज व निवेश संस्कृति स्थापित की जाए जिसमे कोई भी कर्ज किसी भी सूरत में ना डूबे उसे लेकर हर तरह के नीतिगत व तकनीकगत  उपाय सुनिश्चित किये जाएं। मजे की बात ये है कि देश में अभी माइक्रो फाइनेन्स व स्वसहायता समूहों द्वारा लिये जाने कर्ज की अदायगी का आंकड़ा सौ फीसदी देखा जाता  है परंतु बड़े बड़े उद्योगों मसलन आटोमोबाइल, स्टील, बिजली, मोबाइल व संचार कंपनियोंं, रियल इस्टेट, उड्डयन तथा अन्य इन्फ्रा कंपनियों के कारपोरेट समूह द्वारा लिये जाने वाले कर्ज बेहद असुरक्षित दशा में क्यों  हैं?
कहना होगा बढता एनपीए देश की  बैंकिंग व्यवस्था के सीधे अस्तित्व पर हीं प्रश्न  चिन्ह खड़ा करता है जिसका समाधान  एक व्यापक, समरूप, पारदर्शी तथा स्वत: सुरक्षित जमानत के प्रावधानों के जरिये हासिल किया जा सकता है। इसे लेकर मौजूदा मोदी सरकार की पहल काबिलेतारीफ है परंतु देश में  डिफाल्टरों की एक लंबी सूची है जिसमे रियल इस्टेट, एनबीएफसी, कारपोरेट के तमाम मामलों का निपटारा अभी बाकी है और इस मामले में  आईबीबीआई अभी नौ दिन चले अढ़ाई कोस की ही चाल में चल रही है। 
लेखक प्रसिद्द पुस्तक ए क्रूसेड अगेंस्ट करप्शन के लेखक हैं 

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