Wednesday, July 13, 2022

कोविड काल में तो दुनिया भ्रष्टाचारों से और ज्यादा दो चार हुई

 कोविड काल में तो दुनिया भ्रष्टाचारों से और ज्यादा दो चार हुई

मनोहर मनोज
अभी अभी जो अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार रोधी दिवस मनाया गया उसके मायने कुछ ज्यादा ही ध्यानाकर्षित करने वाले थे। मतलब ये था कि कि पिछले करीब दो सालों से एक अप्रत्याशित व अभूतपूर्व महामारी का सामना कर रही दुनिया ने सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचारों की हरकतों से भी ज्यादा दो चार हुई। व हरकत जो सामान्य लीक से हटकर और ज्यादा क्रूर थी। कहना होगा कोविड महामारी के मद़देजनर जहां समूचा जनसमुदाय कोविड आपदा  के बुनियादी राहत व स्वास्थ्य सुविधाओं को हासिल करने की आस लगाया हुआ था वही जनता अपने सरकारों की नौकरशाही के जरिये भ्रष्टाचार,असंवेदनशीलता, स्वविकेक अधिकारों के दुरुपयोग, राहत कोष के बंदरबांट तथा निजी अस्पतालों द्वारा की जा रही अभूतपूर्व लूट का भी सामना कर रही थी। दुनिया भर के देशों के भ्रष्टाचारों की सूची व रैंकिंग निर्मित करने वाली ट्रांन्सपरेन्सी इंटिरनेशनल ने तो इस कोविड महामारी को दुनिया के कई देशों के हुक्मरानों के लिए सार्वजनिक फंड क े दुरुपयोग करने , निविदा प्रदान करने में अनियमताएं बरतने के साथ साथ लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचले जाने का भी गंभीर इल्जाम लगाया। ट्रांसपरेन्सी इंटरनेशनल की अध्यक्षा डेलिया फरेरा रुबियो ने तो यहां तक कहा कि कोविड 19 सिर्फ एक स्वास्थ्य और आर्थिक संकट नहीं है बल्कि पूरी दुनिया के लिए यह भ्रष्टाचारों का भी एक संकट रहा है जिसका बेहतर प्रबंध करने में हम विफल हो रहे हैं। टीआई संस्था ने माना कि कोविड-19 काल में दुनिया के तमाम देशों में मौजूद संरचनात्मक भ्रष्टाचारों ने अपना ज्यादा ही विद्रूप रूप अख्तियार किया जिससे कोविड 19 को लेकर किया जाने वाला राहत कार्य बाधित हुआ।
भ्रष्टाचार और लोकतांत्रिक अधिकारों का किस तरह से कोविड काल में हनन हुआ उसका ब्यौरा विस्तृत है। क्योंकि भ्रष्टाचार की रोकथाम करने के मामले में दुनिया के दो तिहाई देशों का अंक पचास से नीचे है वही कई देशों में निरंकुश व अधिनायक प्रवृति वाले शासकों ने जनता के मौलिक अधिकारों का हनन किया। सबसे पहले भारत की बात करें तो उपरोक्त दोनो बातें यहां भी भली भांति देखी गईं। यहां भी भ्रष्टाचार का टीआई सूचकांक गत वर्ष के 76 पायदान से बढकर वर्ष 2021 में 86 हो गया तथा भारत के भ्रष्टाचार रोकथाम को लेकर किया जाने वाला प्रयासों का अंक मात्र 40 था जो टीआई के औसत स्कोर 43 से भी नीचे था। कोविड 19 में लौकडाउन के नाम पर करोड़ों लोगों को अपने स्वजनों से दूर रहने के लिए विवश कर उन्हें हजारों किलोमीटर दूर स्थित अपने ठिकाने पर जीते मरते पैदल चलने के लिए विवश किया गया। इतना ही नहीं राहत कोष के चंदे सरकार के आधिकारिक कोष में ना लेकर एक नये गठित कोष में लिये जाने के इल्जाम लगे।
दुनिया के आंकड़े पर गौर करें तो  ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के इस साल का भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (सीपीआई) ने यह साबित किया कि दुनिया के अधिकतर देशों ने  इस दौरान भ्रष्टाचार से निपटने में बहुत कम या कोई प्रगति नहीं की है और दो-तिहाई से अधिक देशों का स्कोर 50 से नीचे देखा गया। टीआई के विश्लेषण  ने तो यह साफ साफ जता दिया कि कोविड-19 न केवल एक स्वास्थ्य और आर्थिक संकट है, बल्कि एक भ्रष्टाचार संकट भी है, जिसके घातक प्रभावों के कारण असंख्य लोगों की जानें चली गई।  टीआई ने तो भ्रष्टाचार से ग्रसित देशों को यह सुझाव तक दे डाला कि उनके लिए यह आवश्यक है कि वे अपनी 1. निगरानी संस्थानों को मजबूत करें और यह सुनिश्चित करें कि संसाधन उन लोगों तक पहुँचें जिनकी सबसे अधिक ज़रूरत है 2. खुला और पारदर्शी अनुबंध सुनिश्चित करें क्योंकि यह माना गया कि कई सरकारों ने कोविड की वजह से खरीद प्रक्रियाओं में भारी ढील दी तथा जल्दबाजी व अपारदर्शी प्रक्रियाओं से भ्रष्टाचार और सार्वजनिक संसाधनों के दुरुपयोग के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान किया। 3 टीआई ने यह सुझाव दिया कि नागरिकों को स्पेस प्रदान कर लोकतंत्र की रक्षा सुनिश्चित की जाए। क्योंकि कई सरकारों ने कोविड काल में संसदों को निलंबित करने, सार्वजनिक जवाबदेही तंत्र को त्यागने और असंतुष्टों के खिलाफ हिंसा भड़काने के लिए इस महामारी का फायदा उठाया। नागरिक दायरों व स्पेस की रक्षा के लिए, नागरिक समाज समूहों और मीडिया के अधिकारों को नुकसान पहुंचाया गया। 4 सरकारें प्रासंगिक डेटा प्रकाशित करने में भी विफल रहीं।  
कहना होगा कि भ्रष्टाचार संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के मार्ग की प्रमुख बाधाओं में से एक है जिसे कोविड-19 महामारी ने और भी कठिन बना दिया। क्योंकि संकट के प्रभावों के आग में भ्रष्टाचार अक्सर और घी डालने का काम करता है। गौरतलब है कि दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली देश अमेरिका में इस दौरान भ्रष्टाचार की रैकिंग 2012 के बाद से अपने सबसे निचले स्थान पर पहुंच गया। करीब एक खरब डालर के अभूतपूर्व कोविड-19 राहत पैकेज की निगरानी के लिए अमेरिकी प्रशासन को भी भ्रष्टाचार की गंभीर चुनौतियों से दो चार होना पड़ा। इतना ही नहीं दुनिया भर के अन्य क्षेत्रों की तरह, अमेरिका में भी सरकारों ने कोविड-19 से लडऩे के लिए नागरिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने तथा विभिन्न राज्यों में आपातकाल लागू करने के रूप में असाधारण उपाय किए। इन प्रतिबंधों में वहां भाषण और सभा की स्वतंत्रता में कमी, कमजोर संस्थागत नियंत्रण व संतुलन तथा नागरिक समाज के लिए कम स्थान छोडने सभी शामिल थे।
फिलीपींस में कोविड 19 के बहाने मानवाधिकारों और मीडिया की स्वतंत्रता के उल्लंघनों की खबरें आर्इं। यूरोप के कई देशों में वहां के प्रशासन में पूर्ण पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव पाया गया। एशिया प्रशांत और अमेरिका में, कुछ सरकारों ने तो कोविड 19 का इस्तेमाल अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए किया लेकिन अपने नागरिकों को आपातकालीन सहायता के बिना छोड़ दिया। मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्र ीका में, देशों ने भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को कमजोर कर दिया, जबकि पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों ने निगरानी कम कर नागरिक स्वतंत्रता को और कम कर दिया।
अफ्रीकी देशों की बात करें तो सहारा जोन के देशों में जीवन की बढ़ती लागत, भ्रष्टाचार और आपातकालीन धन के दुरुपयोग किये जाने की खबरें आईं। लैटिन अमेरिकी देशों में  निकारागुआ,हैती और वेनेजुएला तो भ्रष्टाचार को लेकर निम्रतर प्रदर्शन करने वाले रहें। ट ीआई की रिपोर्टों पर गौर तरें तो कोविड 19 महामारी ऐसी आपदा बनी जिस ने  महिलाओं, लड़कियों, स्वदेशी समूहों, बुजुर्गों, प्रवासियों और एफ्रो-अमेरिकियों सहित कमजोर आबादी पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव डालने के साथ वहां उपजी गहरी सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को भी उजागर किया है। कोलंबिया जैसे देशों में तो कोविड काल मेंं सत्ता का एक खतरनाक केन्द्रीकरण देखा गया। अल सल्वाडोर में कोविड 19 संबंधित खरीद से संबंधित अनियमितताएंं और भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए । नॉर्वे की सरकार ने आपातकाल की स्थिति घोषित की जिसने संवैधानिक नियमों को चुनौती दी। कोविड-19 के कारण, कम से कम 11 यूरोपीय संघ के देशों में चुनाव देरी से हुए। कुल मिलाकर कोविड -19 महामारी ने समूची दुनिया में कानून के शासन से संबंधित गंभीर मुद्दों को उजागर कर दिया जिससे भ्रष्टाचार के साथ लोकतंत्र और भी कमजोर हुआ

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