Wednesday, July 13, 2022

मोदी सरकार के आठ साल अर्थव्यवस्था में कभी गिरावट तो कभी उछाल

 मोदी सरकार के आठ साल

अर्थव्यवस्था में कभी गिरावट तो कभी उछाल  
मनोहर मनोज
मोदी सरकार के पिछले आठ साल के  भारतीय अर्थव्यवस्था पर गौर करें तो  इसने एक तरह से  आंखमिचौनी का खेल दिखाया। कभी इसने  आशावाद की उंचाइयों को छूआ तो कभी यह निराशावाद के गर्त में भी गई, कभी खुशी तो कभी गम जताती रही। इन परिस्थितियों के लिए देश के राष्ट्रीय और अंतररराष्ट्रीय पटल पर  घटनाक्रम तो जिम्मेदार थे हीं बल्कि इस क्रम में मोदी सरकार द्वारा समय समय पर लिये गए फैसले भी जिम्मेदार थे। मोदी सरकार द्वारा कभी बेहद ठोस कदमों से तो कभी इसके गलत व जल्दबाजी में लिये गए फैसले से भी अर्थव्यवस्था में उतार व चढाव के हालात निर्मित हुए। इन सबके इतर भारतीय अर्थव्यवस्था को सदी की सबसे बड़ी महामारी कोविड-19 की एक बड़ी मार झेलनी पड़ी जिस पर दुनिया की महाशक्तियां भी बेबश साबित हुईं । परंतु पिछले आठ साल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का एक पक्ष ऐसा था जो इन सभी घटनाक्रमों से बेखबर रहकर कमोबेश निरंतर चलायमान रहा। भारतीय शेयर बाजार ने इस दौरान निरंतर उंचाइयों को छूआ। आठ सालों में मुंबई संवेदी सूचकांक करीब ढाई गुना तो एनएसई तीन गुना बढ़ा। दूसरी तरफ बड़े कारपोरेट घरानों के  मुनाफे में आशातीत बढोत्तरी दर्ज हुई जिनमे से कई दुनिया के सबसे अमीर व्यवसायियों की रैंकिंग में भी शुमार होते रहे।
पिछले आठ सालों में भारत सरकार की गरीबी निवारण योजनाओं और संसाधन हस्तानांतरण कदमों, आधारभूत क्षेत्रों के निर्माण तथा इलेक्ट्रानिक प्रशासन तथा डिजीटल लेन देन के क्षेत्र को निश्चित रूप से एक नया आयाम मिला। कहना होगा  एनडीए सरकार के शासन व प्रशासन तथा राजनीति में जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छाप निर्विवाद और निर्बाध रूप से दिखायी पड़ी उसका अक्श भारत की अर्थव्यवस्था पर भी भलीभांति दिखायी पड़ा। यही वजह है की  केन्द्र सरकार के सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों के निर्णय प्रक्रियाओं और क्रियाकलापों में  प्रधानमंत्री कार्यालय का बर्चस्व दिखायी पड़ा  और पीएम  नरेन्द्र मोदी का सीधा दखल व प्रभाव आभासित हुआ। नोटबंदी और कोविड की वजह से अचानक लायी गयी देशबन्दी जिससे अर्थव्यस्था को भयानक  पहुंची वह मोदी का फैसला था।  सामाजिक आर्थिक विकास की करीब दो दर्जन योजनाएं प्रधानमंत्री योजना के रूप में नवीनीकृत की गई । सब्सिडी व लीकेज को रोकने तथा अबतक अछूते पड़े उन तबके के लिए योजनाएं बनायी गई और ऐसी योजना जो  उनके जीवन पर सीधा असर डाल सकें। मिसाल के तौर पर बरसों से चली आ रही एलपीजी सब्सिडी को शनै: शनै: हटाकर उज्जवला योजना के जरिये गांवों के करीब नौ करोड महिलाओं को गैस कनेक् शन देना, देश के करीब तीस हजार गैर विद्युतीकृत गांवों का बिजलीकरण करना, करीब तीन करोड़ घरों में सौभागया योजना के जरिये बिजली कनेक्शन प्रदान करना, बैंकों की सुविधाओं से अछूते पड़े 45  करोड़ लोगों के बैंक खाते खोलना, कोविड महामारी की रोकथाम के लिए करीब दो सौ करोड टीके प्रदान करना,  राजमार्गों रेलमार्गों व जलमार्गों तथा हवाई अड्डों का  रिकार्ड मात्रा में  निर्माण तथा 11 करोड़ शौचालयों का निर्माण मोदी सरकार के अभूतपूर्व व उल्लेखीय कार्यों की सूची में माना जा सकता है।
मोदी सरकार के पिछले आठ सालों के भारत की अर्थव्यवस्था के प्रवाह पर नजर डालेंं तो 2014 में ही पिछले यूपीए सरकार के निम्र विकास दर, तीव्र मुद्रा स्फीति दर तथा अनिर्णय के दौर से धीरे धीरे निजात मिलनी शुरू हो गई। मोदी सरकार के पहले तीन साल में देश की आर्थिक विकास दर में विगत वर्षों की तुलना में बढोत्तरी दर्ज हुई जो करीब सात फीसदी तक पहुंची।  लेकिन नवंबर 2016 में भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार पर अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के क्रम में नोटबंदी लेकर मोदी सरकार ने यह सोचा कि इससे आतंकी व नक्सल नेटवर्क द्वारा जाली नोटों के उपयोग तथा नकद में रखे गए काला धन पर प्रभावी नकेल लगेगी। लेकिन यह कदम अर्थव्यवस्था के लिए उल्टा काफी हानिकारक साबित हुआ। इस कदम से सरकार को नये नोट जारी करने के एवज में  50  हजार करोड रुपये खरचने पड़े और देश के जीडीपी को करीब दो लाख करोड़ का अनुमानित घाटा उठाना पड़ा। इस कदम के पीछे हालाँकि सरकार का  इरादा सही था पर अति उत्साह व जल्दबाजी भरा यह कदम अर्थव्यवस्था का काफी नुकसान कर गई। इसके तुरंत बाद जुलाई 2017 में सरकार ने नयी जीएसटी प्रणाली भी लागू कर दी। इस कदम की तैयारी पिछले एक दशक से चल रही थी जिस पर  राजनीतिक आम सहमति बनाने में मोदी सरकार ने कड़ी  मिहनत की परंतु इस नयी रिजीम के अंतरगत देश के करदाताओं व व्यवसायियों की सभी व्यावहारिक जरूरतों का समाधान कर पाने में मोदी सरकार की कर मशीनरी व प्रशासनिक प्रणाली अक्षम साबित हुई। इस कदम के पांच साल बाद भी इसमे संशोधनों का दौर जारी है। नोटबंदी व जीएसटी से भारतीय अर्थव्यवस्था की गतिशीलता व तारतम्यता जो प्रभावित हुई उसका नतीजा 2017  से लेकर 2020  तक अर्थव्यवस्था में निम्र विकास दर तथा  मंदी व सुस्ती के रूप में दिखायी पड़ी।
 वर्ष  2020  में आकर भारतीय अर्थव्यवस्था का तो समूचा मंजर ही बदल गया जब कोविड महामारी से  वैश्विक अर्थव्यवस्था सहित भारतीय अर्थव्यवस्था  चौतरफा संकट में फंस गयी । अर्थव्यवस्था में रोजगार, उत्पादन, उपभोग का चक्र  बुरी तरह प्रभावित हुआ। वर्ष 2020 -21 - में भारतीय अर्थव्यवस्था मे दर्ज गिरावट समूची दुनिया में सबसे ज्यादा10  फीसदी थी। परंतु इस दौरान मोदी सरकार ने अपने उपलब्ध संसाधनों से भारत की जनता खासकर ग्रामीण आबादी को मुफ्त अनाज व स्वास्थ्य सुविधाएं देने मेें अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले भार को सही तरीके से जरूर संभाल लिया । गनीमत ये रही कि इस दौरान अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई और मोदी सरकार ने इसका फायदा उपभोक्ताओं को ना देकर और इसके उत्पाद करों में और बढोत्तरी कर अपने राजस्व अर्जन का एक अच्छा श्रोत बनाये रखा।
कोविड के दौर में सरकार ने 25 लाख करोड़ का कथित इकोनामिक रिवाइवल पैकेज घोषित किया पर वह बैंकों व वित्तीय संस्थाओ द्वारा दिये जाने वाले कर्ज का एक नया आंकड़ा ज्यादा था। कोविड काल में पहली बार वित्त मंत्रालय ने वित्तीय घाटे के जीडीपी के 3.5 फीसदी रखने के वैधानिक लक्ष्य में 3  फीसदी और बढोत्तरी करने को विवश हुई। इसका मतलब ये था कि मुद्रा स्फीति को आमंत्रित करना और आज  यही स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे प्रमुख विषय वस्तु बनी हुई है। यही वजह है कि पिछले पांच सालों से चल रही सस्ती मुद्रा नीति की अपनी अवधारणा से अब भारतीय रिजर्व बैंक विलग हो गया है। पिछले दो महीने में रिजर्व बैंक ने दो दो बार रेपो दर में बढोत्तरी कर बैंक दर करीब एक फीसदी बढ़ा  चुकी है जिसका उद्देश्य मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करना बताया जाता है । दूसरी तरफ सरकार के लिए सबसे ज्यादा चिंता बुनियादी जिन्सों की कीमतों में आयी बेतहाशा बढोत्तरी को लेकर है।
 पिछले आठ सालों में मोदी सरकार ने विनिवेश को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर नयी आर्थिक नीति के  एनडीए संस्करण को और पुख्ता बनाया तो दूसरी तरफ निजीकरण की विस्तार प्रक्रिया को बिना नियमन व किराया प्राधिकरणों के गठन तथा निजी सार्वजनिक प्रतियोगिता व सहभागिता के जामा पहनाया जा रहा है। यह कदम कई लोगों को नागवार लगा है। इन्हीं वजह से सरकारी परिसंपत्त्यिों के मौद्रिकीकरण जैसी योजना अमल में लायी गई है जिसके जरिये अगले 2024  तक 6  लाख करोड़ की राजस्व उगाही का लक्ष्य है। वैसे राजस्व के मोर्चे पर अच्छी खबर ये है कि जीएसटी संग्रहण का आंकड़ा  एक लाख करोड से बढ़कर करीब डेढ लाख करोड़ के आसपास आ गया है।

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