Wednesday, July 13, 2022

राजमार्गों के विकास के नाम पर टोल की मनमानी वसूली क्यों

 राजमार्गों के विकास के नाम पर टोल की मनमानी  वसूली क्यों

 मनोहर मनोज
अभी हाल में एक देश एक टोल नीति के तहत देश के राजमार्गों के प्रयोगकर्ताओं के लिए देशव्यापी टोल प्रणाली फास्ट टैग की शुरूआत की गई है। इसके तहत देश भर के वाहन देश भर के किसी राजमार्ग पर आनलाइन टौल भुगतान के जरिये बेरोकटोक आवाजाही कर सकेंगे। इस नयी राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक टौल संग्रहण यानी एनइटीसी प्रणाली के तहत देशभर के सभी वाहनों से सहज व  त्वरित तरीके से टोल वसूली किये जाने की योजना है। इस नयी प्रणाली के  तहत टौल वसूली की प्रणाली पूरी तरह से पारदर्शी, एकरूप, लीकेज मुक्त होने के साथ सरकारों के राजस्व में भारी बढोत्तरी करेगी। केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक नयी प्रणाली से मौजूदा ६०० टोल प्लाजा से टोल वसूली की मौजूदा राशि तीस हजार करोड रुपये से बढकर एक लाख करोड़ रुपये हो जाएगी।
ऐसे में अब सवाल ये है कि देश में राजमार्गों का प्रयोग शुल्क की वसूली करना और उस राशि से देश में और नये राजमार्गों के निर्माण को विस्तार दिये जाने की अवधारणा जो बीस साल पहले देश में शुरू की गई, क्या वह नीति पूरी तरह से दुरूस्त है? न्यायोचित है? और देश में राजमार्गों की आधारभूत संरचना को प्रोत्साहन प्रदान करने का केवल यही विकल्प है? मोटे तौर पर यह बात जरूर माना जा सकता है बुनियादी संरचना किसी भी देश के आर्थिक विकास की पहली प्राथमिकता होती है। साथ ही इस बात को वाजिब माना जा सकता है कि कोई भी बुनियादी सुविधा बिल्कुल नि:शुल्क प्रदान नहीं की जा सकती। साथ ही इस बात को भी स्वीकर किया जाना चाहिए कि सरकार द्वारा बुनियादी सुविधाओंं का एक वाजिब प्रयोग शुल्क उपयोगकर्ताओं पर ओरोपित किये जाना कोई गलत नीति नहीं है। परंतु देश में राजमार्गों के प्रयोग शुल्क के रूप में टोल वसूली करना और टोल वसूली के ठेके प्रदान करने के पीछे का असल सच देश में राजमार्गों की टोल प्रणाली को लेकर कई सवाल भी खड़े करता है।
सबसे पहले तो देश में टौल नाके यानी टौल प्लाजा पर गाडिय़ों की लंबी कतार लगने, उससे जाम लगने, टौल की दरों के मनमाने और अतिशय निर्धारण करने, टोल संचालन कर्ताओं के ठेके दिये जाने की समूची प्रणाली के पारदर्शी नहीं होने, टोल शुल्क की राशि का उस राजमार्ग की मरम्मत व रखरखाव पर खर्च नहीं किये जाने, टोल लिये जाने वाले मार्ग के बेहतर रखरखाव का अभाव पाये जाने तथा टोल ठेकेदारों द्वारा राजनीतिक दलों और नौकरशाही को रिश्वतें प्रदान करने को लेकर अनेकानेक सवाल आज भी कायम हैं।
बताते चलें कि देश में बुनियादी आर्थिक विकास को लेकर जब राजमार्गों के तीव्र विकास को बड़ी प्राथमिकता दी गई तो यह माना गया कि इसके लिए पर्याप्त संसाधन की दरकार है। इस क्रम में बाजपेयी की एनडीए सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों पर पिचहत्तर पैसे प्रति लीटर कर अधिभार लगाया। इसके बाद भी सरकार को इस बाबत संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता नहीं हो पायी तो टोल के रूप में इसके प्रयोग शुल्क लेने की अवधारणा शुरू की गई। परंतु जब यह अवधारणा शुरू हुई तो यह माना गया कि नवनिर्मित राजमार्ग पर एक निश्चित समयअवधि तक टौल वसूला जाएगा जिससे कि उसके निर्माण राशि की भरपाई हो जाए और उसके बाद टौल लेना बंद कर दिया जाए। इस क्रम में राजमार्गों के निर्माण के लिए निजी निवेशकों को भी बीओटी, बीओएलटी और टीओटी के जरिये शामिल किया गया। बीओटी यानी बिल्ड, ओपरेट एंड ट्रांसफर, बीओएलटी यानी बिल्ड आपरेट लीज और ट्रांसफर, टीओटी यानी टौल आपरेट एंड ट्रांसफर। यानी इन तीनों प्रणाली से यह भान होता है कि जो राजमार्ग का निर्माण करेगा कुछ समयअवधि तक वह इसका संचालन करेगा ,टोल लगाएगा और बाद में वह सरकार को वह राजमार्ग स्थानांतरित कर देगा और तब वह सडक़ टौल फ्री हो जाएगा।
परंतु पिछले दो दशक में देश में ऐसा कोई राजमार्ग नहीं दिखा जिस पर टौल टैक्स शुरू किया गया और फिर उसे वापिस ले लिया गया हो। बल्कि इसे निरंतर और निर्बाध जारी रखा गया। अलबत्ता देश के महानगरीय परिधि में जहां टौल वसूली की वजह से घंटो जाम लगा करता था, वहां पर न्यायालय के हस्तक्षेप से ट्राफिक जाम का हवाला देकर टौल नाका समाप्त कराया गया। इसमे दिल्ली गुडग़ांव और दिल्ली नौएडा टौल नाके की बंदी प्रमुख परिघटना रही है।
केन्द्रीय सडक़ मंत्री नितिन गडकरी अपने बयानों से जहां यह साबित करने का प्रयास करते हैं वह सडक़ परिवहन के मामले में नया सुधार लाना चाहते हैं। परंतु उनकी टोल नीति किसी भी दृष्टि से समुचित, न्यायोचित और पारदर्शी नहीं दिखती है। अभी अभी जो नयी फास्ट टैग प्रणाली की शुरूआत की गई जिसके जद में करीब साठ लाख वाहन जुड़ चुके हैं और उससे करीब सौ करोड़ रुपये की रोज अदायगी सुनिश्चित हो चुकी है। इससे टौल नाके पर जाम से जरूर मुक्ति मिलेगी और टौल वसूली में विराजमान लीकेज भी इससे समाप्त हो जाएगा। बताते चलें कि एक आंकड़े के मुताबिक टौल प्लाजों पर लगने वाले जाम से देश की अर्थव्यवस्था को हर साल साठ हजार करोड़ रुपये की जीडीपी का नुकसान हो रहा था।
परंतु अभी सबसे बड़ा सवाल जो कायम है कि टौल की दरों का पर्याप्त निर्धारण कब होगा? क्या टोल वसूली की कोई समयसीमा भी तय होगी? टौल प्लाजा के ठेके देने की नीति की पारदर्शिता कब निर्धारित होगी? कुछ वर्ष पूर्व गडकरी ने तो यह घोषणा कर दी थी कि देशभर से टौल वसूली की प्रणाली ही वह समाप्त कर देंगे। और सडक़ प्रयोग के एवज में वाहन क्रय के समय उसके पंजीयनशुल्क केे जरिये राशि लिये जाने की नीति को प्रश्रय देंगे। परंतु वह ऐसा नहीं कर सके । बाद में उनका यह बयान आया कि देश में राजमार्गों के निर्माण की गति को त्वरित करने के लिए प्रचुर संसाधन की आवश्यकता है जिसकी पूति ना तो सरकार के बजट से संभव है, ना पेट्रोलियम अधिभार से अकेले संभव है और ना ही वाहन पंजीकरण की राशि उसके लिए पर्याप्त है। ऐसे में आज सरकारें टौल प्रणाली को ही काफी तवज्जों दिये जा रही हैं। लेकिन  टोल दरें समूचित रूप से तय नहीं होने से देश के सभी वाहनों के लिए राजमार्गों का उपयोग एक बेहद महंगा सौदा बनता जा रहा है। आज की तारीख में ईंधन व्यय के बाद वाहनों के खर्च का का दूसरा सबसे बड़ा मद टौल टैक्स बना हुआ है। देश में पंजीकृत ट्रक और बसों की संख्या करीब तीन करोड़  है। इन्हें औसत रूप से हर साल पांच लाख रुपये केवल टौैल के मद में अदा करना पड़ता है। गडकरी के राज में वाहन उपयोगर्ताओं को ट्रैफिक नियमों की अवहेलना को लेकर भी आजकल भारी भरकम जूर्माना देना पड़ता है, जबकि ट्रैफिक पुलिस का भ्रष्टाचार चरम पर है जिस पर उनका नया ट्राफिक कानून कोई नकेल नहीं कस पाता।
नयी फास्ट टैग प्रणाली से टौल नाकों पर बेशक लंबी कतार नहीं होगी, सेन्सर तकनीक से वाहनों का टौल आनलाइन भुगतान हो जाएगा। परंतु गडकरी को दो बातों पर भी ध्यान देना होगा। पहला कि टौल की दरें बेहद उचित रखी जाए और दूसरा टौल ठेकेदारों को निविदा देने में बेहद पारदर्शिता बरती जाए। गौरतलब है कि अभी देश में करीब १४० हजार किमी राजमार्गों में करीब चालीस हजार किमी मार्ग टौल के दायरे में लाये जा चुके हैं। यानी टोल प्रणाली का अभी और विस्तार होगा, ऐसे में एक नयी समुचित, सुलझी व पारदर्शी टोल नीति लाया जाना बेहद जरूरी होगा।

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