Monday, August 28, 2017

हमारे बौद्धिक जगत में हिपोक्रेसी

हमारे बौद्धिक जगत में हिपोक्रेसी अपने हाईट पर तो है ही , हमारा राजनितिक फील्ड भी उससे कम रूबरू नहीं। कल प्रधामंत्री मोदी अपने मन बात में बड़ी बड़ी बाते कह रहे थे कि देश ! जाती छोडो! , संप्रदाय छोडो ! योग्यता और प्रतिभा के आधार पर बड़े पदों पर चयन हो। इसी तरह अमित शाह ने भी अपने यूपी के दौरे में कहा बीजेपी में आतंरिक लोकतंत्र है , हमारी पार्टी सिद्धांतो के आधार पर चलती है प्रतिभा के आधार पर पार्टी में सबको मौके मिलते है। इन दोनों महानुभाओं की तकरीरें असल में कितनी नू सेंस पैदा करती है, इसकी मिसाल देखिये क्या अभी भी मोदी जी की पूरी राजनीती जाती पर , संप्रदाय पर और योग्यता को मौके नहीं देने पर अवलम्बित नहीं है क्या ? आखिर विज्ञानं भवन में मोदीजी बड़ी सम्मोहक बातें बोलते है, पर चुनावी सभा में वही मोदी जी सड़क छाप भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल क्यों कर देते है? सवाल ये भी है मोदी जी ऐसा करते क्यों है ? इसका जबाब ये है की देश की पूरी राजनीती और इसमें शामिल राजनितिक दल इस प्रतियोगी लोकतनत्र में तो यही करते है। सभी चाहते है की चुनाव जीतने के लिए सभी कलियुगी तरीके अपना लिए जाये। ऐसे में आप समचमुच यदि देश में बदलाव चाहते है तो मन की बात में बोलकर काम नहीं चलेगा। आप सीधे सीधे संविधान में यह प्रावधान लाइए की इस विविधता और विषमता भरे भारतीय समाज की लोकतान्त्रिक राजनीती में पहचान और स्टेटस के लिए कोई स्थान नहीं होगा, सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर जो चलता रहे चले। पर चुनाव राजनितिक गतिविविधियो में जो भी दल ओर नेता इसका इस्तेमाल करेंगे वह अयोग्य घोषित हो जायेंगे
सवाल यह है देश की सरकारे और राजनितिक दल क्या इस बात की घोषणा करेंगे की सभी पद पर उनके फेवर से कोई भी व्यक्ति पदारोपित नहीं होगा। हमें नहीं लगता की मोदी जी और अमित शाह ने अभी तक अपने तै जितनी नियुक्ति करी वह किसी बृहत्तर मापदंडो पर खरी उतरती है। लोकतंत्र की विडंबना ये है की हर नियक्तिया किसी किसी सूत्र और समीकरण पर आधारित होती है। अवसर की अनिश्चितता और पद के अस्थायित्व से अधिकतर निर्णय स्वार्थ आधारित होते है।
दूसरी बात अमित शाह की करें। बीजेपी आडवाणी का मूल रूप से सींचा पेड़ है , जिसे मोदी और अमित शाह की जोड़ी एक बड़े राजनितिक बट बृक्ष बनाने का पुरजोर प्रयास कर रहे है। पर इस प्रयास में इनकी आक्रामकता कई हदे पार कर चुकी है। चमचावाद और व्यक्तिवाद चरम पर है। गरिमा मर्यादा तथा नैतिकता इस तरह अतिक्रमित हो रही है जो पुरानी बीजेपी में बाजपई अडवाणी सिद्धांतो की अवहेलना कर रही है बल्कि इंदिरा कांग्रेस के एक समय के दौर की पुनरावृति करा रही है। गुजरात में कांग्रेस विधायकों और यूपी में सपा बसपा विधायकों की हॉर्स ट्रेडिंग कौन सी नैतिकता है। यह तो सीधे सीधे राजनितिक अनैतिकता और भ्रष्टाचार है।
अब सवाल यह है , हमारे बुद्धिजीवी और लोकतंत्र का अनाधिकारिक अंग मीडिया क्या कर रहा है? वह तो राजनितिक गुटों में बटा हुआ है और उसी पर अपनी लाइन लिया करता है, अपने तर्क और रिसर्च गढ़ता है और एंगल रिपोर्टिंग करता है। हमारे यहाँ सेकुलरिज्म के समर्थन और विरोध दोनों में वोटबैंक की राजनीती छिपी हुई है। जातीय राजनीती में सारे दल संलग्न है। भाषा और प्रान्त तथा खानदान के आधार पर तमाम क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल गठित है और काम कर रहे है।
मोदी जी मन की बात कर युगद्रष्टा बनने का स्वांग ना रचे। इसे कानूनी, संविधानिक ,और सांगठनिक रूप से रूपायित कर दिखाइए। आप यह नहीं कर सकते क्योंकि इसके लिए बड़े त्याग की जरूरत है। अगर आप लोगो से तीन ऑप्शन दिया जाये , कंट्री फर्स्ट , सिस्टम चेंज फर्स्ट , सत्ता फर्स्ट तो सत्ता फर्स्ट का ही वरन करेंगे। तभी तो आप देश में सुधारो एजेंडे को छोड़ कर साल पहले ही अगले लोकसभा चुनाव के एजेंडे में तल्लीन हो गए है।


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