Wednesday, August 2, 2017

राष्ट्रवाद, सेकुलरिज्म , कम्युनलिस्म और सामाजिक न्याय ये सभी मुद्दे  नेताओ के लिए जनता के लिए  बनता है मुद्दा,सिर्फ गुड गवर्नेंस गुड गवर्नेंस गुड गवर्नेंस गुड गवर्नेंस गुड गवर्नेंस

नितीश द्वारा बिहार में किये गए राजनितिक यू टर्न के बाद हमारे अखबारों और अन्य तमाम मीडिया में पुनः सेकुलरिज्म बनाम कम्युनलिस्म की राजनितिक बहस तीव्रता से छिड़ गयी। पर यकीन मानिये यह बहस कही से भी और किसी कोने से देश का भला करने वाला नहीं है, ना समाज का और न ही आम जनता का। उपरोक्त दोनों शब्दों के साथ सामाजिक न्याय शब्द को भी जोडना उचित होगा तभी इस मुद्दे की वास्तविक व वस्तुनिष्ठ विवेचना संभव होगी । जब जब सेकुलरिज्म , कम्युनलिस्म और सामाजिक न्याय जैसे शब्द और अब जाकर राष्ट्रवाद जैसे शब्द हमारे देश के राजनितिक विमर्श के केंद्र में आएंगे तब तब इससे देश में पहचान की राजनीती को बल मिलेगा । अयोग्य, स्वार्थी, अवसरवादी, पेशेवर, ढकोसलाबाज राजनीतिबाजों को शह मिलेगा और इसके नतीजतन गुड गवर्नेंस की प्रतियोगी राजनीती का गला घुटेगा तथा अंत में नेता की विजय होगी और जनता की पराजय होगी।
हमारे इस बहुदलीय लोकतंत्र में परस्पर प्रतियोगिता का पैमाना केवल और केवल गुड गवर्नेंस ही होना चाहिए। गुड गवर्नेंस का पैमाना ही किसी भी सरकार का रियल टेस्ट और एसिड टेस्ट दोनों कर सकता है। सेकुलरिज्म , कम्युनलिस्म और सोशल जस्टिस का मुद्दा राजनितिक दलों के बीच आपसी प्रतियोगिता का अबतक केवल वोट बैंक पैमाना बनता आया है और आगे भी बनता रहेगा। फिर हमारे बुद्धिजीवी इन नेताओं के इस सतत रणनीतिक चाल में उलझ कर क्यों इस फालतू बहस में संलग्न हो जाते है। यदि ऐसा रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमें इस भारतीय लोकतंत्र को जातीय लोकतंत्र या वेरियस ट्रेडमार्क आईडेंटिटिज लोकतंत्र में ही असल में तब्दील करना होगा ।
देखा जाये तो उपरोक्त तीनो राजनितिक शब्द अपने आप में कोई साधारण शब्द नहीं , बल्कि ये सभी के सभी महान शब्द है पर भारतीय परिप्रेक्ष्य में इन सबके अर्थ अलग है और मायने अलग है।
सबसे पहले सेकुलरिज्म को ले। यह शब्द भारती य संबिधान की प्रस्तावना में है जिस पर हमें गर्व है। यह शब्द देश का सांप्रदायिक विभाजन करने वाले विगत के जमातों पर एक करारा नैतिक प्रहार करता है और उन्हें इस बात के लिए लज्जित करता है , देखो तुमने इस देश का इस्लामिक बटवारा कर एक बहुत बड़ा पाप किया और आने वाले भविष्य में यही शब्द इन देशो के पुनर एकीकरण का आधार बनेगा। पर अब सवाल ये है क्या इस महान प्रस्तावना शब्द का लेटर और स्पिरिट दोनों में हमारे कौन कौन दल या उनकी सर्कारें उल्लंघन करती रही है। तो इसका जबाब मिलेगा सभी राजनितिक दलों ने। ऐसा करने वाले को सीधे सीधे हम असंबैधानिक क्यों नहीं ठहराने की बात करते? पर हमारे राजनितिक दल ऐसा न कर इसे केवल अपनी राजनीती और चुनाव का एजेंडा बनाते और मीडिया में बहस का प्रतिपाद्य विषय बनाते है। क्यों भाई ? इसका जबाब है क्योकि यह सभी दलों को वोटबैंक का अवसर प्रदान करता है। जब जब सेकुलरिस्म का उल्लंघन होता है , तब तब हिन्दू कम्युनलिस्म , मुस्लिम कम्युनलिस्म का उदय होता है। सेकुलरिज्म का मतलब है राजनीतिज्ञ ना तो रोजा इफ्तार पार्टी करेंगे और ना ही शिव प्रतिमा का सार्वजनिक रूप से अनावरण करेंगे। सारे दल अपने अपने को नाप ले की वे इस मुद्दे पर अपने आप को कहा पाते है। इसी तरह सभी राजनितिक दल बताये , आप में से कौन कौन जातीय रैली करते है , कौन भाषा संस्कृति के आधार अलग प्रान्त की मांग करते है, आप में से कौन खज़ाना खाली कर पॉपुलिस्म की राजनीती करते है। कौन कौन दल है मध्युगीन सामंती प्रवृत्तयों से लबरेज होकर व्यक्तिवाद के प्रतीक बने हुए है। इसका जबाब है की इसमें सभी संलग्न है। जाहिर है इन सभी कारको से प्रतियोगी राजनीती आसान हो जाती है। राजनितिक डोमेन में आजकल राष्ट्रवाद शब्द खूब चल रहा है , यह राष्ट्रवाद नहीं , फालतुवाद है, जिसके जरिये सिर्फ भावनाओ का उबाल लाकर राजनितिक स्वार्थ सिद्धि करना है , जनहित की अवहेलना करना है। जब जनता सुखी होगी तो अपने आप राष्ट्रवाद का दिव्य रूप हासिल होता है। जो लोग राजद्रोह करते है, उनके लिए बैलेट बॉक्स नहीं, कानून , पुलिस और सेना बनी हुई है.
अब बात करें सामाजिक न्याय की. यह एजेंडा भारत में व्यापक और चौमुखी सामाजिक सशक्तिकरण को लेकर बिलकुल सरोकार नहीं रखता , बल्कि यह शब्द हमारे पोलिटिकल डोमेन में केवल आरक्षण के प्रयाय के रूप प्रयुक्त होता रहा है। यह एजेंडा अब तक पिछड़ी और दलित जाती के केवल सम्पन्न तबके को समुन्नत करता रहा है। जब चौमुखी समाजक सशक्तिकरण के एजेंडे की बात होगी, तब मुद्दा आरक्षण की वैसाखी का नहीं बल्कि यहाँ भी मुद्दा केवल गुड गवर्नेंस का उल्लखित होगा।
पर सवाल ये है गुड गवर्नेंस है क्या बला। यह इतना आसान भी नहीं , जब जब सरकारें इसमें फ़ैल होती है , पहचान के मुद्दे का तुरत सहारा लिया जाता है ,भावनात्मक मुद्दे या अनर्गल बयानों को उछाल जाता है. यहाँ भी नेता जीतता है, जनता हारती है।
गुड गवर्नेंस का मतलब इस पोलिटिकल और ब्यूरोक्रेटिक कॉम्बो सिस्टम को एक रूटीनपूर्वक चला लेना नहीं है। बलिक इसका मतलब देश में एक साथ सैकड़ो राजनितिक सुधार , प्रशासनिक सुधार , न्यायिक सुधार , संस्थागत सुधार को अ मली जाम पहनना है और समूची सार्वजानिक कार्य संस्कृति को एक विलक्षण चेहरा प्रदान करना है । इसका मतलब है जीरो लीकेज के साथ अधिकतम लोगो का अधिकतम कल्याण। यह लक्ष्य देश में एक साथ अनगिनत बुनियादी मुद्दों पर एक मिशन मोड मांगता है। दुर्भाग्य से देश में अभी भी यह माहौल प्राप्त नहीं हुआ है और हमें अभी भी ऐसे होलिस्टिक रेजीम की तलाश है । 

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