यदि लालू यादव अपने बेटो को मंत्री उपमुख्यमंत्री बनाने की छदम चालाकी नहीं किये होते शायद नितीश कुमार महागठबंधनगठबंधन को चलायमान रख सकते थे। सारे लोग अपने स्वार्थ और महत्वकांछा पूर्ति की राजनीति में तल्लीन है। पर हमारे बुद्धिजीवी, पत्रकार ,विश्लेषक अपनी अपनी राजनितिक विचारधारा का लैंप फालतू जलाये बैठे है। यदि अपनी दुर्भावना और पूर्वाग्रह से हटकर सचाई, अच्छाई , नैतिकता ,आदर्श, परमार्थ और सिद्धांतो के केवल साथ रहे बुद्धिजीवी तो देश में मौजूदा स्थापित राजनितिक गुटों से इतर एक बेहतर और सम्यक राजनितिक समागम बनाया जा सकता है
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