Saturday, November 21, 2015

पिछले पोस्ट में मैंने कहा था की लालू भारतीय राजनीती की सबसे बड़ी विडम्बना है तो उस विडम्बना का आधुनिक और महानगरीय संस्करण का नाम है अरविन्द केज़रीवाल। लालू ने तो बौद्धिक क्रांतिकारिता की कोख से उपजे शक्श के रूप में अपना दावा कभी भी नहीं किया। परन्तु यह व्यकति जो अपने आप को भ्रष्टाचार और सैद्धांतिक राजनीती की उपज बताता था ,वह अभी भारतीय राजनीती का सबसे बड़ा हिपोक्रेट साबित हुआ है। इसने कहा था दिल्ली की जनता ने हमें केवल दिल्ली में शासन करने के लिए मत दिया है पर हमारे साथी देश कीराजनीती करना चाह रहे है। इसने उन साथियों को तो चुन चुन कर हटा दिया, पर खुद दिल्ली के शासन में तल्लीन होने के बजाये हर राष्ट्रीय मसले पर विपक्षी दल के नेता की भूमिका में मशगूल है। अभी तो इसने लालू से गले मिलाया है, देखते जाइये अभी यह किस किस से गले मिलता है।
राजनीती में जीत का मज़ा तभी है जब उसमे सिधान्तो और आदर्शो की गुणवत्ता तथा मोरल highground की उसमे पराकाष्ठा झलकती हो। पर आज के इस कलियुगी वातावरण में जहा सभी जगाह तिकड़म और खेल हर क्षेत्र की कसौटी बन गयी हो तो सत्ता की राजनीती जो हर चीजो की निर्धारक की भूमिका में होती है तो तो ऐसे में उसमे तिकड़म की पराकाष्ठा कैसे नहीं होगी।
परन्तु हैरान मत होइए आदर्श और नैतिक क्रांति का दौर दुबारा जरूर आएगा ,पथ से विचलित होने की जरूरत नहीं और तमाम अधिनायकवदिओ , व्यक्तिवादियों, वंशवादियों,लोकलुभावनवादियों,पैतरेबाजो और शॉर्टकटवादियों का पहले से ज्यादा समझदार जनता निर्मूलन करेगी और नैतिक, आदर्श ,तपस्वी और गुणी नेतृत्व वर्ग का प्राकृतिक उदय होगा।

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