Wednesday, September 17, 2014

भाजपा की उपचुनाओ में हो रही लगातार हार इस पार्टी को अप्रत्याशित लग रही है , परन्तु उन्हें यह भी नहीं भूलना नहीं चाहिए पिछले संसदीय चुनावो में मिली उनकी जीत भी अप्रत्याशित थी/ औसत का नियम तो हर समय चलता है , कभी चिट मिलेगा तो पट भी मिलेगा, पर सबसे महत्वपूर्ण ये है सिस्टम के फंडामेंटल्स को हर हालत में ठीक करना और गुड गवर्नेंस और गुड पॉलिटिक्स के मानको पर किसी भी तरह के समझौता नहीं करना/ अगर मोदीनीत भाजपा को लगता है की वह इस पर ईमानदारी से काम कर रही है तो फिर इन उपचुनावों के परिणामो की कत्तई परवाह नहीं करना चाहिए/ बाकि बरसात के मेंढक की तरह टर्र टर्र करने वाले विश्लेशको द्वारा अपने अपने हिसाब से ये नहीं हुआ वो नहीं हुआ, सारी बाते बेमानी है/ क्योकि यही विश्लेषक पिछले चुनावो में मोदी की जीत को किसी धर्मयुद्ध के नायक की जीत की संज्ञा दी थी / जबकि वह जीत मोदी के आदर्शवाद की नहीं उनके महत्वकांछावाद और उसकी पूर्ति के लिए बनायीं गयी उनकी साम दाम दंड से परिपूर्ण रणनीति भी शामिल थी, की जीत थी / क्योकि मोदी के पिछले ३० साल के राजनितिक जीवन में उनकी चायवाले की पृष्ठबूमि का कभी प्रचार नहीं किया गया पर संसदीय चुनावो में इसी चायवाले के समाजवादी जुमले से लेकर बिहार और उप्र में पिछड़े नेता के प्रोजेक्शन से लेकर मीडिया और प्रचार में कॉर्पोरेट जगत के पैसे उड़ेलने तक सब उनकी रणनीति में शामिल था / और बाकी का काम यूपीए के खिलाफ पहले से बनी बनायीं एंटीइन्कम्बेन्सी की भूमि ने बना दी थी/ पर अभी बतौर प्रधामंत्री मोदी मुझे नहीं लगता भविष्य में कमजोर पड़ने वाले है

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