Sunday, September 14, 2014

मैं देखता हूँ हमारी राजनीती, मीडिया और बौद्धिक मनीषा जगत में वाममार्ग और दक्षिणमार्ग के नाम से एक तीव्र विभाजनरेखा दिखाई पड़ती है / लोगो के आख्यान, बहस , विचार , अवधारणाएं और तर्कशीलता इनही दोनों खेमो में ही अपनी अपनी जगह खोजती फिर रही है / यहाँ तक की फेसबुक में इस तरह की खेमेबंदी मजबूत बनती जा  रही है /जहा तक मैं जनता हूँ वामपंथ शोषण और संघर्ष की कोख से पैदा हुई एक परिस्थितिकालीन आर्थिक राजनितिक विचारधारा थी/ 18 वीं और 19 वीं शताब्दी में यूरोप में आई औद्योगिक क्रांति के उपरांत उत्पादन के पाचवे कारक पूंजी के मालिक यानि पूंजीपतियों का दबदबा बढ़ गया और वे बेलगाम शक्तिमान होकर श्रम और उसके मालिक श्रमिको का एक नहीं कई तरीके से शोषण करने लगे/ ठीक वैसे ही जैसे सामंतवादी वयस्था में भूस्वामी मजदूरों के साथ किया करते थे/ एंगल्स मार्क्स लेनिन के श्रृंखलाबद्ध प्रयासों  ने इस शोषण के प्रतिकार और इसके परिणांस्वरूप वाममार्ग की राजनितिक आर्थिक विचारधारा का अभ्युदय किया / इससे समूचे यूरोप में पूंजीवादी विचारधारा को भारी  ठेस लगी/ नतीजतन पूंजीवादीओ ने अपने देशो में व्यापक श्रम कानूनो और सामाजिक सुरक्षा की प्रणाली शुरू की / जब अमेरिका पूंजीवाद के चरम पर था तब इसने इसकी म्यूजिक सुनी और उसे भयानक मंदी का दौर देखा और तब राष्ट्रपति रूजवेल्ट के भारी भरकम सरकारी निवेश के उपायो नई डील पालिसी के जरिये मंदी पर काबू पाने में सफल हुआ / इस तरह बेकाबू पूंजीवाद सम्हला पर दूसरी तरफ वाममार्गी अपनी सफलता का पहला दौर पुरे करने के बाद अब अपनी शोषण की दास्ताँ लिखना शुरु करते  है / मसलन सरकरी नियत्रण के नाम पर अफसरशाही, श्रम कल्याण के नाम पर हड़ताल और बंद की संस्कृति /मजदूरो की तानाशाही के नाम पर लोकतंत्र का विरोध वगैरह वगैरह / 

पर आज का वामपंथ संघर्ष और शोषण के मानवतावादी आदर्शो को छोड़ कर' सही गलत की परवाह छोड़ कर उन उन मुद्दो पर अपनी खेमेबाजी मजबूत करता है जो उसकी वोट बैंक की पॉलिटिक्स को मजबूत बनाता है / मसलन तमाम असंगठित मजदूरो के बजाये वह संगठित मजदूरो की माँगो की तरफदारी को प्राथमिकता देता है / जिस तरह वे यह मानते है की पूंजीपति श्रमिको का वर्ग शत्रु है उसी तरह से उनकी यह धारणा अब तक बदल नहीं पायी की एक छोटे कारोबारी की स्थिति एक संगठित मजदूर से भी ज्यादा बदतर है / इसी तरह से वाइट कालर श्रमिक और ब्लू कालर श्रमिक दोनों के हितो को हम एक श्रम सवालों के मंच पर नहीं ला सकते' दोनों एक दूसरे के विरोधाभासी है / चीन जैसे देश हमारी सीमा को हड़प ले और एक शांतिप्रिय धर्म बुद्धिस्म को मानने वाले तिब्बत पर चीन बलात कब्ज़ा कर ले फिर भी उसका समर्थन करे तो यह इस विचारधारा का आदर्शवाद और मानवतावाद नहीं बल्कि  उसके लिए यह अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का खेमावाद और घरेलू राजनीति में वोटबैंकवाद है / तभी तो वह हिन्दू सम्प्रदायिकता पर टिप्पणी तो करता है पर इससे कई गुना ज्यादा और विश्वव्यापी रूप से खतरनाक मुस्लिम साम्प्रदायिकता पर मौन रहता है / ईमानदार उद्यमिओ को शक की निगाह से देखता है और नव बुर्जुआ  भ्रस्ट अफसरों की यह तरफदारी करता है /
पूंजीवाद या दक्षिणवाद भी समय समय पर भटकाववाद की और गया पर जिस तरह से बीसवी शताब्दी के पूर्वार्ध में वामपंथ को दक्षिणपंथ पर एक नैतिक विजय मिली थी उसी तरह से पूंजीवाद को वामपंथ पर अभी एक तरह से नैतिक विजय मिली है यानि जिस तरह से सोवियत संघ का विखंडन हुआ, चीन की पालिसी रिजीम बदली / 
परन्तु ये दोनो चरम विचारधाराएँ मानवतावाद का तबतक कल्याण नहीं कर सकती जब तक वह वह युग सापेक्ष, समय सापेक्ष और देश सापेक्ष होकर अपने आप में यथोचित बदलाओ के लिए तैयार नहीं होती / ये यह मानकर चलते है उग्रतावादी तरीके ही संगठन की मार्केटिंग करेंगे और मीडिया में सुर्खिया हासिल करेंगे / मेरा मानना है सभी विचारधारा और संस्थाओं में एक समय अंतराल पर सफाई की जरूरत पड़ती है / 
मैं तो ईश्वरवाद और धर्मवाद दोनों को बिलकुल अलग अलग मानता हु / ईश्वर एक सर्वकालीन सर्वव्यापक चेतन और अचेतन दोनों जगत की एक नियामक सत्ता है जबकि धर्म कुछ सहस्त्राब्दि पूर्व से चालू, चालबाज और चालाक लोगो द्वारा गढ़ा गया दुकान है जो अपने अपने ग्राहक अनुयायी बनाने में लगा है/ जो हमारे राजनितिक दलों के ढर्रे पर ही अपने अपने धरम के समर्थक और अनुयायी बढाने में लगा हुआ है / अभी ईसाई और मुस्लिम धरम तो इसी तरह से अपना विस्तारवाद कर रहे है / धरम के इस मार्केटिंग में ईश्वर को भी अपने अपने हिसाब से शामिल किया गया है जिसमे उसकी आराधना पद्धति भी है,जीवन और मृत्यु के सभी विधान और जीवन शैली भी गढ़ी गयी है / धर्म को अपनाना और उसका अनुयायी बनाना किसी भी व्यक्ति का विल्कुल निजी मामला है और इसीलिए मै धर्मनिरपेक्षता का पुरजोर हिमायती हूँ/
 पर मेरे इस पोस्ट का मतलब वादो के विवाद में न पड़कर इस बात को पुरजोर तरीके से स्थापित करना है कि कोई भी वाद हमेशा के लिए जिन्दा नहीं होते है, उसमे निरंतर सुधारो की गुंजाइश होनी चाहिए/ परन्तु दक्षिण और वाम की चरमपंथी विचारधारा इसे कभी स्वीकार करने को तैयार नहीं होती / अतः में मध्यममार्ग जो बीच का,संतुलन का और विवेक का मार्ग है जो हर अच्छे को स्वीकार करे और हर बुरे को अस्वीकार करे, इसमें यकीं रखता हूँ /

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