Friday, October 17, 2014

श्रमेव जयते का उद्बोधन बेहद संवेदना पूर्ण और मानवीय दृष्टि का परिचायक है पर इस नारे के निचे श्रम सुधारो का एक ऐसा अनसुलझा एजेंडा दफ़न है जिसके लिए मोदी सरकार की स्थिति साप छूछन्दर की तरह है छोड़े या निगले, दोनों स्थिति फायदेमन्द नहीं/ हमारी मौजूदा श्रम नीति और ट्रेड यूनियनवाद की राजनीती संगठित और नियुकती प्राप्त कर्मचारियों को प्रश्रय देती है पर देश के बहुसंख्यक असंगठित और बेरोजगारो के लिए केवल सहानुभूति व्यक्त करती है और उसके लिए करने के नाम पर केवल अपनी मजबूरी दिखाती  है / हमारी उत्पादन प्रक्रिया और उसकी उत्पादकता में श्रम का जो योगदान है उसका वाजिब और सम्मानजनक प्रतिदान मिलना श्रम का हक़ है / परन्तु श्रम नीति ऐसी हो जो बेरोजगारो को भी अवसर दे और उत्पादकता को प्रोत्साहन के जरिये बढ़ोत्तरी के मार्ग पर लाये/ यदि हम मैन्युफैक्चरर के बीच प्रतियोगिता का माहौल बनाते है की वह अपने मॉल की गुणवत्ता बढ़ाये, उसकी कीमते वाजिब रखे अन्यथा वह बाजार में बाहर हो जायेगा/ तो यह स्थिति हम श्रम बाजार में क्यों नहीं ला सकते/ मैं  contractual जॉब विथ इंसेंटिव तथा प्रोडक्टिविटी लिंक्ड wages का पुरजोर हिमायती हु , क्योकि रोजगार के बाजार में लाखो और लोग इंतजार कर रहे है/ हर असंगठित कर्मचारी की मजदूरी प्राइस इंडेक्स से क्यों नहीं जुड़ना चाहिए, सभी श्रमिक को दुर्घटना बीमा, सामाजिक सुरक्षा और पेंशन मिलना तथा अनुकूल व उत्पादक कार्यपरिस्थितिया उनका मौलिक अधिकार होना चाहिए/ हम सब जानते है मजदूर की स्थिति बदतर है,  हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए की एक छोटे कारोबारी व स्वरोजगारी की स्थिति वाइट कालर श्रमिक के हालात से हमेशा बदतर दिखती  है/ अतः श्रम सुधारो का एजेंडा सर्व समावेशी और उत्पादकता में हिस्सेदारी आधारित हो   

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