Saturday, October 11, 2014

दुनिया के सभी धार्मिक पंथों में प्रचलित और परम्परायित पर्व,त्यौहार और जलसे हमारी मानव सभ्यता के हिसाब से भी हमारी संस्कृति, उत्सवधर्मिता और सामाजिक व पारिवारिक समागम की पहचान रही हैं / इन सभी चीजो की व्याख्या हम संगठित धर्मो द्वारा स्थापित विधानों तथा इस्वरवाद की परिकल्पना के सांचे में ढालकर भी करने के लिए स्वतंत्र है / परन्तु राजनितिक दलों के प्राचीन संस्करण के तौर पर गढे गए हमारे तमाम संगठित धर्मो जिसे ट्रेडमार्क धर्म कहना मुझे ज्यादा युक्तिसंगत लगता है, यदि इन सभी उत्सवों और सामाजिक प्रयोजनों को अपने गौरव, पहचान और अपने ट्रेडमार्क धर्म की इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट के तौर पर लेंगे तो इससे हमारी इन उत्सव धर्मिता तथा सामाजिक आनंद का अहसास दिलाने वाले त्योहारों का एक संकुचित रूप सामने आएगा/ मिसाल के तौर पर किसी भी धर्म के समारोहों में जहा पब्लिक की भारी भीड़ जमा होती है , वहां बेहतर और कल्पनाशील प्रबंधन के अभाव में स्टाम्पैड, दुर्घटना और हादसे होते रहे है, चाहे घाटो पर हो, चोटियों पर हो, मंदिरो में हो , तीर्थयात्राओं में हो, मक्का के मस्जिद में हो, अमरनाथ की यात्रा में हो , उज्जैन में हो कही भी हो, ये सभी दुर्घटनाये हमारे इवेंट मैनेजमेंट की चुनौतियों की तरफ इशारा करते है न की धर्मो के बीच की आजमाईश की तरफ / ईश्वरवाद चेतनावाद पर आधारित है जिसमे धर्मान्धता के प्रति कोई स्वीकृति नहीं है / धर्मान्धता जो लोग करते है वह क्रियाशीलता इस्वरवाद की तरफ नहीं बल्कि वह किसी ट्रेडमार्क धर्म के तानाशाह रवैये को परचम लहराने में मददगार होती है / अगर चर्च में होने वाले समागम के दौरान हादसे कम होते हैं तो इससे यह नहीं माना जाना चाहिए की वह ट्रेडमार्क धर्म बेहतर है बल्कि वहां का इवेंट मैनेजमेंट बेहतर हुआ है/
पटना के गांधी मैदान में हुआ हादसा इवेंट मैनेजमेंट की कमी थी ना की सरकार की नियत में बैठा वोटबैंक का अल्पसंख्यकवाद/ यदि ऐसा था भी तो यह राजनितिक रूप से उनके लिए ज्यादा नुकसानदेह / क्योकि लोकतंत्र तो बहुसंक्यकवाद से चलता है / इसीलिए राजनीती में ना तो अल्पसंख्यकवाद और ना ही बहुसंख्यकवाद / इसे चाहिए शुद्ध सेक्युलरवाद क्योकि तभी विवाद मुक्त शासन संभव है

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