Saturday, October 11, 2014

देश की सीमाओ पर होने वाली लड़ाई को हमारे राजनीतिबाजो द्वारा इमोशनलाइज़ करना बेहद गलत है / इस पर अक्रॉस आल पोलिटिकल पार्टीज रोक लगनी चाहिए /खून सैनिको का बहता है ,शहीद वो होते है और उसे बदले उन्हें मिलता है सिर्फ कुछ रुपयो की पगाड़ और शहीद होने पर कुछ एक मुस्त रुपये और नेताओ के हाथ से मिलने वाला वीरता चक्र/ पर असली श्रेय लेते है नेता / क्या वे बयानबाज नेता और हम्मे से कितने लोग ईमानदारी से इन सुविधाओ पर सेना ज्वाइन करने को तैयार होंगे' मेरे हिसाब से 5 फीसदी भी नहीं / ये तो हमारे गाव के कुछ कम पढ़े भोले भाले लोग बेरोजगारी की वजह से सेना में जाते है वरना वे भी पुलिस में जाना पसंद करते है ,क्योकि वहां भ्रस्टाचार से कमाई तथा जान जाने की संभावना सेना की तुलना में बेहद कम होती है / पुलिस की नौकरी में तो बेहिसाब खा पीकर अपनी तोंद बढ़ा सकते है, पर सेना में तो ऐसा संभव नहीं, साथ ही सेना में 45 की उम्र में जवान को रिटायर होना पड़ता है अन्यथा जान गवाना किसे अच्छा लगता है /आज मोदी कह रहे है की सीमा पर हो रहे युद्ध में जबान नहीं जवानो की बन्दुक चलती है / यह सद्बुद्धि उन्हें चुनाव में नहीं थी जब उनकी पार्टी ने बार बार इसे मुद्दा बनाया / सरकार और राजनेताओ का काम सैनिको के साथ हर तरह का समर्थन और बेहतर जीवन की सुविधाये देना होना चाहिए / आज भी पांच दशक पूर्व दिया गया लालबहादुर शास्त्री का नारा जय जवान जय किसान में केवल जय है जयक्षय नहीं है / आज भी सबसे उपेक्षित यही वर्ग है /हम इन्हे सिर्फ इमोशन दिखाते है बाकि कुछ भी नहीं/ मुझे नहीं लगता की ट्रैन में सेना के लोगो द्वारा कुछ बदसलूकी या हैदराबाद की आज की बच्चे जलने जैसे अपवाद परक घटना को छोरकर सेना के जवान के खिलाफ कोई गभीर आरोप लगते हों / आज सेना के ऑफिसर्स बहाली में भी आज के युवा जाना पसंद नहीं करते वहा सैन्य परिवार का ही व्यक्ति जाना पसंद करता है/ इन स्थितियों में सेना की जीत या उनकी बहादुरी का श्रेय केवल और केवल सेना को मिलना चाहिए और मीडिया को चाहिए की सेना के जवानो को सिर्फ शहीद होने पर ही नहीं जीते जी भी उन्हें व्यापक कवरेज दे/ मोदी सरकार ने वॉर मेमोरियल बनाने की जो घोषणा की उस पर लगता नहीं की काम कुछ हुआ है

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