Thursday, March 17, 2016

जिस तरह कभी निहित स्वार्थी प्रवृति वाले दस प्रतिशत स्वर्णो को समाज के 90 प्रतिशत पिछडो के लिए अपने द्वारा काबिज राजनितिक प्रशासनिक आर्थिक अवसर छोडे जाने से बेहद गुरेज हुआ करता था। आज उसी तर्ज पर 10 प्रतिशत मलाईदार दलित पिछडो को अपने ही समुदाय के 90 प्रतिशत बेहद वंचित लोगो के लिए अवसर छोड़े जाने से बेहद गुरेज हो रहा है और अपने इस स्वार्थ रक्षा के लिए उनके द्वारा बेहूदा तर्क दिए जा रहे है। आरक्षण की समीक्षा का मतलब आरक्षण हटाना कहा से हो गया ? अगर समीक्षा नहीं होगी तो 90 प्रतिशत बेहद वंचित लोग वंचित ही रहेंगे। आरक्षण सेएक बार आईएएस एमपी एमएलए बने व्यक्ति के बेटे को दोबारा क्यों आरक्षण मिलना चाहिए? आप ही के समुदाय में कई लोग अवसर की तलाश में बैठे है। उनके लिए तो छोड़िये। सामाजिक न्याय का असल तकाजा यही कहता है.
अगर समीक्षा नहीं होगी तो देश की जनजातियों को मिलने वाला कुल साढ़े सात प्रतिशत आरक्षण का 90 फीसदी हिस्से पर मीणा जाती हमेशा काबिज बनी रहेगीै। वही गुजर जाती पिछड़ी होते हुए उनकी सरकारी नौकरियों मौजूदगी ना के बराबर है। ऐसे और कई मिसाल है। अगर समीक्षा नहीं होगी तो यह वंचित दलित पिछडो के साथ घोर अन्याय होगा।
इस बात की काट के लिए तर्क यह खोजा गया है की निर्धारित आरक्षित सीटें नहीं भर पाती है इसीलिए मलाईदार तबके को आरक्षण मिलते रहने चाहिए । यह तो स्वर्णपरस्त प्रशानिक संरचना की चाल है की वह कोई न कोई खोट लगाकर अपने षड़यंत्र रचते रहते है और आरक्षित तबके को अवसरों से वंचित रखते है । मै जानता हूँ की दलित पिछड़े तबके में भी ढेरो योग्य और बेरोजगार लोग है, फिर भी उनकी सीटें सीट नहीं भर पाती है।
ऐसे ही साजिश निजी स्कूलों द्वारा किया जाता है जिन्हे जमीन से लेकर तमाम कर रियायतें सरकार से इसलिए मिलती है क्योंकि उन्हें अपने 25 फीसदी सीटें गरीब तबके के लिए रखनी है। पर आकड़ो के मुताबिक केवल 13 फीसदी सीटें ही भरी गयी है। जाहिर है इसकी प्रक्रिया ऐसी बनाकर रखी गयी है की गरीब अभिभावक अपने बच्चो के एड्मिसन के लिए दर दर की ठोकरे खाते फिरै और अंत में कही और दाखिला लें।
अब समय आ गया है की देश में आरक्षण केवल एक बार और दूसरा सभी आरक्षित सीटें हर हाल में भरे जाने की गारंटी, दोनों पहल बिलकुल एकसाथ लागू किया जाये। ऐसी सूरत में किसी स्वार्थी तत्व के लिए कुतर्को की कोई गुंजाइश ही नहीं बचेगी।

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