Wednesday, September 23, 2015

बिहार के इस दो ध्रुवीय राजनीतिक दंगल में मुकाबला काटे का चल रहा है। गावों में नीतीश और जनता परिवार के लिए मतदाता मन बनाये हुए है जबकि शहरो में बीजेपी को बढ़त प्राप्त है। सामाजिक आधार पर जहा ऊँची जातियां , वैश्य वर्ग और कुछ पिछड़ी जातियां बीजेपी के साथ है वही शत प्रतिशत मुस्लिम, तीन चौथाई यादव और कुछ पिछड़ी जातियां जनता परिवार के साथ है। इस चुनाव का x फैक्टर दलित जातियों के मत्थे है। यह समझना भूल होगी की जीतन राम मांझी समूचे दलित वोटर्स को NDA के पक्ष में करने में कामयाब होंगे।हाँ पासवान जाती पर सदा की भांति रामविलास का बर्चस्व जरूर है , पर बाकी वोटर्स पर न तो मांझी और ना ही पासवान का बर्चस्व है। मांझी ज्यादा से ज्यादा मगध क्षेत्र के मुसहर दलित वोटर्स को अपने पक्ष में जरूर कर सकते है। पर दलित वर्ग का बहुत बड़ा हिस्सा नितीश से अनुप्राणित महसूस करता है। इस चुनाव में नितीश खुद एक मुद्दा है। अगर वह अपने नाम की लहर को राज्यव्यापी तरीके से फैलाने में कामयाब होते है तो चुनाव जितने में कामयाब हो जायेंगे। चुनाव सर्वेक्षण में भी नितीश की लोकप्रियता को मोदी द्वय पर बढ़त प्राप्त है. NDA को इस चुनाव में नितीश पर तेज हमले से बचना चाहिए , वह ज्यादा से ज्यादा नितीश के राजनितिक धोख़े को मुद्दा बनाये न की उनकी प्रशासनिक विफलता को। नितीश केज़रीवाल की तरह ड्रामेबाज नहीं है, वह सुशासन की लाइन पर चलने वाले शख्श है अतः NDA को दिल्ली की तर्ज़ पर केज़री जैसे हमले से बचना चाहिए। महंगाई जैसे मुद्दे पर नमो की चुप्पी बीजेपी के लिए नुकसानदेह होगा। जबकि सच बात यह है की मोदी के कार्यकाल में मुद्रास्फीति दर थोक और खुदरा दोनों स्तर पांच साल में सबसे न्यून दर पर पहुंची पर अभी कुछ जिंसों के दाम आसमान छू रहे है ,उससे यही साबित होता है दाम नियंत्रण को लेकर नमो सरकार के पास भी मौलिक सोच नहीं है और इसे खेती की मौसमी परिष्ठितियो के जिम्मे छोड़ा हुआ है जो कभी भी कोई रूप ले सकता है।
अंत में बीजेपी के जीत की स्ट्रेटेजी इस बात पर निर्भर करेगी की वह जनता परिवार के परंपरागत वोटर्स को मुलायम और पप्पू यादव तथा तारिक व ओवैसी के जरिये कैसे बिखराव लाती है तथा जनता परिवार की स्ट्रेटेजी इस बात पर निर्भर करेगी वह बीजेपी के गैर यादव कुर्मी ओ बी सी वोट बैंक को तोड़ने में कैसे कामयाब होगी। -- अगर इस चुनाव में NDA की हार होती है तो मोदी को चुनावो के दौरान अपनी बेहद आक्रामक शैली जिसका वह विभिन्न चुनावो में हमेशा इस्तेमाल करते आये है उस पर दोबारा समीक्षा करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। दूसरी तरफ नीतीश की जीत भी उनके भविष्य के लिए शकुनदायक होगी इसकी गारंटी नहीं। ऐसा उनके राजनितिक साझेदारों के रंग ढंग से पता लगता है।

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