Tuesday, September 8, 2015


देश को जरूरत है एक मीडिया नीति और मीडिया आयोग की

बस करो मीडिआ नवीसो , इन्द्राणी मुखर्जी शीना बोरा को, बस। और भी कई गम है इस पब्लिक डोमेन में। इस चर्चा और कवरेज से न तो देश का जीडीपी बढ़ रहा है न ही भ्रष्टाचार पर कोई नकेल डल रहा है। और ना ही देश में होने वाले अनगिनत अपराधों के रोकथाम को लेकर इससे कोई बड़ी पहल दरश होने जा रही हैं। आप अपना स्पेस स्लॉट और टाइम स्लॉट क्यों बर्बाद कर रहे है। ये न कहें की इससे आपकी टीआरपी और रीडरशिप बढ़ रही है बल्कि आप इसे लोगों को मजबूरन परोस रहे है। इससे भी ज्यादा सनसनी खबर बाजार में आपको मिल सकती है। कम से कम देश के तमाम मज़लूमो , बेबसों , मेहनकतकशो , सघर्ष गाथाओं, सुसाशन और दुशाशन के दृष्टांतों , परिवर्तनगामी मसाईलो तथा व्यस्था की विरुपताओं को तो आप पनाह दे। ये भ्रम तोड़ दीजिये की देश विकसित हो चुका है और हर तरफ गुड़ी गुड़ी है तो ऐसे में चलिए आप यूरोप और पश्चिमी देश की तर्ज़ पर हाई सोसाइटी लाइफ स्टाइल की किवदंतियों , बेड रूम, बाथ रूम , वार्डरॉब , प्ले बॉय और बेबी डॉल की गुत्थियों में जाकर आप उलझे रहें। मैं यह बात एक मीडिया नवीस होकर कह रहा हूँ। मजे की बात यह है की यह विचार मेरा ही नहीं कई मीडिया नवीसो का है पर हमारे मीडिया के ट्रेंड फोलोवर और मीडिया मैनेजर ट्रेंड सेटर बनने को तैयार नहीं। इन्ही वजहों से देश को जरूरत है एक मीडिया नीति और मीडिया आयोग की. और सबसे ऊपर संविधान में चौथे खम्बे के दर्ज़े की। यही मीडिया के तमाम मर्ज़ की एकमात्र दवा है। इस दवा से पूर्ण स्वस्थ होकर मीडिया हमारे लोकतंत्र, समाज , देश और मौजूदा सिस्टम का सबसे मजबूत कारक बनकर उभर सकता है।

No comments:

Post a Comment