Wednesday, September 30, 2015

आजकल सोशल मीडिया में नेहरू पर बड़ी वाहियात टिप्पणियाँ की जा रही है जो बेहद अफसोसनाक है। नेहरू के बारे बे जो परसेप्शन दिया जा रहा है वह तथ्यगत तौर पर गलत है। नेहरू एक विराट व्यक्तित्व थे जिसमे विद्वता , दर्शन , दार्शनिकता, भावुकता ,आदर्शवाद और मानवत्ववाद तथा समकालीन आधुनिकतावाद का दुर्लभ समागम था। यह ठीक है की वह पश्चिमी ज्ञान विज्ञानं शैली से ही सही पर प्राचीन गौरवशाली भारत को एक महान आधुनिक राष्ट्र बनाना चाहते थे , जो अपने आप में कोई गलत दृष्टिकोण नहीं था। मुझे लगता है नेहरू को तीन बातो के लिए अपयश का भागी होना पड़ा। पहला की वह कांग्रेस के तमाम कद्दावर नेताओं सहित भारत के विभाजन को नहीं रोक पाये तथा देश का सांप्रदायिक आधार पर विभाजन हो गया। दूसरा नेहरू के बाद उनके खानदान का कांग्रेस और जाहिर तौर पर देश की सत्ता पर काबिज हो जाना और तीसरा अभी अभी सुभाष चन्द्र बोस की रहस्यमय मृत्यु और उसके बाद उनके परिवार की जासूसी में नेहरू की भूमिका को लेकर उठ रहे सवाल। अगर इन तीनो बिन्दुओ पर गौर करे तो देश के विभाजन में नेहरू ही नहीं पूरी कांग्रेस पार्टी पर दोष मढ़ना चाहिए जिसके एक अहम नेता होने के नाते नेहरू पर जिम्मेवारी बनती है पर नेहरू इसके खलनायक भी नहीं कहे जा सकते। दूसरा मामला नेहरू के अपयशी होने को लेकर सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है। अभी अभी टाइम्स अख़बार में नेहरूजी की भांजी नयनतारा सहगल का इंटरव्यू आया था । विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी नयनतारा कहती है की नेहरूजी ने कभी भी जाने और अनजाने अपनी बेटी इंदिरा को प्रोजेक्ट करने की पहल नहीं की। नयनतारा खुद कहती है की वह स्वयं वंशवादी राजनीती की घोर विरोधी है। यह कांग्रेस को सोचना चाहिए की वह नेहरू गांधी परिवार के वारिस के बगैर क्यों नहीं अपने को ढालती। कांग्रेस का नेहरू गांधी वंश के नेतृत्व में चलना दुर्भाग्यजनक है पर इसके लिए जवाहरलाल को दोष देना अनुचित है। तीसरे मामले पर मैं अपने फिंगर क्रॉस करना चाहूंगा। अगर नेहरू सचमुच सुभास के रहस्यमय मौत के षड़यंत्र या उनके परिवार की जासूसी में किसी भूमिका में पाया जाना सिद्ध होता है वह घोर अपयश के जरूर भागी होने चाहिए। परन्तु इसके इतर नेहरू देश के एक वैसे विलक्षण व्यक्तित्व के स्वामी थे जिसके आगे विपक्ष के स्तम्भ जेपी और लोहिया भी दिल से नतमस्तक रहते थे।

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