Tuesday, September 29, 2015

सुभाष के बाद अब शास्त्री जी की भी मौत पर से रहस्य का पर्दा उठाने की मांग शुरू हो गयी है। लगता है की सुभाष चन्द्र बोस की हत्या को लेकर नेहरूजी पर और शास्त्री जी की मौत को लेकर इंदिरा गांधी पर होने वाले संदेह से जो देश में आम पब्लिक परसेप्शन बना था चाहे वह संदेह के बुनियाद पर ही क्यों न हो उसकी सत्यता का पता लगाने का यह समयोचित वक्त है। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा सुभाष चन्द्र बोस से जुडी राज्य सरकार की करीब 150 फाइलों को अवर्गीकृत किये जाने के बाद किसी और ने नहीं बल्कि शास्त्री जी के बीजेपी पुत्र सुनील शास्त्री ने नहीं बल्कि कांग्रेसी पुत्र अनिल शास्त्री ने अपने पिता के हत्या होने का अंदेशा जताया है । मजे के बात ये है की दोनों मौत पर शक की सुई रूस के विगत के वामपंथी हुकूमत की तरफ जा रही है। इसी रूस के बोल्शेविक क्रांति ने नेहरू को प्रभावित किया और इंदिरा जी ने तो 1969 में रूस के वामपंथी हुकूमत के साथ ऐतिहासिक दोस्ती का दीर्घकालीन समझौता कर रूस के गुट में भारत को शामिल किया था.
अब बारी केंद्र सरकार की है की वह आज़ादी के एक बेहद लोकप्रिय सेनानी सुभास की मौत से जुड़े अपनी तमाम फाइलों को पब्लिक करें तथा साथ ही देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत पर से रहस्य का पर्दा उठाये।
वैसे सवाल ये है की शास्त्री जी के मौत के करीब 50 साल बाद उनके बेटों को अपने पिता की मौत पर संदेह क्यों हुआ। क्या अभी तक उन्होंने कांग्रेस के सत्ता के बंशवादी प्रबंधन से समझौता कर अपने को चुप कर लिया था। ऐसे एक नहीं अनेक मिसाले है. वैसे दीनदयाल उपाध्याय की हत्या को लेकर भी इस तरह के संदेह अटलविहारी वाजपेयी पर भी किया गया था। पर हमारा मानना है की कुछ भी हो असत्य का नहीं सत्य का रहस्योद्घाटन होना चाहिए।

No comments:

Post a Comment