Monday, December 15, 2014

आगरा में कबाड़ का धंधा करने वाले कुछ बांग्लादेशी मुस्लिम धर्मावलम्बियों द्वारा हिन्दू धर्म अपनाये जाने की घटना को लेकर जो मीडिया और दलीय प्रतिक्रिया आ रही है इससे एक साथ कई सवाल जन्म ले रहे है / पहली बात की हमारे संवैधानिक लोकतंत्र में धर्म अपनाये जाने की स्वंतंत्रता हमारे सात मौलिक अधिकारों में से एक है साथ ही यह धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का भी एक प्रबल प्रतिक है / परन्तु भारत के साथ देखा जाये तो इसकी अलग त्रासदी रही है / पहली बात की ऐतिहासिक, पौराणिक और मिथकीय रूप से बिरदारीवाद के ताने बाने से पनपा भारत का समाज , वर्णव्यस्था से संरचित हमारा सामुदायिक जीवन और इनके परिसंघ के रूप में उत्प्रकटित हुआ हिन्दू धर्म और फिर कालांतर में विभिन्न पंथो की स्थापना और इसके प्रसार के लिए हज़ारों साल की भारत की प्रयोगभूमि एक क्षत विक्षत तस्वीर खड़ा करती रही है / इससे एक तरफ हिन्दू धर्म की उपेक्षित जातियों ने या तो धर्मान्तरण का सहारा लिया या इनके सामाजिक परिस्थितियों के मुताबिक ये धर्मान्तरण के लिए उकसाए गए / कई हिन्दू धर्मावलम्बियों ने भारत में नए स्थापित पन्थो के दर्शन से प्रभावित होकर भी धरम परिवर्तन किया /
भारत के साथ दूसरी त्रासदी आज़ादी के दौरान मिली जब मज़हब के आधार पर देश के तीन टुकड़े हो गए / ऐसे में देश में धार्मिक स्वतंत्र का फायदा उठकर काम कर रहे धर्म प्रचारक संस्थाओ ने भारत में वर्षो से जो अपने धर्म की जमात तैयार की और जो कार्य वह आज भी कर रहे है , वह कही से ठीक नहीं / मै तो मानता हु हिन्दू धर्म जो कभी संगठित धर्म के कांसेप्ट पर नहीं चला और अब यदि वह अपने में आतंरिक सुधारो और सामाजिक समानता के जरिये अपने को संगठित कर रहा है तो वह स्वागत योग्य है / ऐसे में उसके करोङो लोगो ने जिन्होंने दूसरे धर्म को अपनाया यदि वह उनकी घर वापसी करता है तो यह कार्य तब तक अनैतिक नहीं कहा जायेगा जब तक वह यह कार्य बिना किसी भय, लालच और जबरन तरीके से करवाया जा रहा हो / वास्तव में देखा जाये तो इस तरह की समस्याए तब आती है जब सभी धर्म अपने तौर तरीके राजनितिक दलों के सरीखे ढंग से चलाते हो , उन्ही के तरीके से अपने अपने धर्म के पक्ष में प्रोपेगंडा करते हो /
देखा जाये तो ईश्वरवाद के आधार पर गठित दुनिया के सभी ट्रेडमार्क धर्म अपने अपने संस्थातंत्र और सत्तातंत्र वैसे ही चला रहे है जैसे राजनितिक दल चलाते है / ईश्वरवाद की प्राप्ति बिना किसी ट्रेडमार्क धर्म में शामिल हुए भी की जा सकती है/ मै यह भी मानता हु की सच्चे सेकुलरिज्म को हासिल करने के लिए धर्मांतरण पर भी रोक लगनी चाहिए / हिंदूवादी संस्थाए यदि यह कहती है की वे अपने लोगो की घरवापसी करा रहे है तो उनका यह कथन बड़ा ही गौर तलब बन जाता है क्योकी क्लासिक हिंदूइस्म अपने धर्म से एग्जिट कराता है , किसी को एंट्री नहीं देता और यहाँ उसका धर्मावलम्बी केवल जन्म के आधार ही कोई हो सकता है / यदि घरवापसी के बहाने यदि हिन्दू धर्म किसी अहिन्दू को हिन्दू बनता है तो यह हिन्दू धर्म का भी मुस्लिमकरण और ईसाई करण ही कहा जायेगा क्योकि यह परिपार्टी इन्ही दोनों धर्मो में अबतक देखी जा रही थी / लगता है हिन्दू धर्म प्रचारको को अब अपने धर्म को संगठित करने का मुस्लिम व ईसाई तरीका ही ज्यादा पसंद आने लगा है / अगर इन कृत्यों से हिन्दू धर्म अपने में जातिवाद, बिरादरीवाद और अस्पृश्यतावद को दूर करने और अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहित करने में सफल होता है तो मैं इस कृत्य का समर्थन करने के लिए बाध्य हूँ

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