Thursday, February 4, 2021

भारत पाक युद्ध की संभावना से क्या बनेंगे आर्थिक हालात

 भारत पाक युद्ध की संभावना से क्या बनेंगे आर्थिक हालात

मनोहर मनोज
पुलवामा में फिदाइन विस्फोट से उपजा भारत पाक तनाव अभी भारत ही नहीं समूची दुनिया के लिए सबसे बड़ा मौजू बना हुआ है। इसी के बरक् श इस मामले का एक बड़ा मसला भी इस विमर्श में शामिल हुआ है कि यदि दोनो देशों के बीच युद्ध होता है या अपनी उदघोषणा के अनुरूप यदि भारत पाकिस्तान के खिलाफ कोई निर्णायक सैनिक कार्रवाई करता है तो दोनो देशों के लिए इसके आर्थिक नतायज क्या होंगे। मीडिया के तमाम मंचों पर तो इस संभावित युद्ध से भारत व पाकिस्तान दोनों की बड़ी आर्थिक क्षति का अनुमान लगाया जा रहा है। दरअसल बात तो ये है कि जब भी कोई युद्ध की संभावना बनती है या कोई बड़ी आतंकी घटना घटती है तो उस समय हमारे समक्ष परोसे जाने वाली खबरों व विश्लेषण दोनों में तथ्य कम, सनसनी ज्यादा  परोसी जाती हैं। वस्तुस्थिति ये है कि कोई भी संप्रभू देश चाहे वह कितना भी कल्याणकारी राज्य के सिद्धांतों पर चलने वाला देश क्यों ना हो, उसकी पहली प्राथमिकता उसे अपनी सीमाओं की रक्षा करना और किसी भी तरह के आंतरिक उपद्रव का शमन करना होता है। यही वजह है कि भारत सहित हर देश अपनी तमाम जनसमस्याओं व जरूरतों के बावजूद सैन्य क्षेत्र के लिए विशाल बजट आबंटन करते हैं। चूंकि भारत में पुलवामा से उपजे हालात जो पिछले तीन दशक के दौरान कश्मीर में हुए सभी आतंकी वारदातों में सबसे इंतिहाई वारदात है, उस वजह से भारत राष्ट्र राज्य का स्वाभाविक दायित्व हो गया है कि अब वह पाकिस्तान प्रायोजित इस आतंकी कृत्य के मूल स्रोत का ही स्थायी शमन करने का प्रयास करे। इस परिस्थिति में भारत के पास परंपरागत युद्ध के अलावा विशुद्ध लक्ष्यभेदी व बहुविध रणनीतिक हमलों यानी दोनों का विकल्प मौजूद है। इसके लिए भारत में रक्षा क्षेत्र के लिए रूटीन तरीके से किया जाने वालाआबंटित संसाधन काफी होगा। वैसे भी भारत में करीब तीन  लाख करोड़ का रक्षा बजट होता है जिसमे करीब एक लाख करोड़ हथियारों व विभिन्न रक्षा उपकरणों की खरीद पर व दो लाख करोड रुपये सैनिकों के वेतन व पेंशन पर खरच होते हैं। इसके अलावा भारत की करीब छह लाख अद्र्ध सैनिक बल संख्या है। कहना ना होगा भारत अभी भी कश्मीर में करीब पांच लाख सैनिकों की उपस्थिति के जरिये अपने सैन्य बजट का अच्छा खासा हिस्सा पहले से ही यहां व्यय कर रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच तुलना करें तो चूंकि भारत पाकिस्तान के मुकाबले छह गुना बड़ा देश है, जाहिर है भारत के पास सैन्य संसाधन भी ज्यादा हैं। हां ये बात जरूर है कि पाकिस्तान में सैन्य दबदबे वाली सरकारें वहां सेना को अपनी जीडीपी के मुकाबले भारत की तुलना में ज्यादा संसाधन आबंटन करती हैं। यही वजह है कि भारत के मुकाबले इतना छौटा देश होते हुए भी पाकिस्तान की पैदल सेना की संख्या करीब साढे छह लाख है जो भारत जैसे विशाल देश की तब भी आधी है। यह बात सबको मालूम होना चाहिए की एक समय  प्रति व्यक्ति आय के मामले में इसी पाकिस्तान को १९८० के दशक तक भारत पर बढ़त प्राप्त थी। परंतु पिछले दो दशक से लगभग हर तुलनात्मक आर्थिक मानदंडों पर भारत पाकिस्तान से काफी आगे जा चुका है। सबसे बड़ा अंतर विदेशी मुद्रा रिजर्व को लेकर दिखता है जहां भारत का विदेशी मुद्रा कोष 417 अरब डालर है जबकि पाकिस्तान के पास सिर्फ 17 अरब डालर। ज्ञातव्य है कि किसी भी देश का विदेशी मुद्रा कोष उसकी विदेशो से आधुनिक सैन्य उपकरण खरीदने की सलाहियत का द्योतक होता है। भारत की  तुलना में पाकिस्तान की आर्थिक अधोसंरचना बिल्कुल खस्ता है। मौजूदा स्थिति में पाकिस्तान बुरी तरह से वैश्विक कर्ज की फिराक में है और उसके आसरे का सहारा सिर्फ साउदी अरब, तुर्की और चीन पर टिका हुआ है। परंतु इसका मतलब ये नहीं है कि पाकिस्तान इस परिस्थिति में युद्ध करने के अपने नैसर्गिक चरित्र से विलग हो जाएगा। हां उसने अपने इस नैसर्गिक चरित्र के अनेकानेक नये आयाम जो इसने पहले से विकसित किये हैं, उसे ही आगे भी आजमाने का अपना प्रयास जारी रखेगा । पाकिस्तान भारत के साथ अपनी विगत के चार युद्धों में अपनी हार के बाद भारत के साथ अपनी परंपरागत युद्व नीति को एक तरह से त्याग चुका है। भारत के साथ उसकी नीति केवल और केवल छद्म युद्व करने की है और इसका इतिहास कोई भारत व पाकिस्तान के बीच हुए करगिल युद्व के बाद से शुरू नहीं होता है। पाकिस्तान ने तो 1947 के बंटवारे के बाद एक देश का रुप लेने के बाद ही कश्मीर को हड़पने की मंशा वहां कबायली उपद्रवियों को भेजकर एक तरह से छदम युद्व के जरिये ही अंजाम दिया था। और इस कृत्य से वह कश्मीर का करीब एक तिहाई हिस्सा हड़पने में सफल भी रहा और वह आज भी उसी के अवैध कब्जे में है। आज के पाकिस्तान के सैन्य नियंता इस बात को भलिभांति जानते हैं कि उनके पास ना तो आर्थिक संसाधन हैं और ना ही भारत के मुकाबले सैनिक साजोसामान। न्यूक्लियर हथियार तो सिर्फ ब्लैकमेल करने का उनका हथकंडा है। पाकिस्तान को दरअसल जिहादी समूहों द्वारा भारत पर किये जा रहे अनवरत आतंकी हमलें ही रणनीतिक रूप से ज्यादा फायदेमंद लगते हैं। इस वजह से अभी पाकिस्तान आर्थिक तौर पर तो बिल्कुल ही नहंी परंतु रणनीतिक तौर पर वह भारत से किसी भी तरह के खुले युद्व टाले जाने के लिए कई तरह के नये लालीपोप देने की नयी प्लानिंग कर सकता है।
भारत का जहां तक सवाल है तो वह तुलनात्मक रूप से एक मजबूत आर्थिक देश होते हुए भी राजनीतिक और सामाजिक रूप से युद्व की स्थिति हमेशा टालने की नीति पर चलता रहा है। इस मामले में भारत कूटनीतिक स्तर पर पहले से ही ज्यादा निर्भर रहता आया है और आज की तारीख में भारत को पाकिस्तान के मामले में विश्व कूटनीति पर बढ़त भी प्राप्त है। परंतु इन परिस्थतियों ने भी पाकिस्तान के सैन्य आकाओं को भारत के साथ उसकी आतंक की बहुआयामी रणनीति पर पुनर्विचार के लिए अबतक प्रेरित नहीं किया है। परंतु पुलवामा के इस हमले के बाद भारत की पाकिस्तान के साथ अपनायी जाने वाली रणनीति में अब आमूल चूल परिवर्तन होने की संभावना है। भारत अब पाकिस्तान के साथ अपने हमले में नये सिरे से युद्ध तकनीक, सैन्य खूफिया, छापामार युद्ध के अनगिनत तरीकों का इस्तेमाल कर सकता है। इन संचालनों पर होने वाले खरचे परंपरागत स्तर पर होने वाले युद्ध की तुलना में कम ही बैठेंगे। चूंकि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने इस पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान से आर या पार होने की बात कही है साथ ही दुनिया को इस बात का भी मैसेज दिया है कि हमारी होने वाली आगामी प्रतिक्रिया समूची दुनिया के लिए एक अभूतपूर्व मिसाल बनेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह बयान भारत सरकार और इसके नीति नियामकों के रणनीतिक सूझबूझ, निर्णय प्रतिभा और सुविचारित कौशल का ज्यादा इम्तहान  लेगी ना कि भारतीय की मौजूदा अर्थव्यवस्था का। वैसे भी प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान पर हमला करने की नहीं बल्कि पाकिस्तानी आतंक के करतूतदानों को अनोखी सजा देने की बात कही है जिसका अंजाम देखना दिलचस्प होगा। 

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