Thursday, February 4, 2021

यह बजट का लेखानुदानवाद नहीं लोकलुभावनवाद

 यह बजट का लेखानुदानवाद नहीं लोकलुभावनवाद

मनोहर मनोज
इस अंतरिम बजट से चुनावी लल्लीपोप की बौछार लगाई जाएगी इस बात का अंदाजा तो पहले से ही था। परंतु सवाल ये है कि जब यह अंतरिम बजट ही घोषणाओं की लाइमलाइट ले लेगा तो फिर आगामी नयी सरकार का पहला बजट क्या बताएगा, इसमे क्या जोड़ेगा और क्या घटाएगा? क्या यह अंतरिम बजट उस सूरत में यदि आगामी गैर एनडीए की सरकार बनती है तो उसमे यही शाब्दिक आकार लेगा या इसका कोई वैकल्पिक लोकुलाभवन फार्मूला तैयार किया जाएगा और यदि अगला पूर्ण बजट एनडीए सरकार की तरफ से भी यदि पेश होगा तो क्या इस अंतरिम बजट की घोषणाओं को पर्याप्त वित्तीय समर्थन और जमीनी स्वरूप दिया जा सकेगा। देखा जाए तो विगत में भी तत्कालीन संसदीय परिस्थितियों के अनुरूप लेखानुदान बजट पेश किये गए हैं पर चुनावी साल में लेखानुदान बजट को इस तरह लोकलुभावन तडक़े के साथ परोसे जाने की परिपार्टी पिछले चुनावी साल २०१४ में पी चिदंबरम ने शुरू की। उस अंतरिम बजट में वन रैंक वन पेंशन जैसा लोलुभावन उल्लेख पिछली यूपीए सरकार ने किया था पर इस बार २०१९ के अंतरिम बजट में मौजूदा एनडीए सरकार के अंतरिम वित्त मंत्री पीयुष गोयल ने सामान्य बजट पेशी से भी ज्यादा वक्त लेकर करीब पौने दो घंटे का भाषण दे डाला। सो इस अंतरिम बजट भाषण मे आगामी सरकार के गठन तक के वक्त के खर्चे का लेखा कम, नयी लोकलुभावन योजनाओं के अनुदान की घोषणाएं हीं ज्यादा दिखींं। 
इस अंतरिम बजट की घोषणाओं से यह साफ दिखा कि यह सरकार  आगामी चुनावी को लेकर जनमत को लुभाने का अपने आप पर भारी दबाव महसूस कर रही थी। और यही वजह है कि इस अंतरिम बजट में मोदी सरकार ने एक नये सिरे से जय किसान जय जवान और उसके साथ श्र्रमेव जयते व मध्यवर्ग जयते का उद्घोष किया है। नरेन्द्र मोदी नीत मौजूदा एनडीए सरकार जिसके तहत रिकार्ड संख्या में योजनाएं प्रधानमंत्री के केवल उपसर्ग जोडक़र शुरू की गई  उसमे अब दो नये उपसर्ग और जुड़ गएं हैं--एक पीएम किसान योजना और दूसरा पीएम श्रमयोगी मानदेय योजना। कहना ना होगा कि पिछले एक वर्ष से इस सरकार को किसान लाबी का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक व गैर राजनीतिक समूहों का जबरदस्त दबाव झेलना पड़ रहा था। अब एनडीए सरकार को यह लग गया कि उसके द्वारा शुरू की गई नयी विस्तृत फसल बीमा योजना और एमएसपी में अभूतपूर्व बढोत्तरी की घोषणाएं देश के किसानों के असंतोष का शमन करने में विफल हो रही हैं और वह विपक्ष के किसान ऋण माफी कदमों के आगे वह राजनीतिक रूप से असहाय महसूस कर रही है, ऐसे में पांच एकड़ जमीन तक के स्वामी किसानों को दो हजार प्रति चौमाही की दर से यानी साल में छह हजार रुपये बतौर उनकी आय राहत उनके खाते में जमा हो जाएंगी। इस योजना पर एक साल में करीब 75 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। कहना ना होगा कि इस योजना की अर्थशास्त्रीय गुणवत्ता कर्जमाफी की स्फीतिकारी योजना से बेहतर है और यह राजकोषीय स्वास्थ्य पर उतना बुरा असर नहीं डालेगी क्योंकि इस खर्चे का भार सरकार अपनी अतिरिक्त आमदनी या लीकेज दूर कर वहन कर सकती है। कृषि के दूसरे सहयोगी पेशे मत्स्य व पशुपालन क्षेत्र में दो प्रतिशत ब्याज अनुदान की घोषणा भी एक उल्लेखनीय पक्ष है। इस अंतरिम बजट की दूसरा प्रमुख लोकलुभावन पक्ष है नयी प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानदंड योजना जिसके तहत देश के करीब 40 करोड़ अंसगठित श्रमिकों को उनके साठ साल की आयु के बाद अधिकतम तीन हजार रुपये प्रति माह का पेंशन प्रदान करना है। इसके तहत उन्हें अधिकतम 100 रुपये का अंशदान करना होगा और इतनी ही राशि सरकार व्यय करेगी। सामाजिक सुरक्षा की दिशा में यह काफी बेहतर योजना साबित होगी। अंतरिम बजट में दूर्घटना बीमा के तहत हरजाने की राशि में बढ़ोत्तरी व पीएफ तथा इएसआईसी सुविधाएं की सीमा वृद्धि की घोषणाएं भी उल्लेखीय हैं। जय जवान को नये सिरे से अनूगूंज प्रदान करने के लिए इस बार रक्षा बजट को तीन लाख करोड रुपये से उपर करते हुए सैन्य वेतन आयोग के जरिये सैनिकों को वन रैंक वन पेंशन योजना के तहत पिछले तीन साल में २५००० करोड रुपये व्यय किये जाने का उल्लेख उसी भावना का परिचायक है।
बजट का सबसे बड़ा उल्लेनीय व लोकलुभावन पक्ष है आयकर की सीमा में करीब दोगुनी बढ़ोत्तरी। यानी जो अभी आयकर सीमा अधिकतम तीन लाख है वह अब बढकर पांच लाख हो गई है तथा तमाम तरह के कर छूट बचत प्रोत्साहन के उपरांत यह प्रभावी सीमा साढे छह लाख तक की आमदनी पर लागू हो रही है। वेतन भोगियों को मिलने वाली अतिरिक्त छूट सीमा चालीस हजार से बढकर पचास हजार रुपये तथा किराये से प्राप्त 2.40 लाख रुपये की सालाना आमदनी को जीएसटी से मुक्त रखा जाना तथा पचास लाख तक क े सालाना कारोबार को जीएसटी की परिधि से बाहर रखा जाना जैसे अनेक कर छूट की सौगाते इस अंतरिम बजट में लोगों को नवाजी गई हैं। मजे की बात ये है कि इस सरकार ने इन तमाम लोकलुभावन घोषणाओं के बावजूद अपने वित्तीय घाटे को आगामी वित्त वर्ष २०१९-२० में महज ३.4 प्रतिशत तक रखे जाने का दावा किया है जो अर्थव्यवस्था के वित्तीय स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद अनुकूल आंकड़ा है। कहने को तो यह अंतरिम बजट था परंतु वित्त मंत्री पीयुष गोयल ने अपने भाषण में अपनी एनडीए सरकार के भविष्य की विकास दृष्टि बताने से नहीं हिचके। उन्होंने बताया कि आने वाले सालों में सरकार अपने दस नये विकास विजन पर काम करेगी जिसमे देश कीे स्वास्थ्य रक्षा, उर्जा सुरक्षा, प्रदूषण मुक्ति व आधारभूत संरचना निर्माण, डिजीटल इंडिया व न्यूनतम सरकार व अधिकतम सुशासन  जैसे अहम उद्देश्य निर्धारित किये गए हैं। इस अंतरिम बजट में ३४ करोड़ जनधन खाते, छह करोड़ उज्जवला एलपीजी कनेक् शन, करीब तीन करोड बिजली कने क् शन व करीब ८ लाख ग्रामीण शौचालयों के निर्माण तथा करीब डेढ करोड प्रधानमंत्री ग्रामीण आवासों के निर्माण जैसे आंकड़े लोगों के सामने दर्शाएं हंै। दुनिया में दूसरा सबसे बड़े स्टार्ट अप देश होने तथा देश में महंगाई दर को पांच फीसदी से कम रखते हुए  दुनिया में सबसे ज्यादा विकास दर हासिल करने का दावा अंतरिम बजट में बार बार दुहराया गया। भ्रष्टचार एवं लीकेज को डीबीटी तथा आनलाइन पेमेंट के जरिये कम करने भी बार बार उल्लेख किया गया। परंतु बेरोजगारी को लेकर वित्त मंत्री बार बार अपने आप का बचाव करते दिखे । इसलिए उन्होंने कभी उन्होंने देश में हाईवेज, एयरवेज, डिजीवेज व रेलवेज के जरिये रोजगार मिलने का उल्लेख किया परंतु सांख्यिकी आयोग द्वारा उत्प्रकटित  बेरोजगारी अंाकडों का संतोषजनक समाधान वह अपने बजट भाषण में नहीं दर्शा पाए। 
देखा जाए तो हर बजट भाषण शब्दों, मुहाबरे व कविताओं से लबरेज होकर लोगों पर घोषणाओं की बौछारे करता हैं परंतु सबसे अहम सवाल इनके जमीन पर अवतरित होने का ही होता है और वही किसी बजट की सबसे प्रमुख कसौटी भी होती है। परंतु पीयुष गोयल का यह बजट तो वैसे भी अंतरिम है जिसमे अवतरित होने पर ज्यादा ही संदेह है क्योंकि यह आने वाले रेगुलर बजट से चाहे जिस भी रूप में हो प्रतिस्थापित कर दिया जाएगा।

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