Wednesday, July 27, 2016

कारपोरेट मामले विभाग के महानिदेशक बंशल के साथ हुई घटनाक्रम ने यह साबित किया की कैसे भ्रष्टाचार की घटना का फलसफा एक बेहद हृदयविदारक घटना में तब्दील हो जाता है। 8 -9 लाख रुपये घूस लेते गिरफ्तार होना और फिर उस शोक में उनकी पत्नी और बच्ची का फांसी के फंदे पर झूल जाना यह बताता है जिंदगी कई बार कैसे बेहद हैरानगी भरी करवट लेती है। 
हमें नहीं मालूम नहीं की बंशल बेईमान है या ईमानदार, सच की घटना है या फँसायी गयी हुई है। पर प्रथमदृष्टया प्राप्त रिपोर्टो के मुताबिक तो वह घुस लेते धरे गए. पर स्वयं बंशल के लिए हैरानगी इस बात की होगी की हमारा मौजूदा सिस्टम करप्शन के मामले में तो फुल प्रूफ तो है नहीं , पर मेरे दिन क्या इतने ख़राब थे की मैं धरा गया और बाकी के तमाम लोग खूब मोटे रिश्वत कमा रहे है और उनके परिवारों में दौलत की ख़ुशी झलक रही है और उनके घरों में दौलत का अहंकार कुलांचे भर रहा है। पर मैं किसी के रिश्वत के प्लाट में फंस गया.. और तो और मेरे परिवार ने भी ख़ुदकुशी कर ली।
सबसे बड़ा प्रश्न है हमारा समाज कब भ्रष्टाचार को अपनी सबसे बड़ी कुकृत्य मानेगा? क्या वह इसके लिए बंशल जैसी अपवाद परक घटना के जरिये इतिश्री मान ले गा?
हमारे इस देश में बंशल सरीके घूस की लाखो डीलिंग रोज हो रही है। देश के करीब 25 लाख दफ्तरों और कार्यालयों में भ्रष्टाचार के अनगिनत कारनामें यह सोचकर अंजाम दिए जा रहे है की कुछ नहीं बिगड़ेगा, बशर्तें सब मिल बाँट कर खाएं। यदि कोई असंतुष्ट रह गया तो बंशल जैसा घटनाक्रम उत्पन्न होगा।
पर भ्रष्टाचार तो असल में तब ख़तम होगा जब लोगों में नैतिक क्रांति आयेगी और जब लोगों में यह डर समा जायेगा की जो भी भ्रष्टाचार करेगा वह व्यक्ति बंशल का अंजाम भुगतेगा।

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