असम में 40 लाख लोगो की भारतीय नागरिकता की पात्रता सूची से विलग हो जाने वाली रिपोर्ट को लेकर देश भर में अलग अलग मंचो पर जो द्विपक्षीय और दोध्रुवीय विश्लेषण हो रहा है, उसमें इस समस्या का ना तो कारण दिखेगा और ना ही समाधान। इस पर मै कुछ लिखने को विवश हुआ। विवश इसलिए की ये चालीस लाख लोग तकनीकी रूप से भारत के नागरिक भले नहीं हों ,जिसमे भूल वश हुई गैर पात्रता शामिल नहीं है, पर ये व्यक्ति मानवीय दृष्टि से , मानवशास्त्रीय दृष्टि से, ऐतिहासिक दृष्टि से , भारतीय जनजीवन और संस्कृति की दृष्टि से और अखंड भारतीय इतिहास के डीएनए के हिसाब से उसी भारत के ही तो हिस्से है। आखिर इस समस्या की जड़े कहा से शुरू होती है। जिन लोगो ने देश को सांप्रदायिक रूप से विभाजित करने का महा पाप किया, जिन्होंने विभाजन के दंगो में दस लाख लोगो की बलि ली, आज इसी का ही नतीजा है की असम के 40 लाख लोग और ना जाने बांग्लादेश से पाकिस्तान गए लाखो उर्दूभाषी बिहारी मुसलमानों को यह जिल्लत सहनी पड़ी है। यह सभी लोग मूल रूप से भारतीय है ,ठीक वैसे ही जैसे पश्चिम स्थित पाकिस्तान और पूर्व स्थित बांग्लादेश मूल में भारत देश की ही सरजमीं है।
द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत देकर देश का विभाजन करने वाला इस मुल्क का महाखलनायक जिन्ना इतना बड़ा पाप करने के बाद अपने पोलिटिकल shrewdness और वेस्टर्न सोफिस्टिकेशन की वजह से अभी भी कई बौद्धिकों और यहाँ तक के भारत के भी कई लोगो की डार्लिंग बनता है। वह जिन्ना जो निजी जीवन में घोर प्रोग्रेसिव, सेक्युलर और कम्पलीट गैर इस्लामिक था पर राजनितिक जीवन में वही शक्श उतना ही फसादी , इस्लामिस्ट और अलगाववादी था। जो जिन्ना अपने समूचे जीवन में अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा में कभी मुस्लिम लीग तो कभी कांग्रेस , कभी ब्रिटिश कोएटरी तो कभी भारतीय बिज़नेस टाइकून के संग अपने पाला बदलता रहता था।
वही जिन्ना 1935 इंडिया एक्ट में सेपरेट कम्युनल इलेक्टोरेट का प्रोविज़न देखकर वाल पर लिखा सेंटेंस पहचान लिया और फिर शुरू होता है मुस्लिम कम्युनल पॉलिटिक्स की उसकी भयानक कम्पैन। 1946 की प्रांतीय अस्सेम्ब्ली के चुनाव में जिन्ना की मुस्लिम लीग को हैरतनाक सफलता दिलाकर पाकिस्तान की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करने वाले लोग पाकिस्तान के मुस्लिम तो कत्तई नहीं थे। इनके पक्ष में मतदान करने वाले सबसे अव्वल तो यूपी , सीपी , बिहार और उसी बंगाल के थे। वही बंगाल जो कम्युनल बिभाजन के बाद भी भारत स्थित बंगाल में मुस्लिम की करीब 25 प्रतिशत आबादी बसती है ,वही बंगाल के 40 लाख मुस्लिम जो माइग्रेट कर असम में है। यह कौन सा डेमोग्राफिक लॉजिक बनता है।
ममता दीदी इस एनआरसी फैसले को लेकर जो चिंता जता रही है , वह चिंता तो उन्हें अपने बंग भंग को लेकर जतानी चाहिए।
देश के हिन्दुओ को यहाँ के मुसलमानो से घृणा करने की जरुरत नहीं है। भारत के कथित मुसलमानो ने अरब में फली फूली मजहब का आवरण जरूर ओढा है, पर जीवविज्ञानी दृष्टि से वह वह भारतीय ही है, धीरे धीरे उन्हें जब अपनी हकीकत और ऐतिहासिक तथ्य का पता लगेगा तो खुद शर्मसार होंगे और भारत-पाक बांग्ला के पुनर एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करेंगे। हिन्दू और मुस्लिम दोनों जब अपने इतिहास का सही रूप से दीदार करेंगे तो समस्या का अपनेआप समाधान हो जायेगा।
आखिर हिन्दू धरम की वर्णव्यस्था और दूसरी मुस्लिम समाज का ऐतहासिक भारतीय सच पर आत्मावलोकन हो जाये तो फिर राष्ट्र और धर्म दोनों का एकीकरण हो जायेगा। कम से कम मुझे तो इस बात का जरूर भरोसा है।
द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत देकर देश का विभाजन करने वाला इस मुल्क का महाखलनायक जिन्ना इतना बड़ा पाप करने के बाद अपने पोलिटिकल shrewdness और वेस्टर्न सोफिस्टिकेशन की वजह से अभी भी कई बौद्धिकों और यहाँ तक के भारत के भी कई लोगो की डार्लिंग बनता है। वह जिन्ना जो निजी जीवन में घोर प्रोग्रेसिव, सेक्युलर और कम्पलीट गैर इस्लामिक था पर राजनितिक जीवन में वही शक्श उतना ही फसादी , इस्लामिस्ट और अलगाववादी था। जो जिन्ना अपने समूचे जीवन में अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा में कभी मुस्लिम लीग तो कभी कांग्रेस , कभी ब्रिटिश कोएटरी तो कभी भारतीय बिज़नेस टाइकून के संग अपने पाला बदलता रहता था।
वही जिन्ना 1935 इंडिया एक्ट में सेपरेट कम्युनल इलेक्टोरेट का प्रोविज़न देखकर वाल पर लिखा सेंटेंस पहचान लिया और फिर शुरू होता है मुस्लिम कम्युनल पॉलिटिक्स की उसकी भयानक कम्पैन। 1946 की प्रांतीय अस्सेम्ब्ली के चुनाव में जिन्ना की मुस्लिम लीग को हैरतनाक सफलता दिलाकर पाकिस्तान की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करने वाले लोग पाकिस्तान के मुस्लिम तो कत्तई नहीं थे। इनके पक्ष में मतदान करने वाले सबसे अव्वल तो यूपी , सीपी , बिहार और उसी बंगाल के थे। वही बंगाल जो कम्युनल बिभाजन के बाद भी भारत स्थित बंगाल में मुस्लिम की करीब 25 प्रतिशत आबादी बसती है ,वही बंगाल के 40 लाख मुस्लिम जो माइग्रेट कर असम में है। यह कौन सा डेमोग्राफिक लॉजिक बनता है।
ममता दीदी इस एनआरसी फैसले को लेकर जो चिंता जता रही है , वह चिंता तो उन्हें अपने बंग भंग को लेकर जतानी चाहिए।
देश के हिन्दुओ को यहाँ के मुसलमानो से घृणा करने की जरुरत नहीं है। भारत के कथित मुसलमानो ने अरब में फली फूली मजहब का आवरण जरूर ओढा है, पर जीवविज्ञानी दृष्टि से वह वह भारतीय ही है, धीरे धीरे उन्हें जब अपनी हकीकत और ऐतिहासिक तथ्य का पता लगेगा तो खुद शर्मसार होंगे और भारत-पाक बांग्ला के पुनर एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करेंगे। हिन्दू और मुस्लिम दोनों जब अपने इतिहास का सही रूप से दीदार करेंगे तो समस्या का अपनेआप समाधान हो जायेगा।
आखिर हिन्दू धरम की वर्णव्यस्था और दूसरी मुस्लिम समाज का ऐतहासिक भारतीय सच पर आत्मावलोकन हो जाये तो फिर राष्ट्र और धर्म दोनों का एकीकरण हो जायेगा। कम से कम मुझे तो इस बात का जरूर भरोसा है।
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