Tuesday, July 17, 2018

किसी भी तरह की सामाजिक हिंसा, चाहे कथित गौरक्षकों द्वारा किया जाता हो, बच्चा चोर के खिलाफ किया जाता हो , किसी महिला को डायन बता कर किया जाता हो या समाज के वंचित और दलित जाती के मुख्यधारा में आने पर किया जाता हो या धार्मिक दंगाइयों द्वारा किया जाता हो , उसका प्रतिकार करने के लिए किसी कोर्ट के निर्देश का इंतजार करना पड़े तो यह बात किसी सामाजिक और सार्वजनिक व्यस्था के लिए बेहद शर्मनाक है। कड़ा कानून अपने जद में आने वाले कुछ चंद मामलों और उसके अपराधियों को महज दण्डित कर सकता है , वह भी कई सालों के बाद। इसका रेमेडियल यानि समाधान और प्रिवेंटिव यानि रोकथाम तो हमारे सामाजिक और सार्वजनिक तंत्र के चाक चौबंद और ईमानदार सक्रियता के बदौलत ही संभव है। वह तंत्र जो बिलकुल राग द्वेष और भय प्रीत से मुक्त हो । जिसकी नज़र में केवल और केवल इंसाफ और इंसानियत है।
पर सावधान ! इंसानियत का किसी भी राजनीतिक दल सरीखे कार्यरत संगठित और चमत्कारिक धर्म से कोई लेना देना नहीं होता। एक नास्तिक व्यक्ति भी आला दर्ज़े का इन्सनियतपरस्त और मानवीय हो सकता है।

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