Saturday, September 9, 2017

अपराध की वारदात वो करते है जो अनपढ़, अधीर  और नासमझ होते है, भ्रष्टाचार वो करते है जो पढ़े लिखे, पर लालची और स्वार्थी होते है , आतंकवाद वो करते है, जो पढ़े होते है, साथ में कट्टर और क्रूर होते है। नक्सल वो होते है जो अपनी राजनीतिक विचारधारा और हिंसा का कॉकटेल पीते है। दंगाई वो होते है जिनके दिल और दिमाग में केवल अपने धरम के प्रति प्रेम और दूसरे धरम के प्रति नफरत होती है। बलात्कारी वे होते है, जो अपने रूमानी और जिस्मी जनून में अनाग्रह और अधीरता के वशीभूत हो जाते है। पर इसमें मार काट करने वाले गैर पेशेवर अपराधियों के मनोविज्ञान को देखे तो उनपर गुस्सा से ज्यादा तरस आता है। उनकी थोड़ी सी भूल, लापरवाही , कुंठा , तंगी , नासमझी , निर्दयता उनसे समाज में  कैसे कैसे अपराध करवा देती है और वह कानून के नज़र में फँसी के फंदे का पात्र बन जाता है। आखिर आंकड़े क्यों ये बताते हैं की  अस्सी प्रतिशत फंदा गवार, अनपढ़ , जाहिल , समाज के कमजोर वर्गो को प्राप्त होता है। ये कोई पेशेवर अपराधी नहीं बल्कि अपनी त्वरित निर्दयता, भय और गुस्से की ज्वाला में वो गैर इंसानी हरकत कर देते  हैं। प्रद्युम्न जैसे छोटे मासूम के साथ उस बहशी ने जो हरकत की, उस पर उसकी फांसी होनी तय है। पर यह व्यक्ति थोड़ा भी सोचा होता की मै अपनी कुंठा और भय में कैसा हरकत करने जा रहा हूँ जिसका नज़ारा देखर सारी मानवता सिहर उठेगी , रुदन और क्रू नदन से विभोर हो उठेगी, हर माँ बाप अब अपने बच्चे में उस प्रद्युम्न का अक्स और अंजाम की  कल्पना कर भयभीत रहेगा।  वह नौनिहाल तो दुबारा नहीं आ पायेगा, पर आगे  हमारे समाज की मनः स्थिति में कैसे सुधार आ पायेगा। समाज में करोडो लोग किस किस मानसिकता के वाहक होते है , उनका संतुलन, समझ , संवेदना, धैर्य , सचाई का स्तर क्या है और फिर उन्हें सही रास्ते पर ले जाने के क्या उपाय हो सकते है , समाज के दिशा निर्देशकों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है।   




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