Saturday, September 9, 2017

प्रधानमंत्री उस दधीचि का वरण क्यों किया है

प्रधानमंत्री उस दधीचि का वरण क्यों किया है जो उन्हें वर्ग मित्र और वर्ग शत्रु की चुनावी राजनीती में विभाजन रेखा की दीवार को और ज्यादा गहरी कर सके , प्रधानमंत्री को तो उस दधीचि कर वरन करना चाहिए जो अपने अस्थि खंजर से अपराध, भ्रष्टाचार , बीमारी , गन्दगी , अकुशलता , संवेदनहीनता, बेरोजगारी और निर्धनता का समूल नाश कर सके। दरअसल प्रधानमंत्री स्वयं एक अच्छे विजनरी है , बेहद मिहनती है , हर आदमी अपने लिए कोई न कोई  मनपसंद पॉइंट रखता है, अपने को ऊर्जामान रखने के लिए उस हिसाब से प्रधानमंत्री भी अपनी बेष भूषा के जरिये अपने को जबरदस्त तारो तजा रखते है। विदेशी दौरों और पब्लिक मीटिंग में प्रधानमंत्री का पैशन और प्रोऐक्टिवेनेस देखने लायक होता है। पर इन सब के बावजूद नरेंद्र मोदी के राजनितिक उभार के इतिहास को देखें तो यह साफ पता चलता है , ये उस स्कूल थॉट से बिलोंग करते है , जो पहचान की राजनीती पर आधारित रहा है। इस स्कूल ऑफ़ थॉट से हमारे यहाँ कई राजनीतिज्ञों की फेहरिश्त है। यह एक ऐसा स्कूल  है उसमे बड़ी तेजी से राजनीती के करियर का ग्राफ बढ़ता है। इसमें लालू , मुलायम , मायावती, दिग्विजय , ओबैसी , आज़म,के नाम भी शामिल है। अब राजनीती में एक दूसरा स्कूल ऑफ थॉट है वह बयान स्कूल ऑफ थॉट है। इसमें पहचान वाले सभी वे लोग जिन्होंने इसमें मास्टरी कर ली , वह और सफल है।इसी स्कूल से केजरी का भी उदय हुआ। लेकिन  इस स्कूल में  मुलायम और मायावती अब पीछे हो गये  है। पर इन दो के अलावा जिनमे प्रशासन करना आता है और अपने  काम के मामले में अपना विज़न भी रखता है और व्यक्तिगत रूप से भ्रष्ट भी नहीं , उस सूची में मोदी आते है, पर लालू  सरीखे लोग इस सूची में नहीं आते। इस लिए मोदी अभी आज की इस कलियुगी राजनीती के शिखर पर है।  परन्तु इतिहास में  स्थायी जगह वो लोग बनाते है जो इन सबसे इतर अपने आदर्श , मानवता , विज़न , सदाशयता , विराट संवेदनशीलता , नैतिकता और बड़े वैल्यूज को लेकर जीते है, खैर गांधी तो बहुत ऊपर की चीज थे। पर नेहरू , शास्त्री , वाजपेयी जैसे लोग इसमें जरूर आते थे।   यहाँ तक की अडवाणी जी भी जो बीजेपी में धुर दक्षिणपंथी सोच और शैली के जन्मदाता माने जाते थे, उन्होंने  भी बेहद उसूल  और नियमितता के साथ अपना सार्वजनिक जीवन व्यतीत किया।  पर मोदी जी के असली आदर्श इंदिरा गांधी है , जो अपनी राजनीती में हैसियत बनाये रखने के लिए किसी भी हद तक आक्रामक रहती थी , जो इसके लिए किसी आदर्श में कैद रहना पसंद नहीं करती थी। साथ ही मजबूत निर्णय लेती थी। पर मजबूत निर्णय लेने के चक्कर में मोदी ने नोटबंदी का अर्थव्यस्था के लिए एक आतमघाती फैसला ले लिया हालांकि उनकी राजनीती के लिए आश्चर्यजनक तरीके से लाभदायी फैसला साबित हुआ। जीएसटी ,सैद्धांतिक रूप से बड़ा कदम, परन्तु इसकी तैयारी और अनुप्रयोग देखकर तो ये लगता है की अर्थव्यस्था काफी पीछे ना चली जाये। परन्तु डोकलाम के मुद्दे पर प्रधानमंत्री पीठ थपथपाए जाने के काबिल लगे, इसलिए और ज्यादा की उन्होंने इस बड़े उपलब्धि पर अपने पीठ नहीं थपथपाई। ऐसे ही सर्जिकल स्ट्राइक पर भी उन्होंने किया था , परन्तु पार्टी वालो ने इस पर घिन्ना दिया था. 

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