Tuesday, April 5, 2016

वह देश की आज़ादी नहीं वह तो देश के बिभाजन का दिवस था
आपको यह बात अटपटी लग सकती क्योकि अभी तक हम इसी अवधारणा के अभ्यस्त रहे है की देश ने आज़ादी हासिल कर एक बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की। नहीं वह देश की आज़ादी नहीं थी। ना बाबा ना। वह तो देश के बिभाजन और इंसानो के विखंडन का दिवस था। वह तो देश की दायीं भुजा और बायीं भुजा काट कर एक नयी इस्लामिक देश की उत्पत्ति की घटना थी। वह देश के इतिहास का अब तक का सबसे क्रूर पल था। वह दौर दुनिया के इतिहास में मानवता की त्रासदी का सबसे बड़ा काल था। विभाजन के बाद तीन संगठित धर्मो के बीच खुनी उन्माद का तांडव नृत्य और प्रलयकारी कलरव का दौर था। भूखे ,प्यासे , विलखते , लुटते , मिटते , कटते , मरते , लहूलुहान होते और जानवरों की तरह इंसानो के कत्लोगारद का वो मंजर था जिसने दस लाख लोगो की नर बलि ले ली. करोडो लोगो के आशियाने की ऐसी तैसी मचा दी तो दूसरी तरफ लोगो के खून पसीने से अर्ज़ी गयी धन दौलत लाशो के दलदल में तब्दील हो गयी । अस्मशानो और कबरगाहो के तो पौ बारह थे पर लाखो जिंदगियां ज़मींदोज़ हो रही थी. आखिर यह सब क्यों हुआ था क्योंकि एक टीबी के मरीज आदमी को एक इस्लामिक देश के निर्माता के रूप में इतिहास में अपना नाम दर्ज़ कराना था। तो दूसरे गुट को सत्ता पाने की बेचैनी इस कदर सताये जा रही थी , जिसके लिए किसी भी तरह का समझौता मंजूर था। क्या यह मंकी जस्टिस प्राप्त करना जरूरी था। अखण्ड और सेक्युलर भारत के नाम पर क्या आज़ादी महीने साल भर के लिए टाली नहीं जा सकती थी। आखिर आज़ादी प्राप्त करने के बाद भी कत्लेआम और पलायन को नहीं सम्भाल पाने की स्थिति में नेहरू और पटेल माउंटबेटन को दुबारा गवर्निंग कमान सँभालने को क्यों कहना पड़ा ?
देश की आज़ादी की लड़ाई का सबसे बडा मसीहा गांधी ने तो 15 अगस्त को आज़ादी का जश्न नहीं मनाया। वह तो कत्लोगारद रोकने के लिए जान की बाज़ी खेलकर कोलकते के हैदरा हाउस में वन मैन आर्मी की भूमिका निभा रहा था।
अभी देश की नयी पीढ़ी को यह बात उनके मन में नहीं कौढेंगी क्योकि उन्होंने तो भारत को विभाजित राष्ट्र के रूप में देखा है। जब हम इंडिया के पुराने नक़्शे को देखते है तो बायीं और दरिया ए सिंध को देख कर दिल को ठंडक पहुंचती थी तो दूसरी तरफ गंगा और ब्रह्मपुत्र के डेल्टा को देख कर मन को तसल्ली मिलती थी। जिंदगी के शहर लाहौर जिसकी रवानियत दिल्ली से बहुत बड़ी थी , वृहत भारत के ही हिस्से थे।
यह तो नेहरूवादी इतिहासकारो की घोर बदमाशी है की उन्होंने देश की आज़ादी को गुड़ी गुड़ी बताकर यहाँ तक की विभाजन को अपरिहार्य बता जाते है। कोई भी सच्चा इतिहासकार भारत की आज़ादी की उपलब्धि से ज्यादा बड़ा देश के बिभाजन की त्रासदी की अनुपलब्धि को दर्शाएगा। क्रमशः ..

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