Friday, July 17, 2015

जन प्रतिनिधियों द्वारा देश में जन सिफारिशे

प्रतिनिधियात्मक लोकतान्त्रिक शासन व्यस्था में जन प्रतिनिधियों द्वारा देश में जन सिफारिशे किये जाने की लम्बे समय से परिपार्टी चल रही है / पर यह केवल एक परिपार्टी है जो संसदीय और शासकीय तौर पर वैध भी बनायीं गयी है , परन्तु इसको लेकर देश में अभी तक कोई मॉडल guideline नहीं बना है / इसके नतीजतन जन प्रतिनिधि इसका सदुपयोग के साथ दुरूपयोग करते है साथ ही सिफारिश प्राप्त जन भी इसका कई बार सदुपयोग और दुरूपयोग दोनों करते है। यानि पहले तो जनप्रतिनिधि अपने खास लोगो और करीबी लोगो के लिए सिफारिशें करते है / कई लोगो को सिफारिश प्राप्ति की अर्हता होने के बावजूद
उन्हें टरका देते है और कई लोग जो बिना अर्हता के है वे जनप्रतिनिधि के नजदीकी या उनके साथ वेस्टेड इंटरेस्ट जुड़े होने की वजह से सिफारिशी प्राप्त कर लेते है। इसके बाद भ्रस्टाचार सहित कई चार उत्पन्न होने शुरू हो जाते है और इसमें यदि कोई बात लीक हो गई या उस मामले को ज्यादा तूल मिल गयी तो फिर वह लम्बे समय तक के लिए मीडिया का मसाला बन जाता है/ परन्तु यह एक ऐसा मसला है जिसमे जन प्रतिनिधि या मंत्री करें तब भी और ना करे तब भी फसने की स्थिति में होते है, जरूरी नहीं हर प्रसंग में। पर लोकतंत्र में एक सिफारिश पत्र ही ऐसा होता है जो जनता अपने प्रतिनिधियों से हमेशा अपेक्षा करती है। यदि कोई पार्टी या उसका प्रतिनिधि इस कार्य से ना नकुर करते है इससे उनकी जनता में बेहद ख़राब इमेज बनती है और इस मौके पर जनता की प्रतिक्रिया यही होत्ती है की अब आएंगे वोट मांगने तब हम उन्हें बताएँगे। दूसरी तरफ जो प्रतिनिधि बेहद उदारता से सिफारिश करते है वे कई बार इसके दुरूपयोग की स्थिति में बदनाम भी हो जाते है। ऐसा भी नहीं की प्रतिनिधि सिफारिश करने में अपने स्वार्थ नहीं देखते। अतः ऐसे में देश में जनप्रतिनिधियों के तरफ से सभी तरह की सिफारिश और कोटा को लेकर एक पारदर्शी और आदर्श दिशा निर्देश बनना बेहद जरूरी है

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