मुझे वामपंथ यानि कम्युनिस्ट्स शब्द से कत्तई घृणा नहीं है/ हां अन्य विचारधाराओ की तरह इस विचारधारा में भी लोचशीलता और विवेकपरस्ती नहीं होने पर दुःख जरूर पहुचता है/ मुझे इस पर काफी दुःख पहुँचता है जब वामपंथ को लोगो द्वारा नकारत्मकतावाद से , लकीर के फ़क़ीर होने से , फ़िज़ूल के धरना प्रदर्शन करने वालों से, उत्पादन कार्य में पूंजी से घृणा करने और केवल श्रम को इसका भगवान मान लेने से, बहुसंख्यक सम्प्रदायवाद का विरोधी और अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता का समर्थन करने वालो से तथा राष्ट्रीय इतिहास और संस्कृति के निरादर करने वाले के रूप में पहचाना जाता है / मै जहा तक जनता हु वामपंथ की असली पहचान श्रम की महत्ता को स्थापित करने, पूंजी के शोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ने , जाती और धर्म का विरोध करने और मेहनतकशों की सत्ता में हिस्सेदारी जैसे मुलभुत आदर्शो के साथ शुरू हुई/ अब सवाल ये है की क्या दलीय राजनीती, चुनावी लोकतंत्र, अंतर्राष्ट्रीय राजनितिक परिस्थितियों और वोट बैंक पॉलिटिक्स का दबाव ऐसा था जिससे की वामपंथ अपने मुलभुत सिद्धांत से भटक गया और देश काल और परिस्थिति के मुताबिक अपने को ढाल नहीं पाया और यहाँ तक की गुड गवर्नेंस के तकाजे को ध्यान में रखते हुए समूचे सिस्टम पर अपने नियंत्रण को प्रभावी तरीके से स्थापित नहीं कर पाया / मुझे आज भी लगता है जब जब शोषण,अत्याचार और बेहाली जैसे शब्द प्रयोग होंगे वामपंथी शैली की राजनीती ही उसकी असली खेवनहार के रूप में सामने आएगी चाहे वह शैली जिस भी पार्टी और विचारधारा के लोग अपनाये /
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