Friday, June 5, 2015

मोदी सरकार के एक साल

मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल पूरा होने पर तमाम फ्रंटों पर इस सरकार के कामकाज की जमकर समीक्षाएं की जा रही हैं। इस सरकार की जहां से तारीफों की अपेक्षा है वहां से तारीफ मिल रही है और जहां से आलोचना की अपेक्षा है वहां से आलोचना भी मिल रही है। पर मोदी सरकार के तमाम प्रदर्शनों पर किसी उचित निस्कर्ष निकालने के पूर्व यह बड़ा जरूरी है कि विभिन्न फं्रटों मसलन विपक्षी दल, मीडिया, कारपोरेट समूह, किसान, मध्य वर्ग, कर्मचारी, युवा और कुल मिलाकर आम आदमी की तरफ से आने वाली सामान्य प्रतिक्रियाओं की समूची वस्तुस्थिति क्या है? सरकार की समीक्षा करने के पूर्व उन समीक्षकों की वस्तुस्थिति से अवगत होना पहले जरूरी है।
हमारे यहा लोकतंत्र का जो किस्म है उसके मुताबिक कोई सरकार हाल के केन्द्रीय, प्रांतीय या स्थानीय चुनावों व उपचुनावों में यदि अपनी पार्टी को चुनाव में जीतवा देती है तो यह माना जाता है कि सरकार विभिन्न मानकों पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है।  कभी कभार हम सरकारों के प्रदर्शन व कामकाज पर व्यापक सर्वेक्षण कार्य भी करवाते हंै और उसके निस्कर्षों के आधार पर सरकार के प्रदर्शन पर हम अंतिम प्रतिक्रिया करते हेंै। कुल मिलाकर हमारे लोकतंत्र में सरकारों के प्रदर्शन को मापने का यही स्थापित टें्रड व टे्रडिशन रहा है। कभी कभार हम यह भी देखते हैं कि किसी भी नयी सरकार के अपने शुरूआती दिनों और कार्यअवधि में सरकार की मूल संरचना में किये गए बुनियादी परिवर्तन व उनकी कार्य शैली कैसी है वह बेहद महत्वपूर्ण होता है जो सरकार की पूरी काल अवधि में उनके शासन व प्रशासन का स्वरूप तय करती हैं। 
जब हम किसी सरकार के कामकाज पर की जाने वाली समीक्षाओं पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि विभिन्न समूह अपने निजी परिदृश्यों को ध्यान में रखकर ही सरकार की ज्यादातर समीक्षा करते हंै। ऐसे व्यक्ति और संस्थाएं बहुत कम होते हैं जो किसी सरकार के प्रदर्शन क ा निरीक्षण उसके कार्यों के व्यापक जनमानस,  विस्तृत परिदृश्य  और बहुविध मानकों पर पडऩे वाले प्रभावों के मद्देनजर करते हों। इसके विपरीत ऐसे लोग काफी तादात में है जो सरकार की समीक्षा अपने निजी हितों व स्वार्थों की पूर्ति को ध्यान में रखकर करते हों। यानी सरकार का कोई फ ैसला या निर्णय या सिफारिश यदि किसी व्यक्ति या उनके समूह को लाभ पहंचाने वाला है तो उसकी तारीफ करना तथा यदि उनके खिलाफ गया तो उसकी आलोचना करना यही हमारी समीक्षा का शगल बन गया है। और यही हमारे लोकतंत्र का मानदंड है कि परस्पर सभी व्यक्तिगत हित समूहों को अपने बड़े पैमाने पर कैसे संतुष्ट करते हेेंै?
बात पहले कुछ लोकतंात्रिक संस्थाओं से करें जिनकी सरकारों की कालअवधि और कार्यअवधि में भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिन्हें नाराज कर सरकार अपने प्रदर्शन और कामकाज के रोडमैप पर आसानी से अपना सफर पूरा नहीं कर सकती। मसलन पहले विपक्षी दलों की बात करें। विपक्षी दल किसी भी सरकार के सकारात् मक बिंदूओं पर नहीं बल्कि खोज खोजकर उनके नकारात्मक बिंदूओं पर प्रकाश डालते हेैं। पिछले कुछ दिनों से मोदी सरकार के तमाम कामकाजों पर सिलसिलेवार टिप्पणी के बजाए कुछ संवैधानिक संस्थाओं मसलन केन्द्रीय सूचना आयोग व केन्द्रीय सर्तकता आयोग में चेयरमैन की नियुक्ति नहीं किये जाने की ओर विपक्षी दलों ने लगातार इशारा किया। दूसरी तरफ उन्होंने मेक इन इंडिया कार्यक्रम के सक्रियभूत और फलीभूत नहीं होने की तरफ विपक्ष ने इशारा किया है।
लोकतांत्रिक संस्थाओं में चौथे खंभा कहलाने वाली मीडिया एक ऐसी संस्था है जो परिभाषित रूप से अकेली ऐसी संस्था है जिसका कार्य सरकार की वस्तुस्थिति से लोगों को बिल्कुल निरपेक्ष, निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से अवगत कराना है। परंतु दूर्भागय ये है कि संविधान में परिभाषित हैसियत नहीं होने की वजह से मीडिया भी पहले यह तय करता है कि फलां सरकार को समर्थन देना है या विरोध करना है। यदि समर्थन करना है तो सरकार के तमाम नकरात्मक पहलुओं और विफलताओं को नजरअंदाज कर केवल वह सकारात् मक बिंदूओं को दर्शाता है यदि उसने यह तय कर लिया है कि उसे हर हाल में सरकार की आलोचना करनी है तो वह सरकार के नकारात्मक बिंदुओं पर प्रकाश डालता है। ऐसे मीडिया कम हैं जो हर सही को सही और गलत को गलत कहते हों। दिक्कत ये है कि भारतीय लोकतंत्र में हमने विभिन्न संस्थाओं के प्रदर्शनों के लिये कोई बेहतर व स्टैंडर्ड कसौटी ही तय नहीं की।
हमारे यहा लोकतंत्र का जो किस्म है उसके मुताबिक कोई सरकार हाल के केन्द्रीय, प्रांतीय या स्थानीय चुनावों व उपचुनावों में यदि अपनी पार्टी को चुनाव में जीतवा देती है तो यह माना जाता है कि सरकार विभिन्न मानकों पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है।  कभी कभार हम सरकारों के प्रदर्शन व कामकाज पर व्यापक सर्वेक्षण कार्य भी करवाते हंै और उसके निस्कर्षों के आधार पर सरकार के प्रदर्शन पर हम अंतिम प्रतिक्रिया करते हेंै। कुल मिलाकर हमारे लोकतंत्र में सरकारों के प्रदर्शन को मापने का यही स्थापित टें्रड व टे्रडिशन रहा है। कभी कभार हम यह भी देखते हैं कि किसी भी नयी सरकार के अपने शुरूआती दिनों और कार्यअवधि में सरकार की मूल संरचना में किये गए बुनियादी परिवर्तन व उनकी कार्य शैली कैसी है वह बेहद महत्वपूर्ण होता है जो सरकार की पूरी काल अवधि में उनके शासन व प्रशासन का स्वरूप तय करती हैं। हम सब जानते हैं कि मौजूदा मोदी सरकार यूपीए के दस साल के शासन में उपजे जनरोष व एंटी इन्कंबेन्सी क ी बदौलत सरकार पर काबिज हुई। वह जनरोष जो मुख्य तौर पर महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे से उभरा व पैदा हुआ।
इस परिप्रेक्ष्य में मोदी सरकार के प्रदर्शनों की सबसे बड़ी कसौटी इन्हीं दो प्रमुख मुद्दों भ्रष्टाचार व महंगाई के व्यापक व इनके निरंतर रोकथाम को लेकर किये गए प्रदर्शनों के आधार पर बनायी जा सकती है। इन दोनों मुद्दों पर मोदी सरकार के प्रदर्शन और इनके द्वारा किये गए उपायों पर नजर डालें तो सरकार का प्रदर्शन असाधारण कत्तई नहीं है, बल्कि इनको लेकर यह एक रूटीन सरकार हीं मानी जा सकती है जिसने क ोई बुरा प्रदर्शन नहीं किया। इस सरकार के इन दो मुद्दों पर किये गए कार्य को तब असाधारण माना जाता जब वे इन समस्याओं के मार्ग की सभी रूकावटों, अवरोधों और संरचनाओं पर चौतरफा प्रहार करती। इस सरकार ने अपने प्रदर्शन का मूल खाका अपने आर्थिक फैसलों व योजनाअ ों को बनाया है जो आम तौर पर सभी सभी सरकारों की प्राथमिकताओं में होते हैं। परंतु यूपीए और एनडीए क ी सरकारों के आर्थिक कार्यक्रमों में एक मूलभूत अंतर ये दिखता है कि यूपीए लोकलुभावन और खजाना लूटावन तरीके से काम कर रही थी जबकि मोदी सरकार ने बिना खजाना खाले आर्थिक सशक्तिकरण और सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं पर ज्यादा अमल कर रही है।
मोटे तौर पर पिछले एक साल के प्रदर्शनों, योजनाओं, कार्यक्रमों और तमाम पहलों पर नजर डाली जाए तो मोदी के प्रदर्शनों के ये प्रमुख अंश नजर आते हैं।
>> मोदी सरकार ने देश में मूलभूत सुधारों के एजेंडे मसलन सभी सरकारी कार्यालयों में नयी कार्य संस्कृति लाने हेतू नयी कार्मिक नीति, किसानों के लिये लाभकारी मूल्य नीति, मूल्य नियंत्रण व इसमें स्थिरता लाने हेतू दीर्घकालीन नीति, ग्रामीण आधारभूत संरचना की नीति तथा भ्रष्टाचार पर चौतरफा प्रहार की नीति को लेकर कोई महती प्रयास नहीं किया। इन सभी मानक बिंदओं पर मोदी सरकार का सिर्फ रूटीन प्रदर्शन।
>> जनधन योजना के साथ अभी अभी शुरू की गयी तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं मसलन प्रधानमंत्री जीवन बीमा योजना, विकलांगता सुरक्षा योजना तथा अटल पेंशन योजना इस मौजूदा मोदी सरकार के गरीबों के आर्थिक सशक्तिकरण तथा सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से सबसे बड़ी पहल रही है। महत्वपूर्ण ये है कि इन योजनाओं के मार्फत किसी भी तरह की सब्सिडी देने का प्रावधान नहीं है बल्कि देश के बैंकिंग व वित्तीय कंपनियों के नेटवर्क के जरिये इन्हें क्रियान्वित करने की योजना है। अनुमान है कि देश के निम्र मध्य वर्ग तथा ग्रामीण आबादी के करीब 2० करोड़ परिवारों को यदि इससे जोड़ दिया गया तो यह बहुत बड़ा कार्य माना जाएगा।
>> स्वच्छ भारत अभियान पिछले एक साल में मोदी सरकार के चर्चित कार्यक्रमों में से एक है जो बड़े महानगरों में आम जनता से कराये गए सर्वेक्षण में मोदी सरकार का सबसे लोकप्रिय व सफल कार्यक्रम माना गया। इस कार्यक्रम और इसके क्रियात्मकता पर नजर डाले तो यह कार्यक्र म सिर्फ भाषणों और कुछ नेताओं का झाड़ू के साथ फोटू खिंचावन अभियान ही ज्यादा रहा है। यह अभियान बेहद बड़ा व जटिल है जिसके लिये समूचे देश में सफाई, कूड़ा प्रबंधन,शहरीकरण और कालोनी नियमतीकरण के साथ साथ देश के शहरों में करीब 1 करोड़ तथा गांवों में करीब 1० करोड़  शौचालय तथा यूरीनल की विशाल संख्या में स्थापित करने से जुड़ा है। गौरतलब है कि देश में सफाई अभियान के महाउद्घोष के बावजूद देश के करीब 5 हजार नगरपालिका शहरों में कभी रोज झाड़ू नहीं लगता। केवल दिल्ली व कुछ महानगरों व राज्य की राजधानी को चमका देने से नहीं होगा जो पहले से थोड़ा बहुत चमक रहे थे।
>> मेक इन इंडिया कार्यक्रम राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिस फेनफेयर के साथ शुरू किया गया उस हिसाब से यह कार्यक्रम पूरे तौर पर पटरी पर आ नहीं पाया है। एक अच्छी नीयत के साथ शुरू की गयी इस योजना का मकसद भारत को मैन्युफैक्चरिंग और विनिर्माण के क्षेत्र में दुनिया का एक बड़ा केन्द्र बनाना था। परंतु सरकार को इस योजना के तहत निरंतर व सतत सुधारों व प्रयासों की दरकार है जिसमे नौकरशाही की सहमति प्रक्रिया को ज्यादा त्वरित, सरल, पारदर्शी तथा सहयोगमूलक बनाने की दिशा में काम करने की जरूरत है जिसमे कही न कही नयी कार्मिक नीति की भी बहुत अहम भूमिका है।
>> विदेशी मोर्चे के मुद्दे पर मोदी सरकार अपने शपथ ग्रहण के वक्त से ही बड़ी विशिष्ट भूमिका में नजर आयी । बहुत जल्द मोदी ने पूरे विश्व पटल पर अपनी और भारत की छाप छोड़ी। साथ ही यह पहली बार हुआ जब मोदी सरकार ने अपनी विदेश नीति और प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा की अपने आर्थिक एजेंडों के साथ उसकी डिजायनिंग की। साथ ही अभी हाल में चीन की यात्रा में सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिये चीन को बहुत हद तक प्रेरित करने में सफल दिखे। आम तौर पर पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों में मोदी सरकार ने कुछ नये आयाम प्रदर्शित किये हैं जिसमे अफगानिस्तान क ी नयी गनी सरकार को अपवाद माना जा सकता है जो अपने पूर्ववर्ती करजई सरकार की तुलना में भारत के प्रति थोड़ा कम उन्मुुख दिखायी देती है।
>> इस सरकार द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण विधेयक तथा रियल इस्टेट नियमन प्राधिकरण विधेयक से यह आभासित हुआ कि यह सरकार कारपोरेट के प्रति ज्यादा सहृदय दिखती है। भूमि अधिग्रहण विधेयक पर जिस तरह से मोदी सरकार ने इसे अध्यादेश के जरिये लागू करवाने की तत्परता तथा किसानों की सहमति को तवज्जों नहीं देने की अपनी भंगिमा दिखायी उससे यह बात आभासित हुआ कि या तो वह खेती व किसानी को उत् पादकता व रोजगार सृजन की दृष्टि से ज्यादा अहम नहीं मानती और अपनी प्राथमिकताओं में नहीं रखना चाहती या वह किसानों की तुलना में इस जमीन का कारपोरेट इस्तेमाल ज्यादा महत्वपूर्ण मानती है।
>> विधायिका के संचालन के मुद्दे पर मोदी सरकार मिला जुलाकर ठीक रही हालांकि इस मोर्चे पर मोदी सरकार ने किसी बड़े सुधारात्मक पहल नहीं दर्शाया जिसके तहत साल में कम से कम 1०० दिनों के लिये संसद के दोनों सदनों की बैठक सुनिश्चित की जाए।
>> मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में एक अनूठी पहल प्रदर्शित की वह है केन्द्र राज्य पार्टनरशिप को लेकर। मोदी ने यह दिखलाया कि विगत में एक राज्य के मुख्यमंत्री के नाते उन्हें इस बात का पता है कि एक राज्य को केन्द्र के साथ क्या अपेक्षा है इसलिये उन्होंने केन्द्र और राज्य सरकारों को संयुक्त रूप से मिलाकर टीम इंडिया की अपनी परिकल्पना प्रदर्शित की। हांलाकि वित्त आयोग ने अबतक की सर्वाधिक राशि हिस्सेदारी राज्यों को हस्तानांतरित करने की अनुशंसा की परंतु कई राज्यों ने उल्टे इससे नुकसान की बात बतायी। यह अगले पांच सालों में पता चलेगा कि देश में आर्थिक संघवाद की कौन सी नयी इबारत मोदी लिखने की तैयारी करने में लगे हैं।
>> पिछले एक साल में मोदी सरकार ने कुछ अपने प्रयासों से बल्कि ज्यादा संयोग और परिस्थितियों के अनुकूल होने से देश की अर्थव्यवस्था पर लगे कुछ ग्रहणों पर काबू पाने में सफलता पायी। इसमे क च्चे तेल के अंतरराट्रीय मूल्यों में गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था को एक साथ कई फायदा मिला। इससे एक तो मुद्रा स्फीति घटने में मदद मिली। दूसरा इससे देश के वित्तीय घाटे को भी कम करने में मदद मिली। नतीजतन अभी वित्तीय घाटा 4 फीसदी तथा खुदरा मुद्रा स्फीति 5 फीसदी के आसपास आ गयी है।
>> कोल ब्लाक की नये सिरे से नीलामी के जरिये भारत सरकार को प्राप्त 1-2 लाख करोड़ रुपये के जरिये मोदी सरकार ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि वह पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की तुलना में सरकारी राजस्व के प्रति ज्यादा सचेत है। कोल बलाक आबंटन घोटाले पर जिस तरह से सीएजी और न्यायालय ने परिस्थितियां उत्पन्न की और भ्रष्टाचार के मुद़दे पर नयी सरकार का गठन हआ उसके तहत यह प्रक्रिया होनी तय थी। पर इस मामले में मोदी सरकार को तत्काल श्रेय लेने से रोका भी नहंी जा सकता। पर इसका यह मतलब भी नहीं कि मोदी सरकार ने सार्वजनिक जीवन से भ्रष्टाचार पर काबू पाने की पूरी चाक चौबंद योजना बना ली है।
>> मोदी सरकार द्वारा खाद्य व उर्वरक पर दी जाने वाली सब्सिडी को सीधे किसानों के खाते में जमा करने की घोषणा बेहद स्वागत योगय है पर देखना ये होगा कि कबतक ये सरकार इस पूरी प्रक्रिया की रूपरेखा निर्धारित करती है। अन्यथा एलपीजी पर सब्सिडी बैंक में जमा करने की यूपीए की योजना को तेजी से लागू करने का मोदी सरकार का दावा हास्यास्पद है। यह नीति सही नहीं है। बेहतर ये होगा कि एलपीजी की केवल एक मूल्य नीति चलनी चाहिए। लोगों की बैंक में सब्सिडी जमा नहीं होने की शिकायतें खूब आ रही हैं।
>> मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में प्राकृतिक आपदा के मसले पर बेहतर तत्परता का परिचय दिया है। परंतु समूची प्राकृतिक आपदा को लेकर एक नयी समन्वित नीति की अभी भी दरकार है।
मोदी सरकार के पहले साल के विफलता के मुख्य बिंदू
>> सरकार की विभिन्न योजनाएं जिन बैंकिंग व वित्तीय संस्थाओं द्वारा चलायी जा रही हैं, उन के तिमाही आंकड़ें बेहद निराशाजनक, ज्यादातर बैंकों के मुनाफें में गिरावट या नुकसान की ओर। इस दौरान बैंकों के एनपीए यानी बिना अदायगी वाले कर्ज की मात्रा में भारी बढ़ोत्तरी।
>> मोदी सरकार के कार्यकाल में भी विगत की भांति किसानों की आत्महत्याएं जारी। सरकार द्वारा किसानों में व्याप्त निराशावाद को हटाने में कोई सफलता नहीं।
>> निचले स्तर और सामान्य स्तर के भ्रष्टाचार की वही स्थिति। पुलिस और सामान्य प्रशासन में भ्रष्टाचार बदस्तुर जारी।
>> रेलवे और डाकघरों जैसे बेहद अहम सार्वजनिक उपक्रमों की कार्यप्रणाली में कोई खास परिवर्तन नहीं। वहां अभी भी अव्यवस्था, अक्षमता और अकुशलता अभी भी जारी।
>> अप्रत्यक्ष कर सुधारों के एक बड़े प्रतीक जीएसटी के क्रियान्वन में अभी भी बाधा मौजूद। लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में गतिरोध। फिलहाल सेलेक्ट कमिटि के जिम्मे सुपूर्द।
>> देश में मेक इन इंडिया कार्यक्रम के जरिये हार्डवेयर और रक्षा उपकरण उद्योगों को व्यापक प्रोत्साहित करने के मामले में प्रगति नगण्य। हार्डवेयर आयात पर अत्यधिक निर्भरता की वजह से चीन के साथ व्यापार घाटा रिकार्ड उंचाई पर। 55 अरब डालर के आयात के मुकाबले हमारा निर्यात महज 15 अरब डालर।
>> भ्रष्टाचार और कालेधन के मामले में सरकार ने थोड़ी पहल दिखायी और इसमे अधिकतम सजा 7 साल कर इसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया। पर ये नाकाफी है। पर काले धन के मामले में ये जरूर अबतक की सबसे बड़ी पहल। पर पार्टी के आलोचकों के मुताबिक इससे काले धन के आगमन पर बहुत ज्यादा असर नहीं।
>> नये न्यायाधीश नियुक्ति कानून से न्यायपालिका में रोष। पर इस मसले पर सरकार को सभी पार्टियों का समर्थन मिला।
>> कई मौके पर इस सरकार में मीडिया की बेइज्जती की। हालंाकि यह सरकार की नीति रही है कि मीडिया की उपेक्षा कर कवरेज को प्रोत्साहित किया जाए खासकर विदेशी दौरों पर।
कुल मिलाकर मोदी सरकार का पहला साल एक बेहतर रूटीन सरकार जरूर कहा जाएगा जिसमे कुछ मामले में नवप्रवर्तन मूलक भी पहल की गयी। पर इस सरकार ने ऐसा संके त नहीं दिया कि देश की प्रशासनिक व राजनीतिक व्यवस्था के मूल ढ़ांचे में क ोई बड़ा परिवर्तन लाना चाहती है जिसमें देश की नौकरशाही एक बड़ा तत्व है।

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