यकीं मानिये कोई भी राजनितिक दल देश में एक आदर्श और समुचित प्रतिनिधि लोकतंत्र नहीं स्थापित करना चाहते, उनकी मंशा अपने दल को एक मनमाफिक मठ और अपने को एक मठाधीश के रूप में स्थापित करना है/ यही वजह है कि उनके लिए चुनावी उम्मीदवार उस छेत्र लिए कोई कोई एक क्वालिटी प्रतिनिधि नेता नहीं बल्कि उनके अंकगणित का स्टॉक माल हो, जो उनके लिए विधानमंडलों में सिर्फ हाथ उठाकर उनकी हां में हां करने वाला हो / बीजेपी कि बात करे तो वह मान कर चले है कि केवल मोदी कि लहर से सब काम करना है / व्यक्तिवादी अधिनायकवादी एकेंद्रवादी दलियवादी व्यस्था वास्तविक लोकतंत्र और दक्ष शासन की राह में एक बहुत बड़ा कैंसर है / आने वाले दिनों में भी पीएम और सीएम के अलावा लोकतान्त्रिक शासन व्यस्था का केवल दो फेस रहेगा जो देश कि सभी जनता से रुबरु हो , यह सम्भव ही नहीं / ब्यूरोक्रेसी का बोलबाला अभी बदस्तूर जारी रहेगा
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