Tuesday, March 27, 2012

लक्ष्यहीन बजट, मिशन अर्थव्यवस्था फेल

मनोहर मनोज, संपादक , इकोनॉमी इंडिया
रेल बजट, आर्थिक सर्वेक्षण और आम बजट, ये वास्तव में जैसे भी हों, लोकप्रिय हो या कठोर, कार्यदक्षता और संसाधनों का अधिकतम उपयोग दर्शाने वाले हों या फिजुलखर्ची व संसाधनों के बंदरबांट बढ़ाने वाले हो, बजट घाटा बढ़ाने वाले हों या कम करने वाले हों, सत्ता पक्ष हमेशा उसकी वाहवाही करता है तो दूसरी तरफ विपक्ष उसके यदि अच्छे पहलू भी हैं तो उसकी अनदेखी कर उसे अर्थव्यवस्था के लिये अहितकारी की संज्ञा दे देता है। तीसरी तरफ हमारे आर्थिक विशलेषक समूचे बजट को जिसमें देश क ी समूची अर्थव्यवस्था का एक वर्ष का विजन और दीर्घकालीन दिशा निर्देश समाहित होता है उसक ो आम आदमी आम आदमी क े आधार पर फिल्म समीक्षक की भांति विशलेषण कर आम आदमी को ही बजट की बारीकियों को समझने से दूर कर देते हैं।
हम रेल बजट हो आम बजट उसे मौजूदा अर्थव्यवस्था की परिस्थितियों और पृष्ठभूमि से जोड़ते हुए बजट की बेहतरी की कसौटी क्या हो सकती है, उसका पहले निर्धारण कर इस पूरे बजट का विशलेषण करने का प्रयास करें। चूंकि बजट के जरिये सरकारें अपनी कर व गैर कर स्रोतों से प्राप्त मौजूदा और आगामी वित्त वर्ष की प्रस्तावित आमदनी का ब्योरा देती हैं तो दूसरी तरफ वह बजट में अपने तमाम मद में किये जाने वाले खर्चे का मौजूदा और आगामी साल का प्रस्तावित ब्योरा प्रस्तुत करती है तो ऐसे में जाहिर तौर पर इससे जुड़े तमाम प्रावधान, मसौदे, विधेयक, प्रपत्र का ब्योरा भी संसद में पेश बजट में उल्लिखित किया जाता है।
इस आलोक में अभी हमारी समूची अर्थव्यवस्था पिछले कुछ सालों से उंची मुद्रा स्फीति दर, कृषि उत्पादों के मांग-आपूर्ति असंतुलन, कम विकास दर, औद्योगिक विकास दर में गिरावट, कृषि विकास की उदासीन स्थिति तथा सेवा क्षेत्र पर विकास की ज्यादा निर्भरता से दो-चार रही है। ऐसे में हम यह देखने का प्रयास करते हैं कि मौजूदा बजट इन समस्याओं को कैसे सुलझाने का प्रयास कर रहा है।
पहले हम बात करें मुद्रा स्फीति की उंची दर को लेकर। देखा जाए तो इस समस्या की शुरूआत वर्ष 2००8-०9 से हुई। जब यूपीए सरकार ने वर्ष 2००9 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिये 7० हजार करोड़ रुपये की कर्जमाफी, करीब एक लाख करोड़ रुपये की लागत पर छठे वेतन आयोग की अनुशंसा लागू करने तथा करीब 4० हजार करोड़ रुपये की लागत वाली ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम नरेगा जैसे उन योजनाओं को जामा पहनाया जिससे सरकार को बदले में कोई आमदनी नहीं प्राप्त होनी थी जिसका नतीजा ये हुआ देश का रोजकोषीय घाटा 2००8-9 में 2.5 प्रतिशत से बढक़र 6 प्रतिशत तथा राजस्व घाटा 1.1 प्रतिशत से बढक़र 4.5 प्रतिशत हो गया। यही से देश में उंची मुद्रा स्फीति और महंगाई के दौर की शुरूआत होती है। यह स्थिति 2००9-1० में बढक़र क्रमश: 6.5 और 4.5 प्रतिशत हो गयी।
कुछ लोग कह सकते हैं कि छठे वेतन की अनुशंसाऐं लागू करने के लिये सरकार बाध्य थी। परंतु सरकार वेतन बढ़ोत्तरी की मात्रा को जरूर कम कर सकती थी। दूसरी तरफ सरकार काम के घंटे को बढ़ाने और छुट्टियों की संख्या में कमी कर कर्मचारियों की उत्पादकता वृद्धि के जरिये वेतन वृद्धि के असर को कम कर सकती थी। तीसरा, नरेगा को लेकर लोगों का मानना है कि यह देश में ग्रामीण क्षेत्र के सामाजिक आर्थिक उन्नयन की दिशा में उचित कदम था परंतु हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि नरेगा के जरिये गांवों में उत्पादक परिसंपत्त्यिों के निर्माण को महत्व नहीं दिया गया और किसी भी तरह रोजगार की संख्या का लक्ष्य हासिल करने की होड़ में इस क्षेत्र में किया गया यह निवेश अर्थव्यवस्था के लिये बेहद स्फीतिकारी साबित हुआ।
इस बार के बजट की चर्चा करें तो हम पाएंगे कि मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिये किसी तरह के मौलिक सुधारों पर जोर नहीं हैं। अनुत्पादक खर्चे में कटौती के बजाए राजस्व वसूली के लिये सेवा करों को ज्यादा से ज्यादा दूहने की पुन: कोशिश की गयी है। सरकार यह मानती है कि वह देश में उत्पादित वस्तुओं के साथ सेवाओं पर भी कर लगाने की हकदारी है। चूकि सेवा क्षेत्र इस देश के सकल घरेलू उत्पाद में 58 प्रतिशत से ज्यादा का योगदान करता है तो इस हिसाब से इससे सरकार को राजस्व भी प्राप्त होना चाहिए। सवाल ये है कि जब देश में सेवा क्षेत्र से पचास प्रतिशत हिस्सेदारी प्राप्त हो रही थी तब सेवाकर के जरिये केन्द्र सरकार को प्राप्त आमदनी 1० हजार करोड़ रुपये भी नहीं थी और अब सेवा क्षेत्र का योगदान थोड़ा क्या बढ़ा तो केन्द्र ने न केवल सेवा कर के दायरे में भारी बढ़ोत्तरी कर दी बल्कि इसकी दरें 5 प्रतिशत से बढ़ाकर अब ढ़ाई गुनी यानी 12 प्रतिशत तक पहुंचाई जा चुकी है। और इससे सरकार को प्राप्त आमदनी 9० हजार करोड़ के आसपास पहुंच गई। आगामी वित्तीय वर्ष में वित्त मंत्री ने इस मद में 12० हजार करोड़ रुपये की उगाही का लक्ष्य रखा है।
देखा जाए तो इस बार के बजट में वित्त मंत्री ने राजकोषीय घाटा कम करने का प्रयास जरूर किया पर वह अपने अनुत्पादक खर्चे में कटौती के बजाए लोगों पर करोंं का बोझ ज्यादा डालकर अपना घाटा कम करने का प्रयास कर रहे हैं। इस क्रम में नये बजट में सेवा कर की दर बढ़ाकर 12 प्रतिशत, अनेक उत्पादों पर उत्पाद शुल्क की दरों में करीब 2 प्रतिशत तथा आय कर की सीमा में संसदीय कमेटी और डीटीसी की अनुशंसा के विपरीत इसमे मामूली बढ़ोत्तरी किये गए हैं। इन उपायों के जरिये वित्त मंत्री ने चालू वित्तीय साल 2०11-12 में राजस्व घाटा 4.4 प्रतिशत और राजकोषीय घाटा 5.9 प्रतिशत से घटाकर आगामी वित्त वर्ष 2०12-13 के लिये क्रमश: 3.4 प्रतिशत और 5.1 प्रतिशत का लक्ष्य रखा है। करों की मात्रा बढ़ाकर आय बढ़ाने से बेहतर उपाय है अनुत्पादक खर्चे में कमी जो अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी प्रभावों को कम करती है। पर यह स्थिति नये बजट में नहीं दिख रही है।
कुल मिलाकर नये बजट से अर्थव्यवस्था की बुनियादी समस्या मुद्रा स्फीति की समस्या पर प्रभावी निजात पाने की संभावना कम ही लगती है। ऐसे में जब आगामी लोकसभा चुनाव नजदीक है और यूपीए 2 सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून के जरिये अपना चुनावी हथकंडा भी तय कर लिया है जिस पर सरकार को करीब हर साल 92००० करोड़ रुपये स्वाहा करने होंगे। इस बार के बजट में वित्त मंत्री ने सब्सिडी पर खर्च की जाने वाली राशि जो देश की जीडीपी का 2.2 प्रतिशत है उसे घटाकर वर्ष 2०12-13 के लिये 1.9 प्रतिशत का लक्ष्य रखा है पर दूसरी तरफ वह नये खाद्य सुरक्षा प्रावधानों का भी जिक्र नहीं भूले हैं। जाहिर है कि मौजूदा सब्सिडी की राशि जो वित्त मंत्री 2.2 लाख करोड़ से घटाकर 1.9 लाख करोड़ पर ला रहे हैं वह आने वाले समय में नये खाद्य सुरक्षा कानून के जरिये वास्तव में और ज्यादा बढ़ेगी। तब तो देश में वित्तीय घाटे, मुद्रा स्फीति और महंगाई की तस्वीर और भी भयानक होगी। इस दिशा में यह बजट किसी भी तरह से किसी तरह का सुधारात्मक असर नहीं दिखा पा रहा है।
मुद्रा स्फीति के इस माहौल में रिजर्व बैंक की सख्त मुद्रा नीतियां देश में उंची ब्याज दर और निवेश को संकुचित करने का काम करेंगी। इसका नतीजा हम निम्र औद्योगिक विकास दर के रूप में भलीभांति देख रहे हैं। गौरतलब है कि देश में इस मुद्रा स्फीति का सबसे ज्यादा असर खाद्य मुद्रा स्फीति के रूप में ही दिख रहा है। इसकी वजह ये है कि देश में खेती के सभी उत्पादों की दोषपूर्ण मूल्य नीति। खेती को लाभकारी पेशा के बजाए निर्वाह पेशा के रूप में रखना, खेती के उत्पादों के न्यूनतम और अधिकतम मूल्य नीति का अभाव, फसल उपरांत प्रबंधन मसलन कृषि भंडारण सुविधाओं की कमी की वजह से कृषि जिन्सों की आपूर्ति मांग की तुलना में सुचारू नहीं हो पाना है। हालांकि, पिछले सालों में सरकार कृषि भंडारण के प्रति काफी गंभीर हुई है। परंतु कृषि उत्पादों की न्यूनतम और अधिकतम मूल्य नीति की अनुपस्थिति किसी भी तरह से कृषि उत्पादो की सप्लाई को बेहतर नहीं करने वाली हैं।
नये बजट में इस बात की संभावना थी कि कृषि की आधारभूत संरचना पर निवेश बढ़ाया जाएगा पर यह बढ़ोत्तरी रूटीन तर्ज पर की गई है। विडंबना ये है कि सरकारें जनसमर्थन हासिल करने के लिये कर्ज माफी, मुफ्त बिजली और सस्ती अनाज जैसी योजनाओं पर निर्भर करती हैं। उत्पादन की लागत के आधार पर किसानों को अनाज का दाम नहीं दिया जाता और भारी सब्सिडी देकर राशन के जरिये अनाज मुहैय्या कर एक तो सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था पर बोझ डाला जाता है तो दूसरी तरफ राशनिंग के जरिये मुक्त बाजार और उपभोक्ता के च्वाएस का हनन होता है। बल्कि सरकार के लिये कामगारों के वेतन और मजदूरी में पर्याप्त बेहतरी का विकल्प ज्यादा बेहतर है जिसको लेकर बजट मंद कोई नीतिगत उल्लेख नहीं है। नरेगा योजना को कानून का दर्जा दिया गया। पर इस योजना के जरिये गांवों में किसी तरह के उत्पादक परिसंपत्ति चाहे वह ग्रामीण उद्योग या ग्रामीण आधारभूत सुविधाओं की स्थापना हो इस पर किसी तरह की कार्ययोजना नहीं है और सारा ध्यान रोजगार संख्या का जैसे तैसे लक्ष्य प्राप्ति पर जोर है। इस वजह से इस योजना में पैसे की बर्बादी है, भ्रष्टाचार है और ना ही मजदूरों को पर्याप्त मजदूरी मिल रही है। नतीजतन यह योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बेहतरी लाने वाली ना होकर अर्थव्यवस्था के लिये स्फीतिकारी साबित हो रही है।
नये बजट में जिस बात पर पिछले बजटों की तुलना में ज्यादा जोर दिख रहा है वह है भ्रष्टाचार और कालेधन की चर्चा। जाहिर है कि भ्रष्टाचार पर लोकपाल की स्थापना और काले धन की वापसी को लेकर पिछले कुछ साल से देश में राजनीतिक और गैरराजनीतिक स्तर पर हो रहे आंदोलनों ने सरकार का ध्यान आकृष्ट किया है। वित्त मंत्री ने काले धन पर संसद के मौजूदा सत्र में ही श्वेत पत्र जारी करने की बात कही है। विदेशों में जमा काले धन क ी जानकारी और उसके भारत में पुनर्निवेश करने को लेकर वित्त मंत्री ने 82 दोहरे कराधान समझौते तथा 17 कर सूचना आदान प्रदान की बात कही है। भ्रष्टाचार के बाबत वित्त मंत्री की सबसे महत्वपूर्ण घोषणा सरकार विभाागों में सामानों की खरीद व वसूली की प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिये बजट सत्र में नया कानून लाने का प्रस्ताव है। इसके अलावा 2०11 में संशोधन के लिये लाए गए एंटी मनी लांड्रिग विधेयक , बेनामी लेनदेन निरोधक कानून और नशीली दवा निरोधक कानूनों को पारित करने की वित्त मंत्री की घोषणा भ्रष्टाचार के प्रति सरकार की सुगबुगाहट को दर्शाती है।
जब हम बजट के जरिये आम आदमी की माली हालत पर पडऩे वाले प्रभावों की चर्चा करते है तो ऐसे में आम बजट की कसौटी इस बात पर निर्भर करेगी कि आम लोगों को मिलने वाला रोजगार उनको पर्याप्त आमदनी देने के साथ साथ उनके लिये एक कैरियर भी हो जो उनकी उत्पादकता के साथ उनकी क्रय शक्ति में बढ़ोत्तरी करे। यदि सरकार उन्हे सीधे राहत प्रदान करना चाहती है तो वह राहत उनके लिये सामाजिक विकास व सुरक्षा की योजनाओं जिसमे स्वास्थ्य, शिक्षा, विकलांग , विधवा व वृद्धावस्था पेंशन जेसी चीजें शामिल हैं उस पर और ज्यादा खर्र्चे के जरिये दिखना चाहिए। सब्सिडी जनित योजनाएं जो चुनावों मेें वोट दिलाने के लिये लागू की जाती हैं वे भ्रष्टाचार के साथ अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के साथ साथ आम आदमी को वास्तव में फायदा नहीं पहुंचाती हैं। दरअसल इस देश में किसान सब्सिडी के सबसे बड़े हकदार हैं। उन्हें उर्वरक पर जो सब्सिडी दी जाती है वह अभी भी सीधे नहीं मिलती है। दूसरा जो खाद्य सब्सिडी दी जाती है वह किसान विरोधी है और यही किसानों को बाजार से बेहतर मूल्य नहीं दिला पाता।
हमारा तो मानना है कि किसानों को उनके हर उत्पादों का लागत युक्त मूल्य दिया जाए और उनकी इनपुट सब्सिडी खत्म कर इनके सभी उत्पादों के मूल्य निर्धारण के लिये मूल्य नियमन प्राधिकरण स्थापित किया जाए। कृषि की आधारभूत सुविधाओं मसलन सिचाई वगैरह में सरकारी निवेश के साथ निजी निवेश आमंत्रित किया जाए। देश में सभी तरह के मजूदरों के मजदूरी को मूल्य सूचकांक से जोड़ा जाए। गांवों में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम की परिकल्पना पूरा यानी ग्रामीण क्षेत्र में शहरी सुविधाओं की स्थापना को बढ़ावा दिया जाए। ग्रामीण क्षेत्र में सामाजिक विकास की योजनाओं शिक्षा, स्वास्थ्य और बाल महिला विकास पर निवेश में पहले से और बढ़ोत्तरी कर इनके क्रियान्वन को सोशल ऑडिट प्रक्रिया से जोड़ा जाए। ग्रामीण औद्योगिकीकरण पर एक नयी राष्ट्रीय नीति बने।
विडंबना ये है कि इस बार का बजट ग्रामीण क्षेत्र की छोडि़ए शहरी क्षेत्र में भी आशा का संचार नहीं कर पाया। बजट के बाद से देश के शेयर बाजार लगातार नींचे गिर रहे हैं। हमारे देश में बहुत सारे सुधार सफलतापूर्वक संचालित किये गए हैं जिसमे मोबाइल क्रांति, पोलियों उन्मूलन और आईटी के प्रयोग के जरिये प्रशासन को पारदर्शी बनाने जैसे कदम जो हमारे लिये रोल माडेल है।

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