Friday, December 11, 2015

मोदी जी और उनके अंध समर्थक मानें या ना माने, मोदी और उनकी सरकार का अहंकार जमींदोज़ हो चुका है। शुक्र है बिहार में चुनाव में मिली हार का अन्यथा उनकी सरकार के अहंकार को तो अभी पंख लग गए होते। सरकार घरेलू मोर्चे पर, पडोसी मोर्चे पर , संसदीय मोर्चे पर और राजनीतिक मोर्चे सभी पर या तो अतिशय विनम्र हो गयी है या लो कॉन्फीडेंस में दिख रही है। ये चीजे मुझे एक आईने में साफ साफ दिख रहा है ,इसीलिए लिख रहा हूँ । पर कोई भी संस्था या व्यक्ति उसके न तो अति विनम्रता और न ही अहंकारी भाव ले लिए जाने  जाना  चाहिए। समदर्शी ,समभावी और स्थितप्रज्ञ चरित्र तब आता है जब उस व्यक्ति और संस्था के पास मोरल हाई ग्राउंड हो तथा हर गतिविधि अपने सिद्धांतों और आदर्शो की कसौटी पर कसी गयी हो। आज मोदी के मुख से संसदीय प्रवचन इसीलिए शोभित नहीं हो रहा है क्योंकि उन्हें  गुजरात की विधानसभा में उपस्थित होना पसंद ही नहीं था। बल्कि लोकसभा में भी उनकी उपस्थिति यदा कदा ही दिखती है और ज्यादातर मौके पर विदेश गमन पर ही होते है।
एक परिवार के नेतृत्व में कैद रही स्वाधीनता पश्चात की कांग्रेस पार्टी के सबसे बेहतर विकल्प के रूप में बीजेपी का उभार समूचे देश में इसीलिए सुनिश्चित हुआ क्योकि यह पार्टी नैतिकता आधारित राजनीती, सामूहिक नेतृत्व, वंशवाद विरोधी, कार्यकर्ता उन्मुखी संगठन और विकेंद्रीकृत राजनीती पर आधारित थी। अब मोदी शाह की बीजेपी बिलकुल इंदिरा नी त कांग्रेस की राह पर चल रही है। बेशक हम जानते हैं की चुनावी लोकतंत्र में सुन्दर विचारो और सुझाओ की जगह कम ही होती है और चुनावी जीत और हार का सबक ही ज्यादा प्रभावी होता है।
सिस्टम में बुनियादी सुधारो की लम्बी लिस्ट है ,अगर मोदी अभी भी उसपर पूरी तल्लीनता से काम करते है तो मोदी अभी भी इतिहास में जगह बना सकते है। उनकी हेकड़ी सोशल मीडिया के अंधभक्तो को केवल गुदगुदा सकती है देश के लिए बहुत कुछ कर नहीं सकती है।

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