Pages

Tuesday, July 17, 2018

यह कैसा हिंदुत्व, जहां अपने अपने समाज के एक नौजवान व्यक्ति को अपनी शादी में घोड़ी में बैठने के लिए छह महीने जद्दोजहद करना पड़ा। कोर्ट से परमिशन लेना पड़ा। करीब 150 पुलिस जवानो के साये में अपनी शादी में घोड़ी पर बैठकर अपने दिल की मन्नत पूरी करनी। यह क्या हो रहा है।
मैं एक बार यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का हिंदुत्व पर एक उद्बोधन सुन रहा था की मुसलमानो के पवित्र स्थल मक्का में किसी गैर मुस्लिम के प्रवेश पर निषेध है। ईसाईयों के पवित्र स्थल वैटिकन सिटी में गैर ईसाई के प्रवेश पर निषेध है। पर हमारी सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी में तो हर धर्म के लोग न केवल प्रवेश करते है , बल्कि हमारे पवित्र स्थल से सटकर अपनी मीनारे खड़ी कर वहां से तीव्र धवनि में अपनी अजाने पढ़ते है। बात ठीक है।
पर ये बताईये हिंदुत्व के खतिरदारो और पहरेदारो , पर अपने समाज के एक बड़े तबके को समाज की मुख्यधारा से क्यों काटा गया जिसे अछूत बनाकर, मैला धुलाकर, मंदिर में प्रवेश रोककर और उसके साथ क्या क्या जलालते नहीं की गयी। और ये सब घटनायें आज के इस दौर में भी घटित हो रही है। दलित दूल्हे को घोड़ी में नहीं बैठने देने की यह घटनायें तो यही दर्शा रही है की समाज में सामंती और नस्ली सोच का डीएनए अभी भी ब दस्तूर बना हुआ है। हमारे पहरेदारो यह जान लो , अतीत की गुलामी इन्हीं सब कारणों का नतीजा रही है।

No comments:

Post a Comment