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Monday, August 28, 2017

भाई मामला कुछ और ही है। 


अभी नितीश कुमार के पाला बदलकर भाजपा के साथ गठबंधन करने पर उनकी खूब किरकिरी हो रही है। तेजस्वी का कहना है की तेजस्वी तो बहाना थाभाजपा में उन्हें जाना था। पर नितीश पर यही सवाल भाजपा गठबंधन तोड़ते समय भी उठा था। उस समय यह कहा गया की नरेंद्र मोदी एक बहाना था नितीश को भाजपा छोड़कर जाना था। पर दलअसल बात दूसरी है। नितीश को जो लोग नजदीक से जानते है , उन्हें मालूम है की सब लोगो की तरह नितीश में भी अच्छाई और कमी दोनों है। नितीश जी विजनरी है पर कार्यशैली अधिनायकवादी है। नितीश जी सत्तापिपासू है पर सत्ता की ईमानदारी हमेशा कायम रखते है। अपने इस चरित्र की बिसात पर उन्होंने भाजपा के साथ करीब 9 साल तक राज किया , उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई , उन्हें परेशानी हुई प्रधानमंत्री के लिए नरेंद्र मोदी के नाम घोषित होने से। और उन्होंने इसके एवज में पिछले लोकसभा चुनाव में काफी नुकसान भी उठाया। पर विधानसभा चुनाव के लिए अपने 16 साल के विरोधी राजद का दामन थामा। पर राजद के साथ नितीश का डेढ़ साल का कार्यकाल उन्हें नागवार गुजरा और उन्होंने समझ लिया की बैक तो बेसिक्स। पर इसका एन्ड रिजल्ट क्या होगाबिहार में ज्यादा बेहतर शासन , ज्यादा बेहतर सामाजिक न्याय और बल्कि ज्यादा बेहतर धर्मनिरपेक्षता। मैंने पिछले १० साल के शासन में नितीश को भाजपा के साथ किसी अल्पसंख्यक सवाल पर समझौता करते नहीं देखा। 
पर लालू जिनकी सबसे बड़ी क्वालिटी मेरी समझ से यही लगता है की वह भोजपुरी समाज के सबसे बड़े ब्रांड एम्बेस्डर है अन्यथा उनके लिए सामाजिक न्याय के माने पारिवारिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के माने परिवार सापेक्षता। भ्रष्टाचार के सवाल पर सब ठीक , मेरी रोचक वाक् शैली सबका जबाब। देश की राजनीती को अपने शुद्धिकरण के लिए भ्रष्टाचार और वंशवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी बल्कि अधिनायकवाद के बजाये एक सुव्यस्थित लोकतंत्रवाद का परचम लहराना होगा। इसकी सबसे बड़ी पहल है सभी राजनितिक दल के भीतर आतंरिक लोकतंत्र और एक पेशेवर ईमानदार कार्य संस्कृति।

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