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Friday, August 12, 2016

उत्तर प्रदेश में कुछ सौ सफाई वर्कर की वेकैंसी के लिए लाखो लोगो ने आवेदन किया , जिसमे दिलचस्प वाक्या ये था की इसमें न केवल ब्राह्मण सहित कई ऊँची जतियों के लोगो ने आवेदन किया बल्कि इ समे कई तो पीएचडी और बड़े डिग्री होल्डर भी शामिल थे। 
सफाई कर्मचारी के लिए सभी वर्गो का आवेदन करना हमें भारत के अब समता मूलक समाज की तरफ अग्रसर होने का खुशनुमा अहसास तो दे गया , परन्तु बेरोजगारी को लेकर सरकारों की एक बड़ी हिपोक्रेसी और दोगले चरित्र को पुरजोर तरीके से आभासित कर गया।
कहना ना होगा हमारा आधुनिक ट्रेड यूनियन कानून एक तरफ कुछ चंद रोजगार प्राप्त लोगो की जरूरत से ज्यादा चांदी करता है पर करोडो बेरोजगारों की छाती पर यह ट्रेड यूनियन कानून मुंग दलने का काम करता है। हालात ये है की आमरण सरकारी दामाद बनाये रखने तथा सरकारी ऑफिसो में हरामखोरी का कल्चर बनाने वाली इस श्रम कानून ने हालत ये कर दी है की क्या भारत सरकार हो या तमाम राज्य सरकारें, चाहे उनके यहाँ जितनी भी जरूरी पद खाली पड़े हो , चाहे कितना भी सरकार के काम रुके पड़े हो ,चाहे कितना भी उनका विकास काम बाधित होता हो , उन्होंने यह तय कर लिया है की वेकैंसी को नहीं भरना है। देश की सभी सरकारें अंदरखाने से ये सोचे बैठी है की अब नए सरकारी दामादों की नियुक्ति नहीं करनी है , हमारा काम ऐसे ही चल जायेगा।
अरे भाई कॉन्ट्रैक्ट पर नयी रोजगार नीति क्यों नहीं लाते ? कॉन्ट्रैक्ट पर भी सरकारें करमचारियों को समुचित वेतन और कार्य परिस्थितियां मुहैया करा सकती है। अगर ऐसा कर दिया गया तो केवल भारत सरकार में अविलम्ब 7.5 लाख नौकरी उपलब्ध है। देश के सभी राज्य सरकारों में करीब 50 लाख नौकरी तुरत उपलब्ध है। इससे बेरोजगारी पर तुरत तथा ऑफिसो की हरामखोरी पर तु रत रोक लगेगी । बिहार में जैसे अनुबंध पर टीचर बहाली शुरू हुई तुरत २ लाख नौकरी उपलब्ध हो गयी । देश के 2 लाख स्कूलों में 1 टीचर है , यदि प्रति स्कूल 4 टीचर बहाल किये जाये तो 10 लाख टीचरों की तुरत बहाली हो जाएगी। समुचित श्रम और रोजगार नीति नहीं होने से अभी देश में बेरोजगारी लाइलाज बीमारी बनी हुई है। इसकी जड़ में है पक्की नौकरी का कांसेप्ट जिसने देश के शासन और प्रशासन को हर तरह से पथभ्रष्ट बना कर रखा हुआ है।

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