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Sunday, March 1, 2015

मोदी सरकार की पिछले 9 महीनो में कई तारीफें भी हुई, कई मामलो में आलोचना भी हुई। इस दौरान जहा जहा राज्यों में चुनाव हुए वह की एंटी इन्कम्बेंसी से मोदी और इनकी पार्टी को विजयश्री भी मिली , वही दिल्ली में मोदी और उनकी पार्टी खुद इंकम्बेंट बन गयी और इसके खिलाफ फायदा आप को मिल गया। बहरहाल इन सारे पहलुओ की आलोचना और तारीफ के आधार राजनितिक, विचारधारागत हो सकते है , परन्तु गुड गवर्नेंस और नयी आर्थिक नीतियों की कसौटी पर इनमे आलोचना के बहुत गंभीर तत्त्व नहीं है। परन्तु परन्तु इस सरकार के मुह पर निश्चित रूप से एक बड़ी कालिख लगी है , एम्स के सीवीओ संजीव चतुर्वेदी के मसले पर। यह सरकार भ्रस्टाचार के सवाल पर बेनकाब हुई है। पहले तो मौजूदा स्वस्थ्य मंत्री जे पी नड्डा की सिफारिश पर उन्हें हटवाया गया । कथित तौर पर हर्षवर्धन ने हटाने से मना किया तो फिर पीएमओ से दबाव डलवाकर हटवाया गया और फिर हर्षवर्धन को मंत्री पद से विदा कर उसी नड्डा को मंत्री भी बनवा दिया गया। अब दिल्ली हाई कोर्ट की नोटिस भी आ गयी। क्या नैतिकता बीजेपी की बनती है. इसी तरीके से कानून बन चुके लोकपाल पर यह सरकार प्रोएक्टिव नहीं है , क्यों। मूल सवाल ये है की ब्यूरोक्रेसी रिफार्म का बड़ा एजेंडा सरकार के पास नहीं है जो जनता के प्रति भ्रस्टाचार के लिए मूल रूप से जिम्मेदार है

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