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Saturday, December 29, 2012

चलिए, एक वीरांगना ने अपनी क़ुरबानी दे दी/ पर अब क्या इस बहाने देश मे सचमुच वयस्था परिवर्तन के काम को अंजाम पर ले जाया जायेगा/ जो दिल्ली में पहला पुलिसिंग की सारी रीती निति, उसका चलन व्याहार और उसकी जन सेवा व जबाबदेही के कल्ट को विकसित करे , दूसरा दिल्ली की पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम में आमूल चुल परिवर्तन मतलब यदि सड़क पर ऑटो या टैक्सी दिखे तो वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट होने के नाते कही भी, किसी भी वक्त पर और निर्धारित किराये पर जाने से मना करने की बिलकुल हिमाकत न करे / बस ड्राईवर सडको पर रेस न लगाये/ बस कंडक्टर गाली और अक्खर भाषा का इस्तेमाल बिलकुल न करे और तीसरा देश की न्यायिक वयस्था को वैज्ञनिक तरीके से संचालित करने के काम को सुनिश्चित किया जाये/ या हमारे निति नियामक और प्रशासक केवल इस आकरोष के वक्त के जाने का इंतजार करेंगे और इसी ढर्रे पर काम चलता रहेगा। कयोंकि पहले भी नॉएडा में सुरेन्द्र कोली जैसा नरपिशाच जो बच्छो को मार कर उनका लीवर खा जाता था, पांच साल बीतने के बाद भी अभी न्यायिक विलास कर रहा है / अब इससे इतर जो नारी सवालो और उनके खिलाफ अपराधो का मसला है तो इस पर अभी बहुत सामाजिक मंथन की दरकार है / चुकी कई लोग वास्तविक और असली सच को कहने के बजाये उस हिसाब से सवालो को उठा रहे है जिससे इन सवालो का समुचित समाधान नहीं निकलेगा / असली मुद्दा है संबंधो की नैतिकता कितनी मजबूत है / दूसरा है नर नारी की असमानता और नारी अत्याचार जो देश के शहरो में नहीं गावों में दीखता है, उसे प्राथमिकता मिलती है या नहीं / इन शब्दों के साथ उस युवती के प्रति शत शत नमन जिसने समूचे देश को भाव विभोर और रुदन क्रुन्दन से सराबोर कर दिया

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